पार्टी में वर्चस्व और सिंबल को लेकर पिता-पुत्र के बीच छिड़ी जंग का अंत हो चुका है. चुनाव आयोग ने अपना फैसला सीएम अखिलेश यादव के पक्ष में सुनाया है. इस फैसले से पार्टी और परिवार के मुखिया मुलायम सिंह को बड़ा झटका लगा है.
चुनाव आयोग के मुताबिक, अखिलेश के पक्ष में यह फैसला बहुमत के आधार पर सुनाया गया है.
विधायकों, विधान परिषद सदस्यों और सांसदों के अलावा राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल हुए कुल 5731 सदस्यों में से 4400 ने भी अखिलेश को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने के पक्ष में अपना समर्थन दिया था.
मुलायम के हाथ इसलिए नहीं लगी साइकिल
चुनाव आयोग के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव ने राष्ट्रीय अधिवेशन को असंवैधानिक करार देते हुए पार्टी सिंबल पर अपना दावा ठोंका था. हालांकि मुलायम की ओर से समर्थन करने वाले कम थे. चुनाव आयोग ने अपने फैसले के 37वें पैरा में लिखा है कि मुलायम सिंह यादव ने 9 जनवरी 2017 को अपना जवाब सौंपा था. हालांकि उनकी ओर से किसी भी सांसद, विधायक या फिर पार्टी प्रतिनिधि के हस्ताक्षर वाला हलफनामा नहीं दिया गया था.
चुनाव आयोग का कहना है कि उसने दोनों ही गुटों को समर्थकों के हस्ताक्षर वाले हलफनामे के साथ अपना जवाब सौंपने को कहा था.
चुनाव आयोग ने अपने फैसले में साफ बताया है कि पार्टी के संविधान की धारा 15 (10) के मुताबिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक दो महीने में कम से कम एक बार जरूर बुलाई जानी चाहिए. जबकि 25 जून 2014 के बाद सपा में एक भी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं बुलाई गई. साफ तौर पर यह पार्टी के संविधान का उल्लंघन है.
आयोग के फैसले से खुश अखिलेश के करीबी और उनके चाचा रामगोपाल यादव ने कहा, ‘चुनाव आयोग ने सही निर्णय लिया. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह यह था कि दूसरे खेमे (मुलायम सिंह यादव खेमा) के पास चुनाव चिह्न पाने के लिए जरूरी दस्तावेजी ताकत नहीं थी.’
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