इसी खंडर में कहीं कुछ दिए हैं टूटे हुए
इन्हीं से काम चलाओ बड़ी उदास है रात
ये अल्फाज इलाहाबाद की सरजमीं पर आंखे खोलने वाले रघुपति सहाय (Raghupati Sahay) की कलम से निकले थे, जिन्हें आज की दुनिया फिराक गोरखपुरी (Firaq Gorakhpuri) के नाम से याद करती है, 28 अगस्त को उनकी पैदाइश हुई थी. उर्दू के एक ऐसे मशहूर शायर, जिन्हें अंग्रेजी का बादशाह कहा गया. उर्दू के पहले ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित फिराक गोरखपुरी की लेखनी में रात का जिक्र बहुत जगहों पर आया है...कहा जाता है कि उन्हें नींद बहुत कम आती थी, वो देर रात तक जगा करते थे और लिखते रहते थे.
अपनी नज्म ‘आधी रात’ के एक हिस्से में वो लिखते हैं...
ख़ुनुक धुँदलके की आँखें भी नीम ख़्वाबीदा
सितारे हैं कि जहाँ पर है आँसुओं का कफ़न
हयात पर्दा-ए-शब में बदलती है पहलू
कुछ और जाग उठा आधी रात का जादू
ज़माना कितना लड़ाई को रह गया होगा
मिरे ख़याल में अब एक बज रहा होगा
फिराक गोरखपुरी: एक खुददार शख्सियत
फिराक गोरखपुरी बेहद खुददार किस्म के शायर थे. उन्होंने तमाम तरह की दुनियावी रवायतों के बारे में लिखने के साथ ही खुद के बारे में भी बड़े ही बेबाक अंदाज में लिखा. फिराक साहब अपने वक्त के लोगों से मुखातिब होकर लिखते हैं...
आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख़्र करेंगी हम-असरो,
जब भी उन को ध्यान आएगा तुम ने 'फ़िराक़' को देखा है.
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मध्यकालीन इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी ने फिराक गोरखपुरी के बारे में क्विंट से बात करते हुए कहा
फिराक साहब एक लीजेंड थे. उनका अंदाज आज भी याद आता है, जब वो बड़ी-बड़ी आंखों और सिगरेट के धुंए के साथ जब वो कहते थे...हां बरखुरदार!
उन्होंने आगे बताया कि जब फिराक साहब पढ़ाते थे तो उसमें हिंदी लिट्रेचर, उर्दू लिटरेचर और इंग्लिश लिटरेचर की बाध्यता नहीं थी. वो Wordsworth से शुरू करते थे तो उपनिषद तक चले जाते थे, वो पढ़ाते वक्त कुरआन की आयतों का जिक्र भी किया करते थे. उनकी तुलना किसी और के साथ नहीं की जा सकती है. उनकी नज्मों और गजलों में उपनिसषद के तत्व भी झलकते हैं.
प्रतापगढ़ के पीबी कॉलेज में अग्रेजी साहित्य के प्रोफेसर अरविंद सिंह, फिराक गोरखपुरी को अंग्रेजी का बादशाह कहते क्विंट को बताया कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में जब फिराक साहब क्लास में पढ़ाने के लिए आते थे तो विद्यार्थियों से कहा करते थे कि आप मुझसे दुनिया की किसी भी किताब के बारे में सवाल पूछ सकते हैं.
वो आगे बताते हैं कि फिराक साहब के पढ़ाने वाले दिनों में जितनी तारीफ ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की होती थी, उतनी ही इलाहाबाद विश्वविद्यालय की भी होती थी.
‘भारत में नेहरू को थोड़ी बहुत अंग्रेजी आती है’
फिराक गोरखपुरी और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के बीच अच्छी दोस्ती थी. अक्सर इलाहाबाद की महफिलों में दोनों साथ देखे जाते थे.
प्रोफेसर अरविंद सिंह बताते हैं कि
फिराक साहब मजाक और प्यार भरे लहजे में कहा करते थे कि भारत में अगर मेरे बाद किसी को सही ढंग से अंग्रेजी आती है, तो वो पंडित नेहरू हैं, जो टूटी-फूटी अंग्रेजी बोल लेते हैं.
फिराक गोरखपुरी सिर्फ अपने वक्त के ही शायर नहीं थे, उन्होंने जो लिखा उसे अगर आज के नजरिए देखा जाए तो उसमें मौजूदा वक्त की दुनिया भी नजर आती है. उन्होंने ‘आज की दुनिया’ उन्वान से एक नज्म लिखी, जिसमें वो लिखते हैं....
