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U19 T20 World Cup: कागज की बॉल से खेला, पैसे की तंगी,महिला खिलाड़ियों का संघर्ष

शेफाली वर्मा लड़कों से बॉलिंग करवाती थीं और 135-140 किमी/घंटे की रफ्तार की गेंद से प्रैक्टिस करती थीं.

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ICC महिला अंडर- 19 क्रिकेट में भारतीय महिला टीम विश्व विजेता बन गई है. कप्तान शेफाली के नेतृत्व में खेली टीम ने एक नया मुकाम हासिल किया है. सौम्या तिवारी ने ऐतिहासिक शॉट लगाकर टीम इंडिया को चैंपियन बनाया. शेफाली, सौम्या, अर्चना, तितास और पार्श्वी का संघर्ष भी कुछ कम नहीं है.

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शेफाली वर्मा

हरियाणा के रोहतक जिले की रहने वाली शेफाली वर्मा ने महज 15 साल की आयु में ही टीम इंडिया के लिए डेब्यू कर लिया था. 2019 के टी-20 वर्ल्ड कप से पहले शेफाली ने टीम इंडिया में एंट्री की थी और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने इंटरनेशनल डेब्यू किया था. टी-20 वर्ल्ड कप में भी शेफाली ने शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन वह बात अलग है कि टीम खिताब नहीं जीत सकी.

एक इंटरव्यू में शेफाली ने बताया था कि जब वह टी-20 वर्ल्ड कप के बाद वापस लौटीं तो कई चीजों पर काम करना था, तो उन्होंने कड़ा अभ्यास शुरू किया. शेफाली ने बताया था कि उन्हें वनडे टीम में खेलने का मौका नहीं मिल पा रहा था. इसलिए उन्होंने अपने कोच के साथ अपनी कमियों पर काम शुरू किया. उन्होंने तेज गेंदबाजों का सामना करना शुरू किया. उनके सामने लड़के 135-140 किलोमीटर की रफ्तार से गेंदबाजी करते थे.

पार्श्वी चोपड़ा

पार्श्वी चोपड़ा के क्रिकेटर बनने की कहानी भी उनकी गेंदों की तरह काफी घुमावदार है. उनके पिता, दादा और चाचा भी क्रिकेटर रहे थे. ऐसे में क्रिकेट उनके खून में था, लेकिन स्कूल के दिनों में उनका मन स्केटिंग में ज्यादा लगता था. इसी खेल में उन्होंने उत्तर प्रदेश की अंडर-14 प्रतियोगिता में रजत पदक भी जीता, लेकिन पिता चाहते थे कि बेटी क्रिकेटर बने. ऐसे में पार्श्वी ने स्केटिंग छोड़ क्रिकेट में मन लगाया.

पिता के कहने पर पार्श्वी क्रिकेट एकेडमी के साथ जुड़ गईं और यह खेल सीखने लगीं. लेग स्पिन गेंदबाजी उन्हें भा गई और 13 साल की उम्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए पहला मैच खेला.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पहले मैच में ही पार्श्वी फील्डिंग करते हुए चोटिल हो गईं. कोच ने उनसे कहा कि अगर वह ठीक नहीं हैं, तो बाहर बैठ सकती हैं. पार्श्वी के होठों पर चोट लगी थी और सूजन आ गई थी, लेकिन समय बाद ही वह मैदान में थीं. उन्होंने असम के खिलाफ तीन विकेट लिए और अपनी छाप छोड़ी. मैच के बाद उन्होंने परिवार के लोगों को इस बारे में जानकारी दी.

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तितास साधु

पश्चिम बंगा की तितास को बचपन में स्विमिंग, रनिंग और एथलेटिक्स में रूचि थी. बस एक क्रिकेट ही था, जिसको तितास सिर्फ देखती थीं पर खेलती नहीं थीं. तितास के काफी फ्रेंड और रणजी प्लेयर इनके आसपास क्रिकेट खेला करते थे. इनके पिता क्रिकेड एकेडमी चलाते थे. एक दिन अचानक बारिश के कारण अकेडमी बंद थी, तब तितास के ट्रेनर पिता ने इनको बॉल डालने के लिए कहा, तब उस दिन टेनिस बॉल से वो पहली बार क्रिकेट खेलीं. साधु ने ऐसे करके 13 की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया फिर पापा की क्रिकेट अकेडमी ज्वाइन करके टाइम पास क्रिकेट खेलने लगीं.

