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IPL Vs इंटरनेशनल: क्रिकेटरों को 'राष्ट्रवाद Vs करियर' के फेर में मत डालो

दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों के लिए तसल्ली की बात ये है कि उनके बोर्ड का BCCI से करार है

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“मुझे ये नहीं पता कि वो खिलाड़ी फिर से चुने जाएंगे, ये मेरे हाथ में नहीं है,”
डीन एल्गर, साउथ अफ्रीका के टेस्ट कप्तान

बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीतने के बाद साउथ अफ्रीका के टेस्ट कप्तान डीन एल्गर ने जब ये बयान दिया तो निश्चित रुप से कगीसो रबाडा, ऑनरिक नोकिया, मार्को यानसेन और एडेन मार्कम समते कई खिलाड़ियों को बैचेनी महसूस हुई होगी. ये खिलाड़ी फिलहाल IPL 2022 में खेल रहे हैं. और अपने मुल्क के लिए हालिया टेस्ट सीरीज में नहीं खेले थे. खिलाड़ियों की बैचेनी बढ़ने की एक वजह ये भी हो सकती है कि कप्तान के साथ कोच मार्क बाउचर ने भी कमोबेश ऐसी ही बातें कही हैं.

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साउथ अफ्रीका बोर्ड का BCCI से करार

अफ्रीकी खिलाड़ियों के लिए अगर तसल्ली की बात कुछ है तो ये कि उनके बोर्ड का करार BCCI से है और जिसके चलते पिछले डेढ़ दशक से अफ्रीकी खिलाड़ियों के आईपीएल में खेलने से किसी तरह का विवाद नहीं बनता था. लेकिन, एल्गर थोड़े अलग मिजाज के कप्तान हैं. उन्होंने पहले ही खिलाड़ियों को चेताया था कि उन्हें सोचने की जरुरत है कि वो टेस्ट और वन-डे के बूते IPL में आए हैं ना कि IPL के चलते अपनी राष्ट्रीय टीम में.

खिलाड़ियों की दुविधा

अब आप खिलाड़ियों की दुविधा को बारे में सोचिए. वो अपने देश के बारे में सोचें या फिर पेशेवर करियर के बारे में. किसी भी खिलाड़ी के लिए एलीट स्तर पर खेलने के बहुत कम ही साल होते हैं और ऐसे में हर किसी की इच्छा होती है कि वो इसका ज्यादा से ज्यादा फायदा उठा सके. क्रिकेट साउथ अफ्रीका का उनके खिलाड़ियों की संस्था के साथ इस बात पर सहमति बनी हुई है कि खिलाड़ियों को अपनी जीविका के लिए IPL जैसी निजी लीग में खेलने देश के लिए खेलने के बीच सांमजस्य होना चाहिए. और इसके लिए वो किसी को विवश नहीं कर सकते हैं.

तो ऐसे में क्या ये मान लिया जाय कि एल्गर ने बस यूं ही राष्ट्रवाद का मुद्दा उठा दिया है वो भी इसलिए कि क्योंकि वो खुद IPL में नहीं खेलते हैं क्योंकि उनकी ताकत टेस्ट क्रिकेट में हैं?
दक्षिण अफ्रीकी खिलाड़ियों के लिए तसल्ली की बात ये है कि उनके बोर्ड का  BCCI से करार है

डीन एल्गर

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IPL बनाम इंटरनेशनल का विवाद भारत में भी

भारतीय क्रिकेट भी राष्ट्रवाद के ऐसे संवेदनशील मुद्दे से परे नहीं है. जब भी विराट कोहली या रोहित शर्मा थकाऊ कैलेंडर का हवाला देकर इंटरनेशनल मैचों से ब्रेक लेते हैं तो ये सवाल अक्सर उठता है कि आखिरी खिलाड़ी IPL के दौरान ब्रेक क्यों नहीं लेते.

ये सवाल भी थोड़ा अजीब है क्योंकि हर फ्रैंचाइजी इन बड़े सितारों को करोड़ों रुपये खर्च करके टीम में इसलिए शामिल करती है ताकि ट्रॉफी जीती जा सके और भरपूर ब्रांडिंग का फायदा मिले. लेकिन, इसमें खिलाड़ियों की भी गलती पूरी तरह से नहीं क्योंकि बीसीसीआई ऐसा कैलेंडर बनाती है कि पूरे साल टीम इंडिया या तो टेस्ट या वन-डे या फिर टी20 मैच खेलने में व्यस्त रहती है.

BCCI की पुराने जमाने से सबसे सुरक्षित दलील यही है कि अगर खिलाड़ियों को थकान लगती है तो वो ब्रेक ले लें.

दरअसल, ना चाहते हुए भी और अनजाने में ही सही, सीनियर खिलाड़ियों के लिए देश के लिए ना खेलने पर उसका फायदा टीम इंडिया को हुआ है. अगर टॉप खिलाड़ी जिमबाब्वे और बांगलादेश जैसे मैचों में आराम नहीं लेते तो ना जाने कितनी ही युवा प्रतिभाओं को मौके भी नहीं मिलते.
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इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया में भी विवाद

बहरहाल, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में क्लब बनाम देश का मुद्दा IPL के पहले आयोजन यानि 2008 से ही जारी है. इंग्लैंड ने उस साल अपने किसी भी खिलाड़ी को IPL में खेलने नहीं भेजा लेकिन धीरे-धीरे उन्हें अपना रुख नरम करना पड़ा और आज करीब दर्जन भर इंग्लिश खिलाड़ी IPL का हिस्सा हैं. इसके बावजूद जब जब वहां टेस्ट में टीमें खराब खेल दिखाती हैं तो IPL को निशाना बनाया जाता है. और इसलिए इस बार बेन स्टोक्स जैसे दिगग्ज ने IPL खेलने से मना कर दिया.

इंग्लैंड के लिए वर्ल्ड कप जीतने वाले कप्तान ऑयन मार्गन ने हमेशा से ही IPL में खेलने की वकालत की जिसका फायदा उनके युवा खिलाड़ियो को हुआ. IPL के हिमायती तो ऑस्ट्रेलियाई भी शुरू से रहे हैं लेकिन इस बार उन्होंने भी पाकिस्तान दौरे के चलते अपने कई अहम खिलाड़ियों को IPL के शुरुआती मैचों में खेलने नहीं दिया. जबकि टेस्ट कप्तान पैट कमिंस, जोश हेजलवुड और डेविड वार्नर पाकिस्तान में सफेद गेंद की टीमों का हिस्सा नहीं थे.

लेकिन वेस्टइंडीज, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश और अफगानिस्तान ने समझ लिया है कि IPL के लिए अपने खिलाड़ियों की राहों में रोढ़ा अटकाना सही नहीं है. इससे ना तो खिलाड़ियों का भला होता है और ना ही मुल्क का. साउथ अफ्रीका को भी ये बात बखूबी पता है. पिछले 15 सालों से उन्होंने इसे निभाया भी है लेकिन यदा-कदा राष्ट्रवाद की लहर उनकी क्रिकेट में भी करवटें लेने लगती हैं!

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