आईपीएल 2021 का पहला मुकाबला दिलचस्प तरीके से दो ऐसे खिलाड़ियों की टीमों के बीच रखा गया है जिसे लेकर सोशल मीडिया में उनके फैंस अक्सर टकरा जातें हैं. अगर रोहित शर्मा की मुंबई इंडियंस आईपीएल में खिताबों की हैट्रिक लगाने के इरादे से अपने अभियान की शुरुआत करेगी तो विराट कोहली अब भी यही सोच और असमंजस में घिरे दिखेंगे कि आखिर टीम इंडिया के कप्तान वाली कामयाबी उन्हें आईपीएल में क्यों नहीं मिलती है.
IPL में कोहली का साथ देने वाला कोई नहीं?
टीम इंडिया के लिए कप्तान के तौर कोहली की कई नाकामी आसानी से छिप जाती हैं क्योंकि उनके पास एक से बढ़कर एक मैच जिताने वाले खिलाड़ी हैं तो उप-कप्तान और सीनियर खिलाड़ियों के तौर पर अंजिक्या रहाणे, रोहित और आर अश्विन जैसे सुलझे हुए शख्स हैं. लेकिन, आईपीएल में कोहली का साथ देने वाला कोई नहीं होता है.
आखिर ये महज इत्तेफाक ही तो नहीं हो सकता है ना कि साल 2013 में दोनों ने अपनी अपनी फ्रैंचाइजी की बागडोर संभाली और एक ने दनादन 5 ट्रॉफी अपने नाम कर ली तो दूसरा सिर्फ एक बार फाइनल तक ही पहुंच पाया. निसंदेह, अंत्तराष्ट्रीय क्रिकेट में बल्लेबाज और कप्तान के तौर पर(खास तौर पर टेस्ट क्रिकेट में आकंड़ों के लिहाज से) कोहली के आगे रोहित कही नहीं ठहरतें हैं लेकिन वो क्या है ना हर साल के दो महीने ऐसे होते हैं जहां पर जलवा रोहित का होता है बल्लेबाज के तौर पर भी और तूती उन्हीं की बोलती है, कप्तान के तौर पर.
हैरान करने वाली बात ये भी है कि जहां कोहली को RCB का स्वभाविक कप्तान बहुत पहले से मान लिया गया और जिम्मेदारी 2013 में दी गई वहीं रोहित को ये मौका अचानक इसलिए मिला क्योंकि नियमित कप्तान रिकी पोटिंग का फॉर्म खराब हो गया था. तब से लेकर अब तक आईपीएल में दोनों दिग्गजों के कप्तानी के सफर पर गौर करेंगे तो ऐसा लगेगा कि एक के पास जीतने का वरदान है तो दूसरे के पास लगातार जूझने का अभिशाप.
ना जीतने का वरदान है इत्तेफाक और ना लगातार जूझने का अभिशाप
लेकिन, एक साल या दो साल या फिर तीन साल आप शायद टीम के खराब खेल के लिए भाग्य को कोस सकते हैं लेकिन करीब एक दशक तक अपनी कप्तानी की शैली में कमी को नहीं स्वीकार करना शायद उचित नहीं. ये सच है कि कोहली को आईना दिखाने वाले बहुत कम लोग भारतीय क्रिकेट में है. आप तो जानते हैं कि जब अनिल कुंबले ने ऐसी पहल की तो उनका क्या हाल हुआ था. लेकिन, गौतम गंभीर की दुकान सिर्फ क्रिकेट के भरोसे नहीं चलती है और इसलिए वो बेबाक तरीके से कोहली की औसत कप्तानी पर खुलकर बोल सकते हैं. पिछले साल जैसे ही कोहली की टीम बाहर हुई तो गंभीर ने बिना सेकेंड गंवाये कहा था कि RCB के कप्तान बहुत लकी है नहीं तो ट्रॉफी नहीं जीतने पर यहां धोनी और रोहित को भी नहीं बख्शा जाता.
रोहित के लिए जहां आईपीएल ट्रॉफी जीतना एक रुटीन का हिस्सा बनता दिखता है वहीं कोहली को सिर्फ प्लेऑफ तक पहुंचने के लिए जद्दोजेहद करनी पड़ती है. अगर पिछले 4 साल में रोहित ने 3 बार ट्रॉफी जीती है तो कोहली की टीम इस दौरान सिर्फ पिछले साल ही अंतिम 4 में जगह बनाने में कामयाब हुई थी. और वो भी इसलिए क्योंकि एबी डि विलियर्स ने अपने दम पर 4 मैचों में जीत (2020 में कुल 7 मैच जीते थे कोहली ने) दिलायी थी.
