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भारत में ओलंपिक कराने के अरमान,देखिए दूसरे देशों का क्या हुआ अंजाम

केजरीवाल और अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने ओलंपिक खेलों की मेजबानी में दिलचस्पी दिखाई

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मार्च 2021 में जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2048 में ओलंपिक की मेजबानी करने के अपने विजन के बारे में बताया तो शायद ही किसी ने उसपर दुबारा विचार किया होगा. कई भारतीय नेताओं और खेल प्रशासकों ने भारत में ओलंपिक आयोजन करने के अपने सपने के बारे में बताया है लेकिन कभी भी भारत ने इसके लिए आधिकारिक दावेदारी नहीं की है. 2010 के कॉमनवेल्थ खेलों के अनुभव के बाद किसी को इसके लिए शिकायत भी नहीं है.

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लेकिन पिछले सप्ताह अहमदाबाद अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (AUDA) ने सबको चौका दिया जब उसने 2036 ओलंपिक खेलों की मेजबानी को लेकर शहर के इंफ्रास्ट्रक्चर तथा खेल और गैर-खेल वेन्यू के मूल्यांकन के लिए कंसलटिंग फर्मों से प्रस्ताव आमंत्रित किया.

अब यह लगभग स्पष्ट है कि अगर कभी भारत नरेंद्र मोदी सरकार के अंतर्गत ओलंपिक की मेजबानी करने की दावेदारी करता है तो उसमें शामिल शहरों में अहमदाबाद जरूर होगा. गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी ओर इशारा किया जब उन्होंने 3 महीने पहले नरेंद्र मोदी स्टेडियम में भारत और इंग्लैंड के बीच हुए डे-नाइट टेस्ट के पहले स्टेडियम के उद्घाटन के समय यह कहा कि प्रस्तावित सरदार पटेल स्पोर्ट्स एनक्लेव के निर्माण से अंतरराष्ट्रीय इवेंटों की मेजबानी में मदद मिलेगी.

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इन सभी घोषणा के बावजूद AUDA का फर्मों से प्रस्ताव मंगाने की खबर ने कईयों को आश्चर्यचकित कर दिया होगा, क्योंकि इंटरनेशनल ओलंपिक काउंसिल (IOC) ने 2032 खेलों की मेजबानी देने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है और 2036 ओलंपिक आयोजन किस शहर में हो, इसकी चर्चा शुरू होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.

शुक्र है अहमदाबाद और भारत को पहले ही टेंडर निकालने और प्रपोजल तैयार करने के लिए पर्याप्त धन खर्च करने की जरूरत नहीं है क्योंकि IOC का नया रोडमैप पहले संभावित मेजबान देशों के कमीशन से अनौपचारिक बातचीत से शुरू होता है और उसे किसी खास संस्करण विशेष के लिए प्रपोजल देने की जरूरत नहीं होती.दिलचस्प बात यह है कि एक इच्छुक देश इन बातचीत के दौरान खेलों की मेजबानी के लिए कई शहरों या क्षेत्रों का नाम प्रस्तावित कर सकता है और कमीशन अंततः यह निर्णय लेता है कि संभावित मेजबान ओलंपिक खेलों या यूथ ओलंपिक खेलों के लिए उपयुक्त है या नहीं और अगर उपयुक्त है तो किस संस्करण के लिए.

इसका यह भी मतलब है कि 2036 ओलंपिक के लिए भारत के आधिकारिक दावे के पहले लंबी प्रक्रिया है और उस पर चर्चा बाद में भी की जा सकती है. इससे पहले कि हम उस पर चर्चा करें ,शायद हमें इस पर बात करनी चाहिए कि क्या ओलंपिक को भारत में आयोजित करने का महत्व है भी?

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भारत में ओलंपिकःक्या इसकी जरूरत है?

ऐसे मल्टी-डिसिप्लिन इवेंट की मेजबानी करने के पीछे प्राथमिक तर्क यह होता है कि मेजबान शहर को न केवल अत्याधुनिक खेल सुविधाएं मिलती हैं बल्कि बेहतर सड़क नेटवर्क, सार्वजनिक परिवहन और अन्य नागरिक सुविधाओं का भी तेजी से विकास होता है.साथ ही ऐसे आयोजनों से शहर और देश के पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद रहती है.

