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उत्तराखंड ग्राउंड रिपोर्ट: अबकी बार बीजेपी या कांग्रेस की सरकार?

उत्तराखंड की जनता के असली मुद्दे क्या हैं? क्या विकल्प नहीं है इसलिए हर 5 साल पर बदलती है सरकार?

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यही तो हमारी खासियत है, उत्तराखंड के वोटर हर पांच साल पर सरकार बदलते हैं, भले ही हमारे पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं लेकिन अलग पार्टियों को वोट देने से ही उत्तराखंड का थोड़ा बहुत विकास हो पाया है. जनता ये पिछले 17 साल से कर रही है और उम्मीद करता हूं आगे भी करती रहेगी. यकीन मानिए आज उत्तराखंड अगर दो कदम भी आगे बढ़ा है तो उसके पीछे सबसे बड़ी वजह है हर 5 साल पर सरकार का बदलना. - रमेश कौटियाल, समाजिक कार्यकर्ता, देवप्रयाग

उत्तराखंड को अलग राज्य बने 17 साल हो चुके हैं, 3 विधानसभा चुनाव देख चुका ये पहाड़ी राज्य 5 साल पर सरकार तो बदल देता है लेकिन वोटरों के पास विकल्प के तौर पर बीजेपी और कांग्रेस है.

उत्तराखंड की जनता के असली मुद्दे क्या हैं? क्या विकल्प नहीं है इसलिए हर 5 साल पर बदलती है सरकार?
(फोटो: The Quint)

2017 विधानसभा चुनाव का हाल

उत्तराखंड की जनता के असली मुद्दे क्या हैं? क्या विकल्प नहीं है इसलिए हर 5 साल पर बदलती है सरकार?
हरिद्वार विधानसभा सीट में अपने प्रत्याशी के लिए प्रचार करते बीजेपी कार्यकर्ता. (फोटो: द क्विंट)
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उत्तराखंड की राजनीति में भूचाल सा आया हुआ है, भारी तादाद में कांग्रेसी नेताओं ने बगावत की और बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी ने 14 बागियों को इस विधानसभा चुनाव में टिकट भी दे दिया है. राज्य कांग्रेस की अदरूनी हालत भी ठीक नहीं है. कार्यकर्ताओं के एक बड़े तबके ने पाला बदल लिया है.

हरिद्वार का चुनावी दंगल- देखिए, कैसे ‘मोदी वैन’ प्रचार कर रही है उत्तराखंड में बीजेपी का

1 और 2 फरवरी को बीजेपी और कांग्रेस से लगभग 1 हजार लोगों ने अदला-बदली कर ली. कांग्रेस ने भी 7 बीजेपी बागियों और 2 बीएसपी बागियों को इस चुनाव में टिकट दिया है.
उत्तराखंड की जनता के असली मुद्दे क्या हैं? क्या विकल्प नहीं है इसलिए हर 5 साल पर बदलती है सरकार?

राज्य के वोटरों को इस बात का इल्म है कि प्रदेश के मुद्दों के अलावा दागियों और बागियों को भी चुनावी मुद्दा बनाने की कवायद जारी है. जाहिर है वोटरों की नजर भी इस मुद्दे पर रहेगी लेकिन ये बात भी गौर करने वाली है कि दल-बदलू राजनीति इस पहाड़ी राज्य के लिए नया नहीं है. गठन के बाद से ही चुनावों से पहले भारी पैमाने पर बीजेपी और कांग्रेस में बागियों का आना- जाना लगा रहता है.

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दरअसल उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों का वोटिंग ट्रेंड थोड़ा अलग है, यहां के वोटर्स लोकल मुद्दों पर वोट करते हैं इसलिए इन इलाकों में निर्दलीय भी जीतते हैं और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां भी. लेकिन मैदानी इलाकों में राष्ट्रीय मुद्दे भी अहमियत रखते हैं. हो सकता है वहां बागियों का खेल उल्टा पड़ जाए.
नरोत्तम खंडूरी, वरिष्ठ पत्रकार

पहाड़ और मैदान का सियासी खेल

उत्तराखंड की राजनीति को समझने के लिए पहाड़ी और मैदानी इलाकों का समीकरण समझना जरूरी है. राज्य गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में बंटा है. 2017 विधानसभा चुनाव के मद्देनजर गढ़वाल क्षेत्र में बीजेपी का पलड़ा भारी दिख रहा है अगर निर्दलीय खेल न बिगाड़ें तो, वहीं कुमाऊं इलाकों में कांग्रेस की पकड़ मजबूत है.