असली फर्क है कप्तानी की बुनियादी सोच का?
सबसे बड़ा फर्क रोहित और कोहली की शैली में जो दिखता है वो है साफ-साफ और संतुलित तरीके से सोच कर टीम बनाने का. अगर रोहित इन मामले में धोनी के उत्तराधिकारी दिखतें हैं तो कोहली में इतने अनुभव के बावजूद किशोर कप्तान वाली चूकें अक्सर देखने को मिल जाती है. अब आप खुद सोचिए कि 2019 में क्रिस मॉरिस को कोहली 10 करोड़ पर टीम में शामिल करवाया और फिर उन्हें छोड़ दिया. और जब ऑक्शन के दौरान बाकि टीमें मॉरिस के पीछे भागी तो कोहली की टीम ने भी पीछा करना शुरु किया और पिर से करीब 10 करोड़ खर्च करने के कगार पर आ गए! अरे भाई, अगर मॉरिस इतना ही अहम था तो से जाने क्यों दिया और अगर जाने दिया तो फिर उसे वापस लाने के लिए उतने ही रुपये खर्च करने को तैयार भी हो गए.
दरअसल, ये पहला मौका नहीं था जब कोहली ने कप्तान के तौर पर ऐसे अजीब फैसलों की झलक दिखायी है. इससे पहले वो युवराज सिंह और दिनेश कार्तिक को ऐसी कीमतों पर टीम में शामिल करने के लिए उतावले हुए जब उनके प्रभुत्व का दौर ख़त्म हो गया था. इतना ही नहीं के एल राहुल हो या फिर मयंक अग्रवाल, कोहली बैंगलोर की युवा प्रतिभा को ना पहचान पाये और ना संजो पाये. वहीं इसके उलट रोहित शर्मा सूर्यकुमार यादव को हर कीमत पर दोबारा मुंबई में वापस लाने में कामयाब हुए. पंड्या बंधु और ईशान किशन जैसे घरेलू क्रिकेट के खिलाड़ियों से भी चैंपियन जैसा खेल दिखवाने में कामयाबी हासिल कर ली.
अगर कोहली मोईन अली जैसे खिलाड़ी को तुरंत नकार देतें हैं और ज्यादा मौके नहीं देते हैं जिन्हें दूसरी टीमें पलक झपकते ही ऑक्शन में लेकर भाग जाती हैं तो रोहित मजबूत गेंदबाज़ी को और बेहतर बनाने के लिए पीयूष चावला जैसे अनुभवी को टीम में शामिल करते हैं. तेज गेंदबाजी के मोर्चे पर Adam Milne और Marco Jansen को लाने के पीछे रोहित की ही रिसर्च की अहम भूमिका रहती है जबकि कोहली अपनी टीम के रिसर्च को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं देतें हैं.
अगर कोहली प्लेइंग इलेवन में धड़ाधड़ बदलाव के लिए जाने जाते हैं तो रोहित अपने बल्लेबाजी वाली इत्मिनान शैली की झलक कप्तानी में भी दिखाते हैं. तभी तो पिछले साल 18 मैचों के दौरान उन्होंने अपनी प्लेइंग इलवेन में सिर्फ 5 बदलाव ही किए. ऐसा करने वाले वाले इकलौते कप्तान थे.
पारंपरिक तौर पर हमेशा से ही मुंबई का दबदबा बैंगलोर पर रहा है लेकिन रोहित बनाम कोहली वाले दौर में ये पलड़ा पूरी तरह से मुंबई की तरफ ही झुका दिखाई देता है. अब तक खेले गये मुकाबलों में मुंबई को 17 जीत और 10 हार मिली है लेकिन पिछले चार साल में कोहली सिर्फ 2 मौके पर रोहित की टीम को परास्त कर पायें है जबकि मुंबई ने 8 मौके पर जीत हासिल की है.
ऐसे में आईपीएल के पहले मैच से पहले सबसे अहम सवाल यही कि क्या कोहली इस बार पहले मैच में रोहित को मात देकर पहली आईपीएल ट्रॉफी जीतने का सपना देख सकते हैं या फिर रोहित के लिए जीत की शुरुआत के साथ ही हैट्रिक टाइटिल जीतने का सफर भी एक और औपचारिकता साबित होगी?
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