लेकिन इसके बदले में चुकाया गया मूल्य वाजिब है भी? बात सिर्फ 28 तरह के खेलों के लिए स्टेडियम बनाने की नहीं है. 2018 में IOC द्वारा जारी 'ऑपरेशनल रिक्वायरमेंट' के अनुसार मेजबान शहर में खेल के विभिन्न स्टेकहोल्डर्स के लिए 40,000 से ज्यादा होटल के कमरे, टैक्स में छूट और अन्य सुविधाओं को तय समय में उपलब्ध कराना होता है. इन सब को मिलाकर इसका वास्तविक मूल्य हमारे अनुमानों से कहीं ज्यादा हो जाता है.
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पिछले ओलंपिक संस्करणों के अनुभव से पता चलता है कि इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उतनी गारंटी नहीं होती, जितना कि माना जाता है. और हमें सोचना चाहिए कि इसके लिए इस पैमाने पर खर्च करना क्या वाजिब है. 2016 रियो ओलंपिक में ब्राजील को 13 बिलियन डॉलर से भी ज्यादा खर्च करना पड़ा जबकि टोक्यो ओलंपिक की लागत पहले ही 15 बिलियन डॉलर पार कर चुकी है

यह सबको पता है कि ग्रीस अभी भी 2004 के एथेंस ओलंपिक की मेजबानी के बाद के आर्थिक संकट से जूझ रहा है. यहां तक कि कनाडा जैसा विकसित देश, जहां मॉन्ट्रियल शहर ने 1976 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी की थी और उस पर किए गए 1.6 बिलियन डॉलर के खर्च के बाद वह भी 2006 तक कर्ज में डूबा रहा.

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क्या भारत लॉस एंजिल्स प्रॉफिट मॉडल को दोहरा सकता है?

प्रॉफिट बनाने वाला पहला ओलंपिक 1984 का लॉस एंजिल्स गेम्स था ,जिसने खेलों में कॉर्पोरेट स्पॉन्सरशिप के युग की शुरुआत की. इसमें टेलीविजन राइट्स 1980 की अपेक्षा 3 गुने ज्यादा दाम में बेचे गए थे. तब से हर अगले ओलंपिक में टेलीविजन राइट्स का मूल्य बढ़ा है लेकिन वह पैसा अब IOC को जाता है.

IOC खेलों के आयोजन के लिए मेजबान देश को खेल आयोजित करने और ब्रॉडकास्टिंग के लिए कुछ राशि देता है. खेल के आयोजक अपने देश में ओलंपिक राइट्स को बेचकर, नेशनल पार्टनरशिप प्रोग्राम बनाकर और इवेंट्स का टिकट बेचकर फंड जुटा सकते हैं. रोम ओलंपिक के लगभग 13.1 बिलियन डॉलर के कुल बजट में से IOC ने 1.5 बिलियन डॉलर का योगदान किया था.

LA एक बार फिर 2028 ओलंपिक की मेजबानी के लिए तैयार है और उसके आयोजक फिर से इसे वित्तीय विवेक का उदाहरण बनाने की बात कर रहे हैं .LA 2028 के आयोजकों ने कहा है कि उन्हें स्टेडियम या एरिना बनाने की जरूरत नहीं होगी क्योंकि वें पहले से मौजूद इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग करेंगे और बाकी का काम निजी फंडिंग के माध्यम से किया जाएगा.
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बावजूद इसके आयोजकों ने मुद्रास्फीति के कारण 1.35 बिलियन डॉलर की वृद्धि के बाद कुल बजट 6.88 बिलियन डॉलर का बताया है. हाल के दिनों में हुए किसी भी ओलंपिक खेलों पर नजर डालें तो उसे अपने अनुमानित बजट से औसतन 50% अधिक खर्च करना पड़ता है.

