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उर्दूनामा: दो तरह के इश्क़ से ही निकलता है ‘बेनियाज़ी’ का रास्ता 

उर्दूनामा पॉडकास्ट में ख्वाजा मीर दर्द, ग़ालिब, ज़ौक़, फ़िराक़, वग़ैरा से जानिए इश्क़ में इंसान बेनियाज़ कैसे बन जाता है. 

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होस्ट, राइटर, और साउंड डिजाइनर: फबेहा सय्यद
एडिटर: शैली वालिया
म्यूजिक: बिग बैंग फज

इस दुनिया में जब हर चीज रफ्तार के साथ चल रही है, और हर थोड़े वक्त के बाद बदल भी रही है. तो ऐसे में सब कुछ कंट्रोल करने की इंसानी फितरत और गहरा जाती है. चाहे चीजें हों, मामले हों, रिश्ते हों, या फिर लोग ही क्यों न हों - इंसान सब कुछ अपने हिसाब से चलाना चाहता है. और ऐसा कर पाने की ख्वाहिश ही तमाम बेचैनी की जड़ है.

तो ऐसे में क्या किया जाए? ऐसे में उन शायरों की तरफ रुख करना चाहिए जो बता रहे हैं कि सब्र और 'बेनियाज़ी' ही दिल को चैन दे सकते हैं.

'बेनियाज़ी' यानी निस्पृहता, या किसी चीज की ख्वाहिश न रखना. आज उर्दूनामा पॉडकास्ट में सुनिए उर्दू के महान क्लासिकल शायर, ख्वाजा मीर दर्द का कलाम, और जानिये कि कैसे शायरी में बेनियाज़ होने के दो मायने निकाले जा सकते हैं - एक, इश्क़-ए-हक़ीक़ी यानी भगवान की मोहब्बत में; दूसरा, इश्क़-इ-मजाज़ी यानी दुनिया और इंसान की मोहब्बत में.

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