अलग-अलग कोच अपने खिलाड़ियों को मोटिवेट करने के लिए अलग-अलग तरीके अपनाते हैं. कोच प्रवीण आमरे ने खुलासा किया कि वो टेस्ट क्रिकेट खेलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे श्रेयस अय्यर (Shreyas Iyer) को मोटिवेट करने के लिए बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन की एक लोकप्रिय कविता पढ़ते थे.
श्रेयस ने शुक्रवार को कानपुर के ग्रीन पार्क स्टेडियम में न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट डेब्यू पर शानदार शतक बनाया और यह उपलब्धि हासिल करने वाले 16वें भारतीय बन गए.
उन्होंने मैच के दूसरे दिन 75 के ओवरनाइट स्कोर पर अपनी पारी फिर से शुरू की और इसके तुरंत बाद अपना पहला शतक पूरा किया. मुंबई में लाइव एक्शन देखते हुए, आमरे स्वाभाविक रूप से खुश हो रहे थे.
2014-15 में प्रथम श्रेणी में डेब्यू के बाद से श्रेयस घरेलू टूर्नामेंटों में बड़े स्कोर कर रहे हैं. हर सीजन में 500 से अधिक रन बनाते हैं. हालांकि किसी तरह वो भारतीय टेस्ट टीम के प्लेइंग 11 में जगह नहीं बना पा रहे थे.
श्रेयस अय्यर कोच प्रवीण आमरे की ही खोज हैं जिन्होंने 1992 में टेस्ट डेब्यू पर खुद शतक बनाया था. उन्होंने कहा कि, अपनी टेस्ट कैप का इंतजार करते हुए अय्यर धैर्य खो रहा था. जब कोच आमरे ने श्रेयस अय्यर को धैर्य खोते देखते तो वे श्रेयस का मोटिवेट रखने के लिए हरीवंश राय बच्चन की कविता पढ़ने लगते- 'मन का हो जाए तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा' -
कोच आमरे ने दिया अपना उदाहरण
आमरे ने शुक्रवार को द क्विंट को बताया कि
उन्होंने कहा, "'मैंने उन्हें अपना उदाहरण दिया कि मुझे टेस्ट डेब्यू के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा. मैंने श्री हरिवंशराय बच्चन की कविता 'मन का हो जाए तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा' को पढ़ा. श्रेयस को लगा कि उन्हें मौका बहुत पहले मिल जाना चाहिए था, लेकिन मैं उन्हें प्रेरित करने और अपना समय बिताने में मदद करने के लिए श्री बच्चन की कविता की याद दिलाता रहा, "प्रवीण आमरे
उन्होंने आगे कहा कि “मैंने यह कविता कहीं पढ़ी थी. मुझे यह पसंद आया और इसे अपनी डायरी में लिख लिया. जब मैंने देखा कि श्रेयस यूएई में हाल ही में हुए टी20 विश्व कप के लिए नहीं चुने जाने से निराश हैं, तो मैंने उन्हें यह कविता पढ़कर सुनायी. याद रखें, मार्च में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय श्रृंखला के दौरान उनके कंधे में चोट लगने के बाद उन्हें विश्व कप के लिए नहीं चुना गया था और उन्हें कुछ महीनों के लिए कार्रवाई से बाहर कर दिया गया था, न कि रनों की कमी के कारण.”
अजिंक्य को करना पड़ा था लंबा इंतजार
1992 और 1993 में 11 टेस्ट खेलने वाले मुंबई के बल्लेबाज आमरे ने याद दिलाया कि उन्हें और उनके एक और खोज अजिंक्य रहाणे दोनों को टेस्ट डेब्यू करने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ा.
“मुझे उसी वेटिंग गेम से गुजरना पड़ा. भारत में डेव्यू करने से पहले 1992-93 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ डरबन में मैं भारत के लिए 14 टेस्ट मैचों में 12वां खिलाड़ी था. यहां तक कि अजिंक्य भी डेब्यू करने से पहले 18 मैचों के लिए भारतीय टेस्ट टीम में थे. इसलिए, मुझे पता है कि बड़े ब्रेक का इंतजार करते हुए किसी को क्या करना पड़ता है. इसलिए मैं श्रेयस को समझा सकता था कि इंतजार इसके लायक था.प्रवीण आमरे
उन्होंने अय्यर को समझाया कि "इंतजार के समय व्यक्ति को स्वयं पर नियंत्रण रखना होता है, और वही करना होता है जो उसके नियंत्रण में होता है. किसी चीज के बारे में बात करना आसान होता है, लेकिन उसे करना मुश्किल होता है. उस प्रतीक्षा चरण से गुजरने के लिए मानसिक रूप से मजबूत होना होगा और श्रेयस ने कानपुर में दिखाया है कि वह वास्तव में मानसिक रूप से मजबूत क्रिकेटर हैं."
थोड़ा दार्शनिक होते हुए, आमरे ने कहा कि 26 वर्षीय श्रेयस को अब खेलना तय था, पहले नहीं. "यदि आप इसके बारे में सोचते हैं, तो यह सब नियति है.
उन्होंने कहा कि "अगर विराट कोहली, रोहित शर्मा और केएल राहुल इस टेस्ट के लिए भारतीय टीम में होते उन्हें आराम न दिया गया होता, तो श्रेयस कानपुर के 12वें खिलाड़ी भी नहीं होते. ऐसा ही कुछ अजिंक्य के साथ भी हुआ था. भारतीय टीम के 36 रन पर ऑल आउट होने और पिछले साल के अंत में ऑस्ट्रेलिया से पहला डे-नाइट टेस्ट हारने के बाद, अजिंक्य ने कोहली की अनुपस्थिति में टीम की कप्तानी की और भारत ने चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला 2-1 से जीती. भारतीय क्रिकेट इतिहास से एक लीडर के रूप में अजिंक्य का नाम कोई नहीं मिटा सकता."
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