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पॉडकास्ट | लॉकडाउन में अपने हौसले का ‘नूर’ ना बुझने दें 

शायर और पत्रकार नोमान शौक़ से सुनिए उर्दू शायरी के कुछ नूर-अंगेज आशार

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कोरोना वायरस के कारण भारत में 25 मार्च को लॉकडाउन लागू कर दिया गया था, जो 14 अप्रैल तक रहेगा. लॉकडाउन के बाद से, कई परेशान करने वाली खबरें आईं. कोई घर से निकल नहीं पा रहा है, तो कोई पैदल ही घर लौटने को मजबूर है.

ऐसी परेशान कर देने वाली खबरों के बीच, भविष्य को लेकर बेचैन होना लाजमी है. बुरे हालात के इस गहरे बादल को छंटने में अभी कुछ वक्त और लगेगा. जरूरी ये है कि अंधेरे में अपनी हिम्मत, और उम्मीद की रोशनी देखने की कोशिश करें. 'नूर' की बात करें.

‘नूर’ का मतलब होता है उजाला, रोशनी, ज्योति. शायर जब खुदा या किसी धार्मिक शख्सियत की तारीफ में कुछ लिखते हैं, तो दिव्य प्रकाश, सत्य, हक, यानी खुदा की रेहमत के उजाले के अर्थ के साथ लिखते हैं.

मिसाल के तौर पर उर्दू के एक शायर हैं, जिन्होंने कृष्ण भगवान की तारीफ में एक बहुत ही लंबी नज्म लिखी थी, जिसका नाम था 'कृष्ण कन्हैया'. इस नज्म में कृष्ण के रूप के बारे में लिखते हुए उन्होंने 'नूर' शब्द का इस्तेमाल किया था. कृष्ण भक्ति पर लिखने वाले इस शायर ने पाकिस्तान का राष्ट्रगान भी लिखा था. कौन था वो शायर? और उर्दू शायरी में 'नूर' के बारे में दूसरे शायरों ने किस तरह लिखा है?

ये सब जानिए क्विंट की फबेहा सय्यद से उर्दूनामा के इस पॉडकास्ट में.

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