भारतीय महिला क्रिकेट में एक बदलाव की शुरूआत हो गई है. अब बीसीसीआई (BCCI) के सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट में शामिल महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को भी पुरुषों के बराबर मैच फीस मिलेगी. बीसीसीआई की अपेक्स काउंसिल ने यह ऐतिहासिक फैसला किया है. बोर्ड के सचिव जय शाह (Jay Shah) ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. इस फैसले का सोशल मीडिया पर लोगों के स्वागत भी किया है, और कुछ ने सवाल भी खड़े किए हैं.
BCCI ने एक फैसले में कहा है कि महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को भी पुरुष टीम के बराबर ही फीस मिलेगी.
हालांकि, BCCI ने महिला क्रिकेट टीम की कॉन्ट्रैक्ट फीस नहीं बढ़ाई है. पुरुष टीम के ग्रेड सी प्लेयर को जहां 1 करोड़ की कॉन्ट्रैक फी मिलती है, तो नहीं महिला टीम की ग्रेड ए प्लेयर को 50 लाख रुपये मिलते हैं.
BCCI ने अपनी सलाना इनकम में महिला खिलाड़ियों को मिलने वाले हिस्से में भी कोई बदलाव नहीं किया है.
27 अक्टूबर को जय शाह ने ट्वीट किया, "मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है भेदभाव मिटाने की दिशा में बीसीसीआई ने पहला कदम उठाया है. हम बोर्ड से अनुबंधित महिला क्रिकेटर के लिए समान वेतन की पॉलिसी लागू कर रहे हैं. अब महिला और पुरुष दोनों क्रिकेट खिलाड़ियों को एक जैसी मैच फीस मिलेगी. इसके जरिए हम क्रिकेट में लैंगिक समानता के एक नए युग में प्रवेश कर रहे हैं."
नई नीति के मुताबिक,अब महिला क्रिकेट खिलाड़ियों को पुरुषों के बराबर मैच फीस मिलेगी, जिसमें महिला क्रिकेट टीम के सदस्यों को प्रत्येक टेस्ट मैच के लिए 15 लाख, वनडे के लिए 6 लाख और T20 के लिए 3 लाख रुपये मिलेंगे.
महिला और पुरुष खिलाड़ियों को बराबर राशि देने का बीसीसीआई का फैसला अच्छा है और इसे जेंडर पे गैप को खत्म करने की दिशा में पहला कदम कहा जा सकता है. हालांकि, शाह का कहना कि इस कदम से भारतीय क्रिकेट में 'लैंगिक समानता' का एक नया युग शुरू होगा, इसमें संशय है.
मैच फीस समान, लेकिन कॉन्ट्रैक्ट अलग-अलग क्यों ?
भारत की राष्ट्रीय टीमों को उनके वेतन का भुगतान दो भागों में किया जाता है. पहला नेशनल कॉन्ट्रैक्ट के माध्यम से और दूसरा मैच फीस के माध्यम से. इसलिए बोर्ड के इस नए कदम से पुरुष और महिला क्रिकेटरों दोनों को समान राशि मैच शुल्क प्राप्त करने की अनुमति मिलेगी, लेकिन महिला टीम को दिए जाने वाले सालाना कॉन्ट्रैक्ट में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
बीसीसीआई ने सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट पुरुष खिलाड़ियों की लिस्ट को चार ग्रेड में बांटा हैं- ग्रेड ए प्लस खिलाड़ियों के लिए 7 करोड़ रुपये, ग्रेड ए खिलाड़ियों के लिए 6 करोड़ रुपये, ग्रेड बी खिलाड़ियों के लिए 3 करोड़ रुपये और ग्रेड सी के लिए 1 करोड़ रुपये.
इस बीच, महिला खिलाड़ियों में उच्चतम श्रेणी (ग्रेड ए) को 50 लाख रुपये, ग्रेड बी को 30 लाख रुपये और ग्रेड सी को प्रत्येक को 10 लाख रुपये मिलते हैं.
असमानता देखिए
ग्रेड ए महिला क्रिकेटरों, जैसे कि कप्तान हरमनप्रीत कौर या स्मृति मंधाना, को मिलने वाली राशि कुलदीप यादव या वाशिंगटन सुंदर जैसे किसी व्यक्ति को भुगतान की जा रही राशि का आधा है, जो पुरुषों के कॉन्ट्रैक्ट में ग्रेड सी में आते हैं, और यहां तक कि टीम इंडिया में रेगुलर भी नहीं हैं.
इसका मतलब भारतीय महिला टीम की एक टॉप खिलाड़ी पुरुष टीम के उस खिलाड़ी की सालाना कमाई का आधा भी नहीं कमाती है, जो टीम में रेगुलर नहीं है.
भारतीय महिला टीम की प्रमुख खिलाड़ी, कप्तान हरमनप्रीत ने 1 अक्टूबर, 2021 से अब तक 20 T20I और 17 ODI खेले हैं, जबकि कुलदीप यादव ने इसी अवधि में केवल 7 मैच- 2 T20 और 7 वनडे मैच खेले हैं.
पिछले कैलेंडर वर्ष में कुलदीप की तुलना में ज्यादा मैच खेलने के बावजूद, हरमनप्रीत अभी भी अपने पे-स्केल के मामले में उनसे से काफी पीछे है. ये भारतीय क्रिकेट में अभी भी मौजूद जेंडर पे गैप का एक बड़ा उदाहरण है.
यहां इस बात को भी नहीं भूलना चाहिए कि बीसीसआई ने इनकम के एक भाग को छुआ तक नहीं है.
बोर्ड की सालाना इनकम में से 26 फीसदी खिलाड़ियों को दिया जाता है, इसमें से 13 फीसदी पुरुष खिलाड़ियों को, 10.3 फीसदी घरेलू क्रिकेटरों को और 2.7 फीसदी जूनियर क्रिकेटर और भारत की बड़ी महिला क्रिकेटरों के बीच बांटा जाता है. केवल 2.7 फीसदी!
ज्यादा मैच मतलब ज्यादा पैसा
अगर बीसीसीआई के इस कदम का जश्न मनाना है, तो यह महिला और पुरुष टीमों द्वारा खेले जाने वाले मैचों की संख्या के बीच असमानता पर एक नजर डाले बिना नहीं किया जा सकता है.
पिछले एक साल में, महिला टीम ने कुल 23 T20I और 18 ODI खेले, जिसमें कॉमनवेल्थ गेम्स के 5 T20I और ODI विश्व कप के 7 मैच शामिल हैं. उन्होंने एक भी टेस्ट मैच में हिस्सा नहीं लिया. इस बीच, BCCI ने पुरुषों की टीम को पिछले अक्टूबर से 40 T20I, 18 ODI और 8 टेस्ट मैच खेले हैं.
भारतीय महिला किक्रेटर पहले से ही पुरुषों की तुलना में कम मैच खेल रही हैं, और पिछले वर्ष में कोई टेस्ट नहीं होने के कारण, यह नया कदम बीसीसीआई के 'भेदभाव से निपटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम' के बारे में कितना कुछ कहता है, खुद ही सोचिए.
नई नीति तभी कारगर होगी जब बीसीसीआई और आईसीसी अगले साल खेले जाने वाले महिला मैचों की संख्या बढ़ाने की कोशिश करें.
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