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शशिकला के बहाने राजनीति में महिला सशक्तिकरण का रियलिटी चेक

भारतीय राजनीति में शीर्ष पर बैठी किसी महिला के महिला होने की वजह से शायद ही उसे कभी कमजोर होना पड़ा हो.

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हर तरह की तिकड़मबाजी बेकार गई. शशिकला को सुप्रीम कोर्ट से सजा हो गई. अब वो तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनना तो दूर, किसी भी तरह के चुनाव में शामिल भी नहीं हो सकेंगी.

जेल जाने से पहले शशिकला ने अपने विश्वासपात्र एक पुरुष नेता को उसी तरह से मुख्यमंत्री का दावेदार बनाया है, जैसे जयललिता ने जेल जाते समय अपने विश्वासपात्र पुरुष नेता पन्नीरसेल्वम को मुख्यमंत्री की कुर्सी दे दी थी. जैसे जयललिता के चरणों में पन्नीरसेल्वम लोटे रहते थे, वैसे ही शशिकला के सामने ईके पलनीसामी रहते हैं.

इसके बावजूद शशिकला ने जयललिता के विश्वस्त पुरुष पन्नीरसेल्वम से लड़ते हुए कह दिया कि वो महिला हैं, इसीलिए उन्हें परेशान किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कुछ लोगों को राजनीति में महिलाएं बर्दाश्त नहीं होतीं. शशिकला भले कह रही हैं कि महिला होने की वजह से वो मुख्यमंत्री नहीं बन पाईं. लेकिन हिन्दुस्तान दावा कर सकता है कि ये राजनीतिक तौर पर दुनिया में सबसे ताकतवर महिलाओं का देश है. ये दावा खोखला भी नहीं है. इसका मजबूत आधार है.

ये वो देश है, जिसने 1966 में ही पहली महिला प्रधानमंत्री चुन लिया था. इस देश में अब तक अगर किसी राजनेता की ताकत का हवाला देना होता है, तो एक राजनेता का हवाला तानाशाही की हद तक दिया जाता है, तो वो भी एक महिला ही रही.
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इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते ही कांग्रेस के क्षेत्रीय क्षत्रपों की औकात धीरे-धीरे खत्म सी होने लगी थी. इंदिरा गांधी के भी प्रधानमंत्री बनने से पहले देश के सबसे बड़े राज्य अविभाजित उत्तर प्रदेश में सुचेता कृपलानी मुख्यमंत्री बन गई थीं. 1963 से 1967 तक उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं सुचेता कृपलानी देश की पहली महिला मुख्यमंत्री रहीं. उसी उत्तर प्रदेश में आज भी अगर कानून-व्यवस्था के राज की बात की जाती है, तो वो कल्याण सिंह और मायावती की ही होती है.

देश के सबसे बड़े राज्य के सबसे ताकतवर लोगों में मायावती शुमार होती हैं. फिर वो मुख्यमंत्री हों या न हों. उत्तर प्रदेश के चुनाव में अगर किसी राजनीतिक पार्टी में सबसे ताकतवर नेतृत्व है, जिसके सामने पार्टी के हर बड़े नेता की घिग्घी बंधी रहती है, तो वो मायावती ही हैं.

अखिलेश यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए समाजवादी पार्टी की पूरी राजनीति बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली डिम्पल यादव भी महिला ही हैं. उत्तर प्रदेश के बगल में ही बिहार को भी मजबूरी में ही सही, 1997 में ही पहली महिला मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के तौर पर मिल गई थी. 1997 से 2005 तक राबड़ी देवी 3 बार बिहार की मुख्यमंत्री बनीं.

जिस पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासन-सत्ता को चुनौती देने की स्थिति में कोई दिखता ही नहीं था, तो वहां भी उस सत्ता को चुनौती देकर उसे मटियामेट करने का काम भी एक महिला ने ही किया. ममता बनर्जी के आगे अभी फिलहाल कोई बड़ी चुनौती की तरह खड़ा होता दिख नहीं रहा है.
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भारतीय राजनीति में शीर्ष पर बैठी किसी महिला के महिला होने की वजह से शायद ही उसे कभी कमजोर होना पड़ा हो.
प्र‍ियंका के साथ सोनिया गांधी का कटआउट (फोटो: रॉयटर्स)

सोनिया गांधी पर तो विदेशी मूल के होने का आरोप लगाकर उन्हें राजनीति से बाहर करने की भरपूर कोशिश हुई. लेकिन सोनिया गांधी ने सबसे लम्बे समय तक कांग्रेस अध्यक्ष का रिकॉर्ड बना दिया. सोनिया गांधी कितनी ताकतवर राजनेता रही हैं, इसके लिए किसी आंकड़े की जरूरत शायद ही है.

आतंकवाद से बुरी तरह से परेशान जम्मू कश्मीर में भी महबूबा मुफ्ती का मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना महिलाओं के ताकतवर होने की कहानी है. मुफ्ती मोहम्मद सईद को अपनी विरासत बेटी को ही देना ज्यादा बेहतर लगा. पंजाब में जब आतंकवाद चरम पर था, उस समय राजिंदर कौर भट्टल वहां की मुख्यमंत्री बनीं थीं.

देश की राजधानी दिल्ली में सबसे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भी एक महिला शीला दीक्षित का ही कब्जा रहा. वो भी इस कदर कि अभी तक दिल्ली में शीला दीक्षित के कद का नेता किसी दल में खोजना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है.

दिल्ली से सटे राजस्थान में वसुंधरा राजे का कब्जा है. नरेंद्र मोदी और अमित शाह वाली बीजेपी में भी वसुंधरा अपनी ताकत समय-समय पर साबित करने में कामयाब रही हैं. वसुंधरा इससे पहले भी 2003 से 2008 तक मुख्यमंत्री रह चुकी हैं.

उत्तराखंड में भले ही इंदिरा हृदयेश मुख्यमंत्री न बन सकी हों, लेकिन नारायण दत्त तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल में सबसे ताकतवर मंत्री इंदिरा हृदयेश ही रहीं.

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जिस तमिलनाडु में शशिकला सत्ता हासिल करने की लड़ाई आज लड़ते हुए ये कह रही हैं कि महिला होने की वजह से उन्हें परेशानी हो रही है, उसी तमिलनाडु में जयललिता ने पुरुष वर्चस्व की राजनीति को धराशायी कर दिया था. जयललिता पहली बार 1991 में मुख्यमंत्री बनी थीं. लेकिन 1989 से ही पार्टी पर पकड़ मजबूत बना ली थी.

एमजीआर के निधन के बाद एआईएडीएमके में वर्चस्व की लड़ाई भी दो महिलाओं के ही बीच थी. एमजीआर की पत्नी जानकी रामचंद्रन को हराकर जयललिता ने एमजीआर की विरासत को खूब आगे बढ़ाया. जयललिता के पैरों में माथा रगड़ते पुरुष नेताओं, समर्थकों की तस्वीरें भला कौन भूल सकता है.

दरअसल सत्ता का अपना एक स्वभाव है और वो स्वभाव ही उसे ताकत देता है. भारतीय राजनीति में शीर्ष पर बैठी किसी महिला के महिला होने की वजह से शायद ही उसे कभी कमजोर होना पड़ा हो. ज्यादातर मौके पर महिला होना ज्यादा ताकत की वजह बना है. इसलिए शशिकला की ओ पन्नीरसेल्वम के साथ सत्ता संघर्ष में अपने महिला होने की दुहाई देकर भावनात्मक अपील करना सिवाय धोखा देने के कुछ नहीं है.

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(हर्षवर्धन त्रिपाठी वरिष्‍ठ पत्रकार और जाने-माने हिंदी ब्लॉगर हैं. इस आलेख में प्रकाशित विचार उनके अपने हैं. आलेख के विचारों में क्‍व‍िंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)

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