भारत की न्यायपालिका संविधान का एक अहम हिस्सा है. इसीलिए देशभर के लोग इसकी निष्पक्षता पर भरोसा करते हैं. लेकिन कई बार ऐसा हुआ है जब न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े किए गए. खुद सुप्रीम कोर्ट के कुछ जजों ने भी मीडिया के सामने आकर इसका विरोध जताया था. इन जजों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई का नाम भी शामिल था. लेकिन अब रंजन गोगोई को लेकर एक ऐसा मामला सामने आया है, जिससे फिर से न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठने शुरू हो चुके हैं.
पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, जो पिछले साल नवंबर में रिटायर हुए थे, अब राज्यसभा में बतौर MP शपथ लेने जा रहे हैं. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया है. जिस पर बवाल शुरू हो चुका है.
इसका एक कारण ये भी है कि गोगोई ने एक केस की सुनवाई के दौरान खुद रिटायर्ड जजेस के किसी भी तरह के पॉलिटिकल नॉमिनेशंस पर कड़ा रुख अपनाया था. उन्होंने कहा था कि ऐसा होने पर जुडिशरी की निष्पक्षता को लेकर सवाल उठेंगे और उन्होंने ऐसा करने को आजाद न्यायपालिका की आजादी पर एक धब्बा भी बताया था. तो जिस बात पर उन्हें खुद ऐतराज था, उसी चीज के लिए वो इतनी जल्दी कैसे हामी भर सकते हैं?
रंजन गोगोई के नॉमिनेशन पर शुरू हुए विवाद से जुड़ा ये सिर्फ एक सवाल है. इस सवाल के अलावा उठने वाले बाकी सवालों के जवाब भी जानने की कोशिश करेंगे.
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