Amitabh Bachchan
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जंजीर (1973)
Movie Trivia

अमिताभ बच्चन की बड़ी कॉमर्शियल हिट फिल्म, जंजीर से उन्हें बतौर 'एंग्री यंग मैन' के रूप में पहचान मिली. कहा जाता है कि राजेश खन्ना, देव आनंद, दिलीप कुमार और धर्मेंद्र जैसे बड़े सितारों ने इस फिल्म को ठुकरा दिया था.

शोले (1975)
Movie Trivia

शत्रुघन सिन्हा को पहले जय का रोल ऑफर किया गया था, लेकिन उन्होंने ये रोल करने से इनकार कर दिया था. जब अमिताभ बच्चन ने ये रोल साइन किया था, तब वो इतने मशहूर नहीं थे. लेखक सलीम-जावेद के अलावा, अमिताभ के अनुरोध पर धर्मेंद्र की सिफारिश ने उन्हें जय की भूमिका दिलाई.

दीवार (1975)
Movie Trivia

दीवार में विजय का रोल प्ले करने के लिए यश चोपड़ा पहले राजेश खन्ना या नवीन निश्चल को कास्ट करना चाहते थे, लेकिन लेखक सलीम-जावेद ने अमिताभ बच्चन के नाम पर जोर दिया. दीवार का तमिल, तेलुगु, मलायलम, ईरानी, तुर्की और कंटोनीज समेत कई भाषाओं में रीमेक बनाया गया था.

अमर अकबर एंथनी (1977)
Movie Trivia

अमिताभ बच्चन ने हाल ही में कहा था कि अगर अमर अकबर एंथनी के आंकड़ें इंफ्लेशन में एडजस्ट कर दिए जाएं, तो इसका बिजनेस बाहुबली 2 जितना ही होगा. फिल्म में उनके मशहूर शराबी सीन के पीछे उनका खुद का ऑब्जर्वेशन था. अपने युवा दिनों में वो पार्टियों में गौर करते थे कि शराब पीने के बाद लोग कैसा बर्ताव करते हैं.

त्रिशूल (1978)
Movie Trivia

त्रिशूल के शुरुआती ट्रायल रन को देखने के बाद, प्रोड्यूसर गुलशन राय, डायरेक्टर यश चोपड़ा और लेखक सलीम-जावेद इससे बहुत निराश हुए. फिल्म को फिर से शूट किया गया और आखिरी एडिट में सीन को जोड़ा गया जिसने इसे बड़ी हिट बना दिया.

डॉन (1978)
Movie Trivia

डॉन का हिट गाना 'खइके पान बनारसवाला...' को देव आनंद की फिल्म बनारसी बाबू के लिए कंपोज किया गया था. इस गाने को डॉन फिल्म में तब शामिल किया गया जब मनोज कुमार ने इस फिल्म को देखा और कहा कि इसमें इतना सस्पेंस है कि इसे एक गाने की जरूरत है.

मुकद्दर का सिकंदर (1978)
Movie Trivia

अमिताभ बच्चन, रेखा, विनोद खन्ना और राखी स्टाटर फिल्म मुकद्दर का सिकंदर उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म थी.

शक्ति (1982)
Movie Trivia

शक्ति बनाने के पीछे डायरेक्टर रमेश सिप्पी की दिलीप कुमार को लेकर प्रशंसा थी, और इसलिए वो उनके लिए मदर इंडिया जैसी फिल्म बनाना चाहते थे. इस रोल के लिए पहले राज बब्बर का नाम सामने आया, लेकिन अमिताभ इसके लिए फाइनल हुए.

कुली (1983)
Movie Trivia

कुली के फाइनल सीन में, गोली से घायल होने के बाद अमिताभ बच्चन को बेंगलुरू के सेंट फिलोमिना अस्पताल की बालकनी से भीड़ को हाथ हिलाते देखा जा सकता है. ये सीन असल जिंदगी में कुली के सेट पर हुए बड़े एक्सीडेंट को ट्रिब्यूट था. इस एक्सीडेंट में अमिताभ को गहरी चोटें आई थीं.

शहंशाह (1988)
Movie Trivia

अगर अमिताभ बच्चन ने राजनीति छोड़कर फिल्मों में वापसी नहीं की होती, तो शहंशाह में जैकी श्रॉफ नजर आते.

कुली के सेट पर हुआ एक्सीडेंट

26 जुलाई 1982 को, बेंगलुरु में मनमोहन देसाई की फिल्म कुली के सेट पर, एक फाइट सीन में अमिताभ बच्चन को गहरी चोटें आई थीं.

