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पश्चिम यूपी का सियासी गणित और सपा-कांग्रेस के पेंच में छोटे चौधरी

UP की जाट लैंड में जाटों की परंपरागत पार्टी मानी जाने वाली आरएलडी से एसपी और कांग्रेस का गणित क्यों नहीं बैठ पाया?

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यूपी में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गठबंधन में अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल को एंट्री नहीं मिली. क्या इस गठबंधन को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नुकसान होगा? 2014 के लोकसभा चुनाव की तरह इसबार भी विधानसभा चुनाव की शुरुआत इसी इलाके से होने वाली है. ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस-सपा को शुरुआती मोमेंटम मिलने में मुश्किल होगी? राष्ट्रीय लोकदल का इस इलाके में बड़ा बेस माना जाता है.

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 77 विधानसभा सीटें हैं. मुस्लिम के साथ-साथ जाटों के मूड से यहां चुनाव का नतीजा तय होता है. ऐसे में जाटों की पार्टी मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल का अलग होने से अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली गठबंधन को नुकसान होगा?

17 फीसदी जाट या 33 फीसदी मुस्लिम?

पश्चिमी यूपी का गणित बताता है कि इस इलाके में 17 पर्सेंट जाट वोट हैं और 33 पर्सेंट मुस्लिम. ऐसे में एसपी के सामने बड़ी चुनौती थी कि इसके बीच संतुलन कैसे बनाया जाए. जाहिर है उन्होंने 33 पर्सेंट वाले मुस्लिम वोटों को चुना, लेकिन इसके लिए कांग्रेस ही क्यों पहली पसंद बनी? इसका जवाब छिपा है 2015 के देवबंद उपचुनाव में.

2015 में यूपी के उपचुनावों में देवबंद से कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली थी. देवबंद सीट का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह जगह धर्मिक आधार पर काफी मायने रखती है. बीजेपी की प्रचंड लहर के बाद इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार का चुना जाना साफ इशारा करता है कि मुस्लिमों के लिए कांग्रेस की चमक फीकी नहीं पड़ी है.
UP की जाट लैंड में जाटों की परंपरागत पार्टी मानी जाने वाली आरएलडी से एसपी और कांग्रेस का गणित क्यों नहीं बैठ पाया?
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अब दूसरा समीकरण देखिए, वेस्ट यूपी में 17 पर्सेंट जाट वोटर और 33 पर्सेंट मुस्लिम वोटर्स हैं. ऐसे में सपा ने आरएलडी और कांग्रेस में से साफ तौर पर 33 पर्सेंट मुस्लिम वोटरों की पसंद वाली कांग्रेस को अपनी पहली पसंद बनाया. जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में जाट वोटर आरएलडी का साथ छोड़ बीजेपी का रुख कर चुके थे.

सीटों की बंदरबांट से खेल बिगड़ने की शुरुआत

एक तरफ समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई जोरों पर थी, वहीं दूसरी तरफ बिहार की तरह ही यूपी में भी महागठबंधन की चर्चाएं जोरों पर थीं. खबरें थी कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए एसपी-कांग्रेस-आरएलडी मिलकर चुनाव लड़ेंगी. इसके लिए सीटों के बंटवारे का एक फॉर्म्यूला भी सामने आया. एसपी अपने सहयोगियों के लिए 100-110 सीटें छोड़ने के लिए तैयार हो गई. जिसमें से लगभग 80 सीटों पर कांग्रेस और 30 सीटों पर आरएलडी को चुनाव लड़ना था. इन 30 सीटों में ज्यादातर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की थी. सूत्रों की मानें तो आरएलडी अपने खाते से सीटें देने पर राजी नहीं हुई.

पश्चिमी यूपी में MY और JM समीकरण

उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव समीकरण के बल पर सत्ता तक पहुंचती रही है. वहीं जयंत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल मुस्लिम-जाट वोट बैंक के बल पर अपना वजूद बचाए हुए है. हालांकि इस बार ये समीकरण कुछ बिगड़ते दिख रहे हैं.

पश्चिमी यूपी में मजबूत पकड़ रखने वाली आरएलडी फिलहाल अपने बुरे दौर से गुजर रही है. बीते विधानसभा चुनाव में आरएलडी को कुल 9 सीटें मिली थीं. जाट और मुस्लिम दोनों ही वर्ग आरएलडी के वोटर रहे हैं. 2012 के मुजफ्फनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिम के बीच की दूरी लगातार बढ़ती रही है. ऐसे में दोनों वर्गों को एक साथ लाना काफी मुश्किल है.

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आरएलडी को चाहिए तिनके का सहारा

UP की जाट लैंड में जाटों की परंपरागत पार्टी मानी जाने वाली आरएलडी से एसपी और कांग्रेस का गणित क्यों नहीं बैठ पाया?

छोटे चौधरी की आरएलडी इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में पार्टी को अपना वजूद बचाए रखने के लिए सहारे की जरूरत थी. शुरुआत में यह उम्मीद एसपी और कांग्रेस के गठबंधन में दिखाई दी, लेकिन उसके बाद बात बिगड़ गई. सूत्रों की मानें तो आरएलडी ने बीजेपी से गठबंधन की कोशिश हुई थी. पश्चिमी यूपी में कुछ अारएलडी नेताओं के बीजेपी जॉइन करने की खबर आई, जिसके बाद आरएलडी के कुछ नेताओं ने बीजेपी से गठबंधन की बात छेड़ी. यह मामला 10 फरवरी का है (जिस दिन बीजेपी यूपी की पहली लिस्ट जारी करने वाली थी). इस कारण बीजेपी ने अपनी उम्मीदवारों का ऐलान कुछ घंटे के लिए टाल दिया. सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने विलय की शर्त रख दी, जिसके बाद बीजेपी से भी आरएलडी का कोई समझौता नहीं हो पाया.

अजित सिंह की फिर भी कोशिश रहेगी कि कांग्रेस के साथ एक अनौपचारिक समझौता फिर भी हो जाए. जानकारों की माने तो इसे पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है.

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