अब चाहे अहमदाबाद हो या कोई अन्य भारतीय शहर ,उसमें से कोई भी मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर का उपयोग ओलंपिक खेलों में करने का दावा नहीं कर सकता. इसका मतलब यह है कि इंफ्रास्ट्रक्चर की लागत को कम करने का एकमात्र तरीका उसे पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में बनाना है और उसका प्रयोग खेलों की मेजबानी के बाद कॉर्पोरेट खुद करे. भारत में मौजूद स्पोर्ट्स कल्चर को देखते हुए यह पता लगा पाना मुश्किल है कि इसके लिए कितने कॉरपोरेट आगे आयेंगे.

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अतीत की गलतियों से सीखना

एक शहर को विकसित करने के लिए आवश्यक सभी नागरिक इंफ्रास्ट्रक्चर को बिना ओलंपिक खेलों के मेजबानी के भी तैयार किया जा सकता है. इसके लिए प्रशासकों और राजनेताओं के पास सही विज़न होना चाहिए. इस संदर्भ में 2010 कॉमनवेल्थ खेलों की मेजबानी करने का भारत का अनुभव बहुत अधिक आत्मविश्वास नहीं जगाता है.बिजनेस टुडे के एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने 7.5 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च किया जो UK द्वारा 2012 के लंदन ओलंपिक में किए गए खर्च का आधा था. हालांकि कुछ लोगों का अनुमान है कि वास्तविक लागत 10 बिलियन डॉलर से अधिक थी. कॉमनवेल्थ की तुलना ओलंपिक से नहीं की जा सकती और ना ही प्रतिभागियों की संख्या और आवश्यक सुविधाओं की.

इसके अलावा दिल्ली में बनाए गए खेल इंफ्रास्ट्रक्चर ने शायद ही भारतीय खेलों में कोई क्रांति लाई है क्योंकि देश में स्पष्ट रूप से आवश्यक स्पोर्ट्स कल्चर का अभाव है. इसके अलावा अधिकतर स्टेडियम बस 'देखने की चीज' बनकर रह गए हैं क्योंकि वह आम आबादी की सीमा के बाहर हैं और उनका रखरखाव लागत काफी अधिक है. अहमदाबाद या भारत के किसी अन्य शहर के ओलंपिक की मेजबानी के सपने का भी हाल यही होना है.
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ध्यान इसकी जगह खिलाड़ियों पर देना चाहिए

जब भारत के एकमात्र व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा से भारत द्वारा ओलंपिक की मेजबानी करने का प्रश्न किया गया तो उन्होंने बड़ा सटीक जवाब दिया. उन्होंने कहा कि भारत के लिए मेजबानी का तब सही समय होगा जब देश के पास कम से कम 40 स्वर्ण पदक जीतने का वास्तविक मौका हो.

भारत में सबसे ज्यादा मेडल 2012 ओलंपिक खेल में जीते थे (6) और अभी किसी भी रंग के 40 मेडल जीतने की बात दूर की कौड़ी है. भारत जैसे देश के लिए समय की मांग है कि वह देश भर में अच्छी गुणवत्ता वाले खेल इंफ्रास्ट्रक्चर को तैयार करें ,बजाय इसके कि वह कुछ चुनिंदा बड़े शहरों में ओलंपिक जैसे खेल की मेजबानी करें, वह भी तब जब भारत विश्व स्तर पर कड़ी दावेदारी के लिए तैयार नहीं है.
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यह बहुत हद तक संभव है कि जब अहमदाबाद के अधिकारी 2036 में ओलंपिक खेलों की मेजबानी का सपना देख रहे हैं तब वह उसके 2 साल आगे या पीछे यूथ ओलंपिक की मेजबानी करके संतुष्ट हो जाए.

जो भी हो,इसकी जगह कंसलटेंसी फर्म को इस बात का मूल्यांकन करना चाहिए कि क्या इसमें से किसी भी खेल की मेजबानी से उस शहर या पूरे देश को कुछ फायदा होगा? क्या इसमें लगी लागत और किया गया निवेश उसके रिटर्न से ज्यादा होगा? क्या मेजबानी करना वाजिब भी है?

( अभिजीत कुलकर्णी दो दशक से ज्यादा समय से पत्रकारिता जगत में हैं और 2003 से वह स्पोर्ट्स कवर कर रहे हैं. उन्होंने 'द गोपीचंद फैक्टर' नामक किताब भी लिखी है)

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