कोटद्वार से हरक सिंह रावत बीजेपी उम्मीदवार हैं. इलाके के राजपूत वोटरों को टारगेट करने के लिए पूर्व कांग्रेसी हरक सिंह रावत को पार्टी ने कोटद्वार सीट तो दे दी लेकिन मौजूदा विधायक और राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सुरेंदर सिंह नेगी की क्षेत्र पर जबरदस्त पकड़ है. 2012 विधानसभा चुनाव में सीएम बीसी खंडूरी को नेगी ने ही शिकस्त दी थी.

चौबट्टाखल में सियासी पारा गर्म है क्योंकि पार्टी के बड़े नेता और पूर्व सांसद सतपाल महराज मैदान में हैं. उनके खिलाफ कांग्रेस के राजपाल सिंह बिष्ट हैं लेकिन तीरथ अगर सतपाल महाराज के समर्थन में आते हैं तो बीजेपी का पलड़ा भारी हो सकता है.

वहीं यमकेश्वर से बीसी खंडूरी की बेटी रितु खंडूरी बीजेपी उम्मीदवार हैं.

कुमाऊं क्षेत्र में कांग्रेस की लहर इसलिए बताई जा रही है कि इसी इलाके के अल्मोड़ा से मौजूदा सीएम हरीश रावत आते हैं. कहा जा रहा है कि 70 साल के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता रावत के पक्ष में इमोशनल फैक्टर काम कर सकता है.

मैदानी इलाकों में हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर के नतीजे निर्णायक साबित हो सकते हैं. यहां जिसे भी ज्यादा सीटें मिलेंगे वही पार्टी बहुमत के आसपास पहुंचेगी. हरिद्वार में 11 विधानसभा सीटें हैं और ऊधमसिंह नगर में 10.

यहां बसपा खेल बिगाड़ सकती है, अगर हरिद्वार में बसपा को ज्यादा सीटें मिलती हैं तो कांग्रेस को नुकसान होगा और बीजेपी को फायदा. शायद इसी को भांपते हुए हरदा (हरीश रावत) ने हरिद्वार ग्रामीण सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं. 2002 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 7 सीटें मिली थी. 2007 में 8 और 2012 में 3 सीटें पार्टी को मिली थी. - अखिलेश्वर प्रसाद, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार
स्नैपशॉट

राज्य के बड़े चुनावी मुद्दे

  • विकास
  • पलायन
  • रोजगार
  • भ्रष्टाचार
  • अवैध खनन

राज्य की जनता लोकल मुद्दों पर वोट करती है, पलायन और विकास उनकी दुखती रग है लेकिन अफसोस उत्तराखंड के चुनावी दंगल में किसी भी क्षेत्रीय या नेशनल पार्टी के पास इन दो मुद्दों पर ठोस प्लान नहीं है. भ्रष्टाचार और सड़क की बातें हो रही हैं लेकिन देवभूमि को तो रोजगार, शिक्षा, कृषि की नई तकनीक की दरकार है.

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उत्तराखंड की जनता के असली मुद्दे क्या हैं? क्या विकल्प नहीं है इसलिए हर 5 साल पर बदलती है सरकार?
उत्तराखंड अब 16 बरस का हो चुका है, अगले 5 साल तक इस राज्य को स्पेशल केयर चाहिए. आध्यात्मिक टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म से सबका विकास होगा, पलायन की जरूरत नहीं पड़ेगी, युवाओं को रोजगार मिलेगा.- श्रीनगर में पीएम मोदी

15 फरवरी को राज्य में मतदान है, चुनाव प्रचार थम चुका है. 70 विधानसभा सीटों वाला ये पहाड़ी राज्य अपने नए सीएम की ताजपोशी के लिए तैयार हो रहा है. दोनों बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस का समीकरण अगर बिगड़ा तो बसपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के सहारे सरकार बनेगी.

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