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उर्दूनामा पॉडकास्ट: जब खुदा साथ है,तो ‘अर्जियों’ की जरूरत क्‍यों?

इस पॉडकास्ट में समझिए अहम् ब्रह्मास्मि और अन-अल-हक के दर्शन में संबंध

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‘अर्जी’ मतलब ‘आवेदन’ या एक ‘मांग’. ‘अर्जियां’ शब्द सूफी कविताओं में अल्लाह के नजदीकी अहसास को महसूस करने के लिए किया जाता था. लेकिन एक सवाल है. जब अल्लाह हर जगह हैं, तो हमें अर्जियों की क्या जरूरत है? उर्दूनामा के इस एपिसोड में इसी का जवाब खोजा गया है.

मलिक मोहम्मद जायसी की पद्मावत को भारतीय दर्शन के अहम् ब्रह्मस्मि और अन-अल-हक में समानता खोजने के लिए पढ़ा. उर्दूनामा के इस एपिसोड में यही समझने की कोशिश की गई है कि क्या अर्जियां अल्लाह तक पहुंचाती हैं या इसके लिए किसी गुरु की जरूरत होती है.

इस बार पॉडकास्ट में हमारे साथ हैं प्रोफेसर अब्दुल बिस्मिल्लाह, जो बताएंगे कि अर्जियों की सूफी परंपरा में कोई जगह नहीं है. दरअसल गुरु ही भगवान और इंसान के बीच पुल का काम करते हैं. साथ में सुनिए सूफी गायक ध्रुव सांगरी बिलाल चिश्ती को, जो बताएंगे कि क्यों ‘अर्जियां’ उनके लिए पवित्र शब्द है.

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