जब 10वीं क्लास में हुई तब ट्रायल दिया पर सेलेक्ट नहीं हुईं. फिर कोरोना महामारी के बाद सीजन 2020-21 में फिर सीनियर टीम के लिए ट्रायल दिया और नेट बॉलर के तौर पर बंगाल की सीनियर टीम में सेलेक्ट हो गईं. डेब्यू मैच में इनकी परफॉरमेंस बेहद खराब रही. पहली बॉल ही वाइड थी जो चौके तक चली गयी , 2 मैच खेले दोनों में साधु अच्छा नहीं खेलीं और टीम से निकाल दी गईं.

बंगाल की झूलन गोस्वामी इनकी आइडियल क्रिकेटर हैं. एक दिन बंगाल के डिस्ट्रिक्ट टूर्नामेंट में इन्होने शानदार खेल दिखाया और उस दिन झूलन गोस्वामी ने तितास साधु को प्लेयर ऑफ द मैच का अवॉर्ड दिया था.
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अर्चना देवी

महिला अंडर-19 में सलेक्ट होने के बाद चर्चा में आईं अर्चना देवी का जीवन संघर्ष भरा रहा है. अर्चना ने साल 2007 में अपने पिता को खो दिया था. पिता को काफी कम उम्र में खोने के बाद छह साल पहले उनके छोटे भाई की सांप काटने से मौत हो गई. ये वही साल था, जब अर्चना ने पहली बार मैदान पर कदम रखा था. मेंस टीम के स्टार स्पिनर कुलदीप यादव के कोच पूनम गुप्ता और कपिल पांडे ने उन्हें ट्रेनिंग देनी शुरू की. अर्चना के पास बॉल खरीदे तक के पैसे नहीं होते थे. कुलदीप यादव ने उन्हें किट बैग खरीद कर दिया था.

अर्चना की मां सावित्री देवी अपने कठिन वक्त को याद करते हुए बताती हैं, 'मैंने अपने 1 एकड़ के खेत में काम किया और गुजारा करने के लिए अपनी दो गायों का दूध बेचा. लोग मुझे ताने मारते थे, क्योंकि मैंने अर्चना को घर से दूर गंज मुरादाबाद के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय के छात्रावास में रहने के लिए भेज दिया था. वहां भर्ती होने से पहले बस का 30 रुपये का दैनिक किराया भी मुश्किल से जुगाड़ हो पाता था.

सौम्या तिवारी

सौम्या तिवारी का भी जीवन काफी संघर्ष भरा रहा. बचपन में सौम्या को उनके कोच सुरेश चैनानी ने ट्रेनिंग देने से इंकार कर दिया था. कुछ लड़कियों ने एकेडमी से नाम वापस ले लिया था. इसके कारण वह उन्हें ट्रेनिंग नहीं देते थे.

इसके बाद शाहजहांनाबाद में सौम्या तिवारी ने 2015-16 में लकड़ी के बेंत और पेपर की गेंद से खेलना शुरू कर दिया. सौम्या तिवारी के पिता ने इसके बारे में बताते हुए कहा कि “सौम्या बचपन में टीवी पर क्रिकेट देखा करती थी और अक्सर मेरी पत्नी भारती से कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मुगरी ले लेती थी और मेरी बड़ी बेटी साक्षी को कागज के गेंद बनाने और लिविंग रूम में खेलने के लिए कहती थी. वह यहां मुहल्ला क्रिकेट खेलती थी और कभी-कभी शिकायत करती थी कि लड़के उसे अपनी टीमों में शामिल नहीं करते.”

सौम्या तिवारी के पिता ने आगे बताया कि “बाद में जब हम न्यू भोपाल शिफ्ट हुए तो मैं उसे ट्रेनिंग के लिए सुरेश चैनानी के पास ले गया. पहले दिन उन्होंने ट्रेनिंग देने से मना कर दिया क्योंकि वे एकेडमी में लड़कियों को ट्रेनिंग नहीं देते थे. सौम्या दो दिनों तक लगातार रोती रही, उसके बाद हम फिर से एकेडमी गए और सर से उसे ट्रेनिंग देने का आग्रह किया. वह तैयार हो गए और फिर एक इंटर-क्लब मैच में उसे मैदान में उतारा. समय के साथ, उसका आत्मविश्वास बढ़ता गया और जब भी मैं शहर से बाहर जाता था तो वह मुझसे हेलमेट और दस्ताने लाने के लिए कहती थी.”

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