गुजरात से अमिताभ बच्चन के फैन, अरविंद पांड्या ने कुली के सेट पर हुए एक्सीडेंट के बाद, एक्टर की सलामती के लिए वडोदरा से मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर तक 800 किमी का सफर उल्टे पैरों किया था. ठीक होने के बाद अमिताभ ने मुंबई में अपने घर 'प्रतीक्षा' में पांड्या से मुलाकात की थी.

बच्चन के को-स्टार पुनीत इसरार ने गलत समय पर उन्हें नकली घूसा मार दिया, जिससे वो एक लोहे की एक टेबल के कोने से टकरा गए और उनके पेट में चोट आ गई. इस एक्सीडेंट में अमिताभ बच्चन को गहरी चोटें आई थीं.

अमिताभ को गंभीर हालत में सेंट फिलोंमीना अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी इमरजेंसी सर्जरी कराई गई. इसके बाद उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. कई हफ्तों तक उनके ठीक होने की दुआ करने के लिए अस्पताल के बाहर प्रशंसकों, शुभचिंतकों की भारी भीड़ थी.

ब्रीच कैंडी अस्पताल के डॉक्टर 2 अगस्त को बच्चन को ठीक करने में सक्षम थे, और इस तारीख को बिग बी के फैंस उनके दूसरे जन्मदिन के रूप में मनाते हैं.

लंबे इलाज के बाद, हादसे के दो महीने बाद बच्चन 24 सितंबर को घर लौट आए.

बच्चन ने जनवरी 1983 में कुली की शूटिंग फिर से शुरू की. कुली की ओरिजिनल स्क्रिप्ट के मुताबिक, बच्चन को अंत में मरना था, लेकिन डायरेक्टर मनमोहन देसाई ने फिल्म की एंडिंग को बदल दिया, क्योंकि उन्हें लगा कि उनके हीरो ने असल जिंदगी में मौत से लड़ाई लड़ी और उसे मात दी, इसलिए उन्हें फिल्म में भी जिंदा रहना चाहिए.

कुली 2 दिसंबर 1983 को रिलीज हुई और उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई.

जब कुली सिनेमाघरों में रिलीज हुई, तो जिस सीन में अमिताभ बच्चन को चोट लगी थी, उस सीन को फ्रीज फ्रेम के तौर पर दिखाया गया.

रेखा  

अपनी जबरदस्त ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री के कारण, अमिताभ बच्चन और रेखा को बॉलीवुड का गोल्डन कपल कहा जाता था. 1976 में फिल्म दो अनजाने से शुरुआत करने वाले अमिताभ और रेखा ने एक साथ कई फिल्मों में काम किया है, जिसमें मुकद्दर का सिकंदर, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना और सुहाग शामिल हैं. जब अमिताभ और रेखा के अफेयर की चर्चाएं तेज थीं, तब डायरेक्टर यश चोपड़ा ने अपनी फिल्म <सिलसिला में दोनों को जया बच्चन के साथ कास्ट कर के सभी को चौंका दिया. इससे पहले, रेखा और जया के रोल के लिए चोपड़ा ने परवीन बाबी और स्मिता पाटिल को साइन किया था, लेकिन बाद में उन्होंने अमिताभ से सलाह-मशविरा किया, जिन्होंने रेखा और जया को ये फिल्म करने के लिए तैयार किया.

"मुझे अभी तक एक भी पुरुष, महिला, बच्चा नहीं मिला है जो पूरे जुनून से, पागलपन से उनके (अमिताभ बच्चन) प्यार में न पड़ा हो. तो मुझे अलग क्यों किया जाना चाहिए?"
- रेखा -

जया भादुड़ी बच्चन

जया भादुड़ी और अमिताभ बच्चन की सबसे पहली मुलाकात पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में हुई थी. हालांकि, उन्हें ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म गुड्डी के सेट पर एक-दूसरे से मिलवाया गया था. दोनों के बीच प्यार की खबरें तब उड़ी, जब उन्होंने बंसी और बिरजू के बाद साथ में दूसरी फिल्म एक नजर(1972) में साथ काम किया. जब वो डेटिंग कर रहे थे, तब अमिताभ और जया ने जंजीर की सफलता के बाद लंदन जाने की योजना बनाई, हालांकि अमिताभ के माता-पिता ने कहा कि उन्हें शादी करने पर ही साथ जाने की इजाजत दी जाएगी. उन्होंने 3 जून, 1973 को शादी की और इसके तुरंत बाद लंदन के लिए रवाना हो गए. अमिताभ और जया ने साथ में मिली, अभिमान, चुपके चुपके, सिलसिला, शोले और कभी खुशी कभी गम जैसी कई फेमस फिल्मों में साथ में काम किया है.