दुनिया को इंक़लाब की याद आ रही है आज
तारीख़ अपने आप को दोहरा रही है आज
वो सर उठाए मौज-ए-फ़ना आ रही है आज
मौज-ए-हयात मौत से टकरा रही है आज
कानों में ज़लज़लों की धमक आ रही है आज
हर चीज़ काएनात की थर्रा रही है आज
कहा जाता है कि फिराक साहब को गुस्सा बहुत आता था. वो जब इलाहाबाद के बैंक रोड इलाके में स्थित अपने घर पर गुस्से में बोला करते थे तो उनकी आवाज कटरा के लक्ष्मी टाकीज तक सुनाई पड़ती थी.
फिराक साहब में कई बार बगावत भी देखने को मिली. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र और सीनियर पत्रकार उर्मिलेश सिंह अपने एक वीडियो व्लॉग में कहते हैं कि एक बार इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों पर पुलिस ने क्रूरता के साथ लाठीचार्ज किया, इस दौरान फिराक साहब यूनिवर्सिटी में पढ़ाया करते थे.
जब उन्हें लाठीचार्ज के बारे में मालूम हुआ तो वो सड़कों पर आ गए और सवाल करने लगे कि कौन है, जो हमारे नवजवानों को इस तरह से पीट रहा है.
फिराक साहब ने अपनी ज़िंदगी में कई दर्द झेले, उनकी निजी ज़िंदगी में भी उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. उनकी मां उसी दिन दुनिया छोड़कर चली गईं थी, जिस दिन फिराक साहब की पैदाइश हुई थी.
उन्होंने बीस साल की उम्र में ‘जुगनू’ नज्म लिखी, जिसमें वो अपनी मां को याद करते हुए लिखते हैं...
सँवारा जिस ने न मेरे झंडूले बालों को
बसा सकी न जो होंटों से सूने गालों को
जो मेरी आँखों में आँखें कभी न डाल सकी
न अपने हाथों से मुझ को कभी उछाल सकी
वो माँ जो कोई कहानी मुझे सुना न सकी
मुझे सुलाने को जो लोरियाँ भी गा न सकी
वो माँ जो दूध भी अपना मुझे पिला न सकी
वो माँ जो हाथ से अपने मुझे खिला न सकी
‘एक निबंधकार भी थे फिराक गोरखपुरी’
प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी ने बताया कि फिराक साहब का एक ऐसा पक्ष जो छूट जाता है और इसका जिक्र बहुत कम ही जगहों पर मिलता है वो ये है कि फिराक साहब सामाजिक, राजनीतिक और समकालीन विषयों पर निबंध बहुत शानदार लिखा करते थे. उस वक्त में सिविल सर्विसेज के विद्यार्थी उनके Essays को जरूर पढ़ते थे. फिराक साहब के निबंधों का कलेक्शन अद्भुद था.
मैं हिंदी के भक्ति काल के कवि तुलसीदास पर कुछ काम कर रहा था और लगातार हिंदी जानने वालों के संपर्क में था क्योंकि मैं साइंस का स्टूडेंट होने की वजह से कभी उस दिन तरह से हिंदी नहीं पढ़ा था. इस सिलसिले फिराक साहब के साथ करीब मेरा तीन बार बैठना हुआ. उन्होंने बहुत अच्छे तरीके से मुझसे इस विषय पर बात की और मेरा ये लेख कलकत्ता के इंस्टीट्यूट ऑफ हिस्टोरिकल स्टडीज से पब्लिश हुआ, जिसको पढ़कर अज्ञेय जी ने काफी सराहा था. तो उनको मैंने बताया कि शब्दावली को छोड़कर इसमें सब कुछ फिराक साहब का ही है, मैंने इसमें सिर्फ खानापूर्ति ही की है.प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी, मध्यकालीन इतिहास विभाग, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी
उन्होंने आगे कहा कि इससे यह पता चलता है कि फिराक साहब ना केवल उर्दू और अंग्रेजी साहित्य बल्कि हिंदी साहित्य पर भी अच्छी पकड़ रखते थे. जीनियस को लोग समझ नहीं पाते हैं क्योंकि हम अपनी नजरों और सीमित ज्ञान के नजरिए उसे देखते हैं. फिराक साहब एक साथ कई लेवल पर जीते थे, वर्ल्ड लिट्रेचर के साथ-साथ वर्ल्ड हिस्ट्री पर भी बात किया करते थे.
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