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नवजोत सिंह सिद्धू: न ‘कैकयी’ रास आई, न ‘कौशल्या’ काम आई, ठोको ताली

सिद्धू को लोकल गवर्मनेंट, टूरिज्म और कल्चर, आर्काइव्स और म्यूजियम जैसे लो प्रोफाइल मंत्रालय दिए गये हैं.

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भूखे पेट तो बहुत हैं मगर रोटी से दूरी है

गले कटवा के भी ना रोना ये कैसी मजबूरी है

आज बापू होते तो हम सबसे कहते

सत्याग्रह कल भी जरूरी था और आज भी जरूरी है

अमृतसर (ईस्ट) के कांग्रेस विधायक नवजोत सिंह सिद्धू उर्फ शैरी ने ये शे'र कपिल शर्मा शो में पढ़ा था लेकिन आजकल अकेले में भी वो यही गुनगुना रहे होंगे. हो भी क्यों ना, कैप्टन अमरिंदर सिंह की अगुवाई में पंजाब का नया मंत्रिमंडल आकार ले चुका है और सिद्धू की उपमुख्यमंत्री बनने की उम्मीदें औंधे मुंह पड़ी है. खास बात ये कि सिद्धू के हाथ कोई अहम मंत्रालय भी नहीं आया. उन्हें लोकल गवर्मनेंट, टूरिज्म और कल्चर, आर्काइव्स और म्यूजियम जैसे लो प्रोफाइल मंत्रालय दिए गये हैं.

आखिर क्या वजह है कि कपिल शर्मा के शो में सिंहासन पर बैठने वाले ‘गुरु’ कैप्टन अमरिंदर के चुनावी शो में पीछे धकेल दिए गये.

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सिद्धू को लोकल गवर्मनेंट, टूरिज्म और कल्चर, आर्काइव्स और म्यूजियम जैसे लो प्रोफाइल मंत्रालय दिए गये हैं.
(फोटो साभार: Twitter/@sherryontop)

सिद्धू ने ऐसे बदला अपना राजनीतिक समीकरण

राज्यसभा में बीजेपी सांसद नवजोत सिद्धू ने जुलाई 2016 में इस्तीफा देकर सबको हैरान कर दिया था. इसके दो महीने बाद उन्होंने बीजेपी से भी इस्तीफा दे दिया और पंजाब की राजनीति में अपनी अलग पारी खेलने निकल पड़े.

किसी और टीम में खेलने के बजाए सिद्धू ने अपनी ही टीम बनाने का फैसला किया. सितंबर 2016 में उन्होंने आवाज-ए-पंजाब नाम से एक नया मोर्चा बनाया और चुनावी जंग के लिए आम आदमी पार्टी से गठजोड़ की कोशिशें शुरु की. उस वक्त आम आदमी पार्टी का खासा जोर था और उसे पंजाब चुनाव की विजेता के तौर पर देखा जा रहा था. आप से हाथ मिलाने से पहले सिद्धू चुनाव बाद का कोई बड़ा आश्वासन चाहते थे लेकिन आप किसी सौदेबाजी के लिए तैयार नहीं थी.

सिद्धू ने मैदान बदला और कांग्रेस से गठजोड़ की कोशिशें शुरु की. सिद्धू की लोकप्रियता के मद्देनजर कांग्रेस आलाकमान को तो उनमें एक स्टार प्रचारक नजर आ रहा था लेकिन कैप्टन अमरिंदर को वो फूटी आंख नहीं सुहा रहे थे.

18 अक्टूबर 2016 को मुझे दिए एक इंटरव्यू में चुनाव प्रचार की कमान संभाल रहे कैप्टन अमरिंदर ने साफ कहा था.

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सिद्धू को लोकल गवर्मनेंट, टूरिज्म और कल्चर, आर्काइव्स और म्यूजियम जैसे लो प्रोफाइल मंत्रालय दिए गये हैं.
(फोटो: द क्विंट)

पहली बात ये कि सिद्धू अगर हमारे साथ आना चाहते हैं तो उन्हें कांग्रेस पार्टी ज्वाइन करनी पड़ेगी. हम किसी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. कांग्रेस 120 साल पुरानी पार्टी है और हमें चंद दिन पुराने किसी मोर्चे से गठबंधन की कोई जरूरत नहीं है. दूसरी बात, उन लोगों (सिद्धू दंपत्ति) को कांग्रेस पार्टी की नीतियां माननी पड़ेंगीं. और तीसरी बात है अनुशासन. सिद्धू पिछले दस साल से अपनी पार्टी में शोर मचा रहे हैं जो कांग्रेस पार्टी में नहीं चलेगा. हम ऐसी बदतमीजी बर्दाश्त नहीं करेंगे.

कैप्टन के साथ हुआ पूरा इंटरव्यू यहां देखें.

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आखिरकार सिद्धू को झुकना पड़ा. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ एक मीटिंग के बाद 17 जनवरी 2017 को उन्होंने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता स्वीकार कर ली. यानी सिद्धू वोटिंग से महज 17 दिन पहले कांग्रेस में आए. ये बात सही है कि चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में उन्होंने जमकर प्रचार किया और भीड़ भी खूब बटोरी. पंजाब के मालवा इलाके में कांग्रेस को मिली 42 सीटों का कुछ क्रेडिट सिद्धू को भी दिया जाना चाहिए.

प्रचार के दौरान सिद्धू लगातार राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर के साथ नजर आए लेकिन कैप्टन के साथ उनके रिश्तों की बर्फ पूरी तरह नहीं पिघल पाई. पंजाब चुनाव के बाद सिद्धू को उत्तराखंड के उधमसिंह नगर और पश्चिमी यूपी के कुछ सिख आबादी वाले इलाकों में प्रचार करना था लेकिन वो पूरी तरह गायब नजर आए.

वैसे भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस सिर्फ पंजाब में सरकार बना पाई है तो उसका पूरा श्रेय कैप्टन अमरिंदर को जाता है. ऐसे में उनपर सिद्धू को उपमुख्यमंत्री बनाने का फैसला थोपकर आलाकमान राज्य ईकाई का तालमेल बिगाड़ना नहीं चाहता. कैप्टन अमरिंदर की टीम के एक वरिष्ठ सदस्य का कहना है कि

कांग्रेस पार्टी में सिद्धू की उम्र महज दो महीने की है. इतनी बड़ी पार्टी में इतनी जल्दी कुछ नहीं होता. वैसे भी वो मंत्री तो बन ही गए हैं.

क्रिकेटर सिद्धू मैदान में लंबे छक्के मारने के लिए मशहूर थे. लेकिन पॉलिटिक्स की पिच उतनी आसान नहीं. यहां हालात की गेंद इतनी तेज घूमती है कि बल्लेबाज को कुछ समझ में नहीं आता. सिद्धू के साथ यही हुआ. दरअसल वो किसी पॉलिटिक्स का नहीं, अपनी महत्वाकांक्षाओं का शिकार हुए हैं.

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खैर, अब तो जो होना था सो हो चुका. लेकिन अगर ऐसा किसी और के साथ हुआ होता तो ‘गुरू’ शायद उस पर यही कहते-
हर दिन के बाद यहां रात होती है,
हार जीत मेरे दोस्त साथ-साथ होती है,
कोई कितने भी बना ले हवा में महल
मिलता वही है ‘गुरु’ जो औकात होती है

यह भी पढ़ें: पंजाब की कसौटी पर कैसे खरे उतरेंगे कैप्टन अमरिंदर?

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