"मेरा परिचय उनसे गुड्डी के सेट पर हुआ था. मैं उनसे प्रभावित थी और बहुत हद तक इसलिए मुग्ध थी कि वो हरिवंश राय बच्चन के बेटे थे. मुझे लगा कि वो अलग हैं, हालांकि जब मैंने ऐसा कहा तो लोग मुझ पर हंसे. मैंने अपनी भावनाओं को व्यक्त किया और कहा कि वो कुछ बड़ा करेंगे, ये जानते हुए भी कि वो आम हीरो की तरह नहीं थे. मुझे उनसे बहुत जल्द प्यार हो गया."
- जया बच्चन -

राखी  

अमिताभ बच्चन और राखी को पहली बार यश चोपड़ा की कभी कभी (1976) में एक साथ देखा गया था, जिसके बाद वो मुकद्दर का सिकंदर, त्रिशूल और काला पत्थर समेत कई लोकप्रिय फिल्मों में दिखाई दिए. 1982 में, राखी ने ऋषिकेश मुखर्जी की बेमिसाल में अमिताभ के रोमांटिक इंट्रेस्ट और रमेश सिप्पी की शक्ति में उनकी मां की भूमिका निभाई.

"मैंने उसी समय शक्ति में अमिताभ की मां की भूमिका निभाई थी, जब मैं बेमिसाल की शूटिंग कर रही थी, जिसमें मैं उनकी लव इंट्रेस्ट थी. शक्ति सलीम-जावेद की अच्छी स्क्रिप्ट थी और मुझे डायरेक्टर के रूप में रमेश सिप्पी के साथ काम करने को मिल रहा था, तो मैं क्यों नहीं करती? मैंने इसे एक चुनौती के रूप में लिया, इस बात की चिंता किए बिना कि क्या मैं अब भी अमिताभ की हीरोइन बन पाऊंगी, और डायरेक्टर से कहा कि जिस तरह से मैं उन्हें देखती हूं, उस पर नजर रखें. अमिताभ ने इसके लिए अपने तरीके से तैयारी की, और इसमें कुछ भी अजीब नहीं था."
- राखी -

जीनत अमान  

1970 और 80 के दशक में डॉन, द ग्रेट गैम्बलर, दोस्ताना, लावारिस और पुकार - जीनत अमान और अमिताभ बच्चन की साथ में सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से थीं. जीनत पहली एक्ट्रेस थीं, जिन्होंने बच्चन ने कुली के दौरान हुए हादसे के बाद उनके साथ काम किया. अमिताभ ने शूटिंग फिर से शुरू करने के बाद जीनत के साथ पुकार फिल्म का गाना 'समंदर में नहा कर...' शूट किया था.

"एक बात जो मुझे अच्छी तरह से याद है, वो तब की है जब हम महबूब स्टूडियो में डॉन के लिए 'खइके पान बनारसवाला...' की शूटिंग कर रह थे. ये फिल्म में शामिल किया जाने वाला आखिरी गाना था. वो इसमें अपना बेस्ट देने के लिए इतने तत्पर थे कि वो 'एक और शॉट' के लिए तब तक कहते रहे, जब तक वो एकदम पर्फेक्ट नहीं हो गया."
- जीनत अमान -

SELECT A VIDEO REEL
रंग बरसे
ओ साथी रे
माई नेम इज एंथोनी गोंजाल्विस
खइके पान बनारस वाला
परदेसिया
देखा एक ख्वाब
तेरे मेरे मिलन की ये रैना
मेरे अंगने में
मेरे पास आओ मेरे दोस्तों
दो लफ्जों की है दिल की कहानी
कभी-कभी मेरे दिल में
जुम्मा चुम्मा दे दे
मीत ना मिला रे मन का
मच गया शोर सारी नगरी रे
अंग्रेजी में कहते हैं- खुद्दार
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
आज रपट जाए तो हमें ना
पग धुंधरू बांध मीरा नाची
एक रोज मैं तड़पकर- बेमिसाल
तेरे जैसा यार कहां
सारा जमाना हसीनों का दीवाना
दिलबर मेरे कब तक मुझे
ऐ यार सुन यारी तेरी
जानू मेरी जान
जहां तेरी ये नजर है
कजरा रे
तुम साथ हो जब
रोते हुए आते हैं सब
SELECT A VIDEO REEL
डॉन
दीवार
कालिया
शहंशाह
नमक हलाल
आनंद
शोले
शराबी
जंजीर
पिंक

