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Olympic और CWG में शानदार प्रदर्शन के बाद भी क्यों संघर्ष कर रहे भारतीय पहलवान?

Commonwealth और Olympic Games में भारतीय रेसलरों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और कई मेडल भी लाए.

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मौजूदा वक्त में दिल्ली (Delhi) के जंतर-मंतