यूपी में तीसरे चरण की वोटिंग के लिए प्रचार का शोर थम चुका है. 19 फरवरी को 12 जिलों की 69 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. तीसरे चरण का चुनाव कई मायनों में खास है. इस चरण में समाजवादी पार्टी को अपने ही गढ़ में बागियों से मुकाबला करना है और अखिलेश यादव के लिए कई सीटों पर निजी प्रतिष्ठा का सवाल है. शिवपाल यादव की किस्मत का फैसला भी इसी चरण में होना है. चुनावी गहमागहमी से इतर इन 12 जिलों के कई ऐसे मुद्दे हैं. जिनपर वोट डाले जाएंगे. आइए तीसरे चरण के चुनाव की खास बातों पर एक नजर डालते हैं...
तीसरे चरण में जिन जिलों पर वोटिंग होगी, वो हैं-
हरदोई, फर्रुखाबाद, कन्नौज, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कानपुर देहात, कानपुर, उन्नाव, लखनऊ, बाराबंकी और सीतापुर. ये सभी जिले सेंट्रल यूपी में आते हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में इन जिलों में समाजवादी पार्टी को भारी समर्थन मिला था. 69 सीटों में से 55 पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी. बीजेपी को जहां 5 सीट, बीएसपी को 6 सीट और कांग्रेस को महज 1 सीट से संतोष करना पड़ा था. 1 सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने कब्जा किया था. हालांकि इस बार समाजवादी पार्टी को इस बार पुराना जादू चलाने के लिए काफी दम लगाना होगा. पार्टी को दूसरी पार्टियों के अलावा ‘घर’ के बागियों से भी चुनौती मिल रही है.
पुरानी 'साइकिल' Vs नई 'साइकिल'
समाजवादी पार्टी के ऊपर पार्टी के गढ़ यानी इटावा और उसके आसपास के जिलों को बचाने की चुनौती है. इन जिलों में पार्टी को बागियों से दो-दो हाथ करना होगा. शिवपाल सिंह यादव, इटावा की जसवंत नगर सीट से मैदान में हैं. मुलायम सिंह यादव ने खुद उनके लिए प्रचार किया था, लेकिन वहां भी अखिलेश और शिवपाल समर्थकों के बीच चल रही रार, पार्टी को ही नुकसान पहुंचा सकती है.
इस चरण में अखिलेश के चचेरे भाई अनुराग यादव, मुलायम की छोटी बहू अपर्णा यादव मैदान में हैं. अनुराग जहां लखनऊ की सरोजनी नगर सीट से पहली बार मैदान में हैं वहीं अपर्णा भी पहली बार ही विधानसभा चुनाव लड़ रही हैं. अपर्णा का प्रचार करने के लिए भी मुलायम सिंह पहुंचे थे. डिंपल और अखिलेश ने भी अपर्णा के लिए रैलियां की, आखिर परिवार की प्रतिष्ठा का सवाल जो ठहरा. उनका मुकाबला कांग्रेस की बागी और बीजेपी उम्मीदवार रीता बहुगुणा जोशी से है, इसलिए मुकाबला और भी दिलचस्प नजर आ रहा है.
अखिलेश की निजी प्रतिष्ठा दांव पर
परिवार में विवाद के बाद यूपी के नए ‘नेता जी’ की तरह उभरे अखिलेश की प्रतिष्ठा तो हर एक सीट पर दांव पर लगी है, लेकिन बाराबंकी की रामनगर सीट अखिलेश के लिए बेहद खास है. टिकट बंटवारे पर पार्टी में जो विवाद शुरू हुआ था, उसमें इस सीट की भी अहम भूमिका थी. सबसे पहले शिवपाल ने जो उम्मीदवारों की लिस्ट जारी की थी उसमें अखिलेश के करीबी नेता और कैबिनेट मंत्री अरविंद सिंह ‘गोप’ का टिकट काटकर बेनी प्रसाद वर्मा के बेटे राकेश वर्मा को दे दिया गया था. जिस पर अखिलेश ने कड़ी नाराजगी जताई. अंत में अखिलेश की जीत के बाद ‘गोप’ को ही पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया. अब पार्टी के ही बड़े नेता बेनी प्रसाद वर्मा की नाराजगी की खबरें हैं. जिसकी वजह से ‘गोप’ की राह भी आसान नहीं है. अखिलेश ने इस सीट पर भी जमकर प्रचार किया है.
पूरे समीकरण को देखें तो जितना समाजवादी पार्टी को बीएसपी और बीजेपी से नुकसान है उतनी ही खुद के बागियों से भी. ऐसे में मुकाबला कौन जीतता है ये तो 11 मार्च को ही पता चल पाएगा.
बीजेपी के लिए लखनऊ में रण
लखनऊ को हमेशा से बीजेपी का गढ़ कहा जाता रहा है, यहां से पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी कई बार सांसद रह चुके हैं. इसके बाद राजनाथ सिंह ने भी इस क्षेत्र का नेतृत्व किया. 2012 में लखनऊ में बीजेपी का किला ढहता नजर आया था, इस बार लखनऊ कैंट से बीजेपी की तरफ से कांग्रेस की बागी रीता बहुगुणा जोशी मैदान में हैं.
राजनीति के बीच असली मुद्दे दब जाते हैं !
तीसरे चरण में जिन 12 जिलों में चुनाव होने जा रहे हैं, हर जिले के अपनी खासियत और अपने मुद्दे हैं. जहां कन्नौज इत्र के लिए मशहूर है. वहीं फर्रुखाबाद आलू की पैदावार के लिए जाना जाता है. बाराबंकी में मेथा की पैदावार देशभर में सबसे ज्यादा होती है. खेती,किसानी पर निर्भर ये कारोबार अब भी विकास की राह देख रहे हैं. खेती में संपन्न होने के बावजूद किसानों के बच्चों को रोजगार के लिए दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों का ही रूख करना पड़ता है.
इस चरण के चुनाव में दो महानगर लखनऊ और कानपुर आते हैं. ये दोनों महानगर मिलकर उत्तर प्रदेश का 7 फीसदी घरेलू उत्पाद पैदा करते हैं. ऊंची-ऊंची इमारतें, कई इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेज, सड़क पर चमचमाती कारें इन दोनों जिलों को खास बनाती हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में हालात बिल्कुल उलट हैं.
स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत काम बाकी
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बाराबंकी, सीतापुर, हरदोई, औरैया और कानपुर जिले की 35 से 40 फीसदी काम करने योग्य आबादी कुपोषण की शिकार है. बाराबंकी जिले में जहां 89 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. वहीं लखनऊ डिवीजन में शिशु मृत्यु दर के भी हालात कुछ सही नहीं दिख रहे.
ऐसे में सवाल ये उठता है कि कितने उम्मीदवार शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के इन मुद्दों को उठा रहे हैं. अगर उठा रहे हैं तो क्या चुनाव के बाद इस पर काम होगा ?
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