2014 लोकसभा चुनाव में विकास के जिस रथ पर सवार होकर मोदी सरकार सत्ता में आई थी, वह रथ नोटबंदी की दलदल में फंस गया है. दो साल के लगातार सूखे के बाद इस साल नॉर्मल मॉनसून और सरकारी खर्च के दम से इकोनॉमिक रिकवरी शुरू ही हुई थी कि उस पर डीमॉनेटाइजेशन ने पानी फेर दिया. किसी को पक्का नहीं पता कि 8 नवंबर को 86 पर्सेंट करेंसी को वापस लेने का जो ऐलान हुआ, उससे अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान होगा, लेकिन इससे इकोनॉमी में रिवर्स गियर लगने पर किसी को शक भी नहीं.
फाइनेंस मिनिस्टर अरुण जेटली का अभी इस बारे में कोई बयान नहीं आया है कि नोटों की अदलाबदली से जीडीपी में कितनी सेंध लगेगी, लेकिन मोदी सरकार के एक जूनियर मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा है कि इससे ग्रोथ रेट में सिर्फ 0.2% की कमी आएगी. हालांकि, रेटिंग एजेंसियों और ब्रोकरेज हाउसों ने जो अनुमान पेश किए हैं, उससे लगता है कि मोदी सरकार के विकास रथ को नोटबंदी की दलदल से निकलने में अच्छा-खासा समय लग सकता है.
जीडीपी-शीडीपी हाय रब्बा!
स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने 14 दिसंबर की रिपोर्ट में दावा किया कि इस फाइनेंशियल ईयर में आर्थिक तरक्की की रफ्तार 6.9% रहेगी.
नोटबंदी से पहले उसने इसके 7.9% रहने का अंदाजा लगाया था. इसी तरह, एक और विदेशी रेटिंग एजेंसी फिच ने ग्रोथ फोरकास्ट को 7.4% से घटाकर 6.9%, गोल्डमैन सैक्स ने 7.9% से घटाकर 6.8% और एंबिट कैपिटल ने 6.8% से 3.5% कर दिया है.
असल चोट अभी बाकी है
नोटबंदी से पहले तक देश में 90% सौदे कैश में हो रहे थे. 86% करेंसी अचानक वापस लेने के ऐलान से बिजनेस क्रैश कर गया. बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (बीसीजी) और कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) की इसी हफ्ते आई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नोटबंदी की असल चोट का पता दिसंबर-जनवरी में चलेगा.
सर्वे के मुताबिक, नवंबर में इंडस्ट्री की ग्रोथ घटकर 4 पर्सेंट रह गई. इतनी ग्रोथ भी इसलिए हासिल हुई क्योंकि कंपनियां नोटबंदी से पहले मिले ऑर्डर्स पूरे कर रही थीं. सर्वे में बताया गया है कि पिछले महीने ऑटो और बिल्डिंग मैटीरियल्स सेक्टर की ग्रोथ माइनस में चली गई.
ऐसे में कई ऑटो कंपनियों ने कुछ समय के लिए प्रॉडक्शन बंद कर दिया. हालांकि, उनकी तरफ से कहा गया है कि प्लांट्स की मेंटेनेंस के लिए ऐसा किया गया है. यही नहीं देश के जीडीपी में 60% योगदान देने वाला सर्विस सेक्टर का परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स भी नवंबर में नेगेटिव जोन में चला गया.
कुछ‘इनफॉर्मल’ हो जाए
दरअसल, इकनॉमी में 45% कंट्रीब्यूशन देने वाला इनफॉर्मल यानी असंगठित क्षेत्र लगभग पूरी तरह कैश पर निर्भर था. उसे 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोट वापस लेने से तगड़ा झटका लगा है. एंप्लॉयमेंट में इनफॉर्मल क्षेत्र का योगदान 80% है. असंगठित क्षेत्र में आने वाली यूनिट्स कैश की कमी के चलते सैलरी नहीं दे पा रही हैं.
इसलिए इनमें काम करने वाले काफी मजदूर अपने गांव-कस्बों में लौट रहे हैं. कैश की किल्लत के चलते एक्सपोर्टर्स का कामकाज प्रभावित हुआ हैऔर नवंबर में ट्रेड डेफिसिट (इंपोर्ट की तुलना में एक्सपोर्ट कितना कम रहा) 16 महीने में सबसे अधिक हो गया. इन सबसे जॉब फ्रंट पर काफी नुकसान हो सकता है. वैसे भी हमारा देश पिछले दशक भर से अधिक समय से जॉबलेस ग्रोथ के लिए बदनाम रहा है.
कर्ज का नाम ना लेना
बैंक लोन जैसे इकोनॉमिक इंडिकेटर्स तो और भयानक तस्वीर पेश कर रहे हैं. बैंकों की लोन ग्रोथ 19 साल में सबसे कम हो गई है. पिछले 45 दिनों से बैंकों ने पूरी ताकत डिपॉजिट लेने और कैश बांटने में लगा रखी है. इससे लोन सहित उनके दूसरे काम बंद हो गए हैं. .
ब्रोकरेज फर्म जेफरीज का कहना है कि नोटबंदी के चक्कर के चलते बैंकों की लोन ग्रोथ इस फिस्कल ईयर में घटकर 6% हो जाएगी. इतनी कम लोन ग्रोथ देश ने 1962 में देखी थी. पिछले फिस्कल ईयर में यह 10.9% था.
‘बाजारू’ हाल
शेयर बाजार और विदेशी निवेशकों को शायद इंडिया की ग्रोथ स्टोरी की हवा निकलने का अंदाजा हो गया है, इसलिए वे भी बेरहम हो गए हैं.
विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद शेयर बाजार से 3.08 अरब डॉलर निकाले हैं. इससे आईटीसी, एचयूएल, नेस्ले जैसी फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स और वोल्टास-व्हर्लपूल जैसी कंज्यूमर ड्यूरेबल कंपनियों को करारा झटका लगा है. 8 नवंबर के बाद से बीएसई एफएमसीजी और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स इंडेक्स में शामिल कंपनियों की मार्केट वैल्यू 1.2 लाख करोड़ रुपये घटी है.
रियल्टी, ऑटो, एनबीएफसी, सीमेंट जैसे सेक्टर्स का तो इससे भी बुरा हाल है. विदेशी निवेशकों की बेरुखी बनी रहेगी क्योंकि जीडीपी ग्रोथ से कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ बढ़ती है और अगले साल सितंबर-दिसंबर तिमाही से पहले इसमें रिकवरी की सूरत नजर नहीं आ रही है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)