शहंशाह में अमिताभ

बच्चन के लौटने के बाद जब शहंशाह फिर से शुरू हुई, तो आनंद ने कॉस्ट्यूम में मेटल का काम जोड़ दिया - ये आइडिया उन्हें फेंसिंग कॉस्ट्यूम देखकर आया था.

अमिताभ बच्चन की शहंशाह की कॉस्ट्यूम का वजन 14 किलो था, क्योंकि बच्चन के दाहिने हाथ पर मेटल का काम किया गया था. डायरेक्टर टीनू आनंद ने इससे पहले बच्चन के कंधे के चारों ओर एक रस्सी के साथ चमड़े की काले रंग की ड्रेस तैयार की थी.

कॉस्ट्यूम को अमिताभ के डिजाइनर अकबर ने बनाया था, लेकिन जब एक्टर मायस्थेनिया ग्रेविस के कारण बीमार पड़ गए और फिल्म बंद हो गई, तो उन्होंने इसे जीतेंद्र की फिल्म के लिए दे दिया.

सारा जमाना में अमिताभ

वो रॉबर्ट रेडफोर्ड की फिल्म से प्रभावित थे. उनकी जैकेट के हाथ में एक स्विच था, जिससे वो गाने की बीट के आधार पर बल्ब को ऑन और ऑफ कर पा रहे थे.

याराना का गाना 'सारा जमाना...' तब अमिताभ बच्चन की सिफारिश पर कलकत्ता में नए-नए बने नेताजी सुभाष चंद्र स्टेडियम में शूट हुआ था. जैकेट पर लाइट बल्ब लगाने का आइडिया भी अमिताभ का ही था.

दीवार में अमिताभ

दीवार में डॉक यार्ड कर्मचारी की वर्दी ते रूप में अमिताभ बच्चन की वो नीली कमीज सिलाई में हुई गलती का नतीजा थी. शूट का पहला दिन था, और कैमरा अमिताभ का इंतजार कर रहा था, जब उन्हें पता चला कि कॉस्ट्यूम डिजाइनर ने उन्हें जो कमीज दी है, वो इतनी लंबी है कि उनके घुटने तक आ रही है. क्योंकि कमीज के ठीक होने तक का इंतजार नहीं किया जा सकता था, अमिताभ ने उसे कमर के पास बांध ली जो बाद में ट्रेंड बन गया.

कुली में अमिताभ

786 - दीवार में अमिताभ का लाइसेंस नंबर कुली में भी दिखाई दिया, जिसमें पश्चिम रेलवे के कुली के रूप में उन्हें नंबर फिर 786 मिला. इस्लाम में पाक माना जाने वाला ये नंबर सलीम-जावेद (दीवार) और कादर खान (कुली) ने पॉपुलर कल्चर में फेमस कर दिया.

दीवार में 786 नंबर वाला ये बैज विजय (अमिताभ) को बुलेट से बचाता है. हालांकि, जब बैज गिर जाता है तो उन्हें गोली लगती है और उनकी मौत हो जाती है. कुली में, अपनी मां की गोद में बेहोश होने से पहले इकबाल (अमिताभ) दरगाह की मीनार पर अपने खून से 786 लिखते हैं.

जंजीर में अमिताभ

कहा जाता है कि बॉलीवुड में डेनिम को अमिताभ बच्चन लेकर आए. 1973 में रिलीज के बाद, फिल्म में अजीत से सामना वाले सीन में, अमिताभ ने जो डेनिम जैकेट और जींस पहनी थी, उसके बाद से भारत में इस फैब्रिक की डिमांड बढ़ गई. दो साल बाद शोले में अमिताभ और धर्मेंद्र ने जब डेनिम पहनी, तो ये देश में एक बड़ा फैशन ट्रेंड बन गया.

अमिताभ बच्चन को सेंट स्टीफंस कॉलेज ने रिजेक्ट कर दिया था, इसलिए उन्होंने 1959-62 तक दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज से बीएससी की पढ़ाई की.

अमिताभ को ऑल इंडिया रेडियो (AIR) में भी रिजेक्शन झेलना पड़ा था, जहां उन्होंने रेडियो प्रेजेंटर के लिए ऑडिशन दिया था.

AIR में अमिताभ बच्चन को रिजेक्ट करने वाले शख्स और कोई नहीं, बल्कि जाने-माने रेडियो अनाउंसर अमीन सयानी थे.

अमिताभ ने इलाहाबाद के बॉयज हाईस्कूल और फिर नैनीताल के शेरवुड कॉलेज से अपनी स्कूलिंग पूरी की.

उन्हें बचपन से ही एक्टिंग करने का काफी शौक था. अपने पहले प्ले में, अमिताभ एक कविता के दौरान पंख फड़फड़ाने वाला मुर्गा बने थे.

15 साल की उम्र में अमिताभ ने स्कूल में बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड जीता. 1958 में, अमिताभ को अगाथा क्रिस्टी की नॉवल 'And Then There Were None' पर आधारित प्ले में 60 साल के जज का रोल करने के लिए चुना गया था.

उन्हें यकीन था कि इसके लिए उन्हें फिर बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिलेगा. लेकिन वो बीमार पड़ गए और स्टेज पर परफॉर्म नहीं कर पाए. उनके पिता हॉस्टल में उनसे मिलने आए और उन्हें जिंदगी की सबसे अच्छी सलाह दी:

"मन का हो तो अच्छा,
और न हो तो ज्यादा अच्छा."

इलाहाबाद में
11 अक्टूबर 1942
को कवि हरिवंश राय बच्चन और सामाजिक कार्यकर्ता तेजी सिंह बच्चन के घर जन्म हुआ. उनका नाम इंकलाब श्रीवास्तव रखा गया.

उनके माता-पिता ने स्वतंत्रता आंदोलन के नारे 'इंकलाब जिंदाबाद' से प्रभावित हो कर उनका नाम इंकलाब रखा था. बाद में उनके दोस्त, कवि सुमित्रानंदन पंत के सुझाव पर उनका नाम अमिताभ रखा गया. इसके बाद पिता का उपनाम 'बच्चन' लगाने के बाद उनके नाम से श्रीवास्तव हट गया.

और इस तरह दुनिया उन्हें आज 'अमिताभ बच्चन' के नाम से जानती है.

AIR से रिजेक्ट होने के बाद, अमिताभ नौकरी की तलाश में कलकत्ता चले गए, जहां उन्हें Bird & Co.में नौकरी मिल गई - उनकी पहली सैलरी 480 रुपये थी.

काम के सिलसिले में अमिताभ को आसनसोल और धनबाद में कोयला खदानों में भी जाना पड़ता था. कोयला खदानों में मजदूरों की हालत और हादसों ने अमिताभ को काफी दुखी कर दिया. इन्हीं भावनाओं को अमिताभ ने फिल्म काला पत्थर में बखूबी पेश किया.

(Still from movie “Kaala Patthar”)कलकत्ता में रहते हुए अमिताभ ने थियेटर करना चालू रखा.

फिल्म इंडस्ट्री में आने की कोशिश में, उन्होंने फिल्मफेयर माधुरी टैलेंट कटेंस्ट में अप्लाई किया, लेकिन उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया.

अमिताभ मुंबई आ गए, और अपनी मेहनत जारी रखी, और सालों बाद उन्हें अपनी पहली फिल्म सात
हिंदुस्तानी
मिली.

मुंबई में स्ट्रगलिंग एक्टर के रूप में उनके शुरुआती सालों के दौरान, वो कॉमेडियन महमूद थे जिन्होंने अमिताभ बच्चन की क्षमता को पहचाना था. अमिताभ अक्सर महमूद के घर पर रुकते थे और दोस्तों के साथ नाइट-आउट के लिए उनकी कार उधार लेते थे. कई फ्लॉप फिल्मों के बाद जब अमिताभ ने एक्टिंग छोड़ने का फैसला किया, तो महमूद ने ही उन्हें अपनी फिल्म बॉम्बे टू गोवा में लीड रोल की पेशकश की. 1972 में रिलीज हुई ये फिल्म सुपरहिट रही और अमिताभ पर लेखक सलीम खान और जावेद अख्तर का ध्यान गया, जिन्होंने दिलीप कुमार और देव आनंद के रिजेक्ट करने के बाद उन्हें उन्हें जंजीर की पेशकश की.
जंजीर ने हमें एंग्री यंग अमिताभ बच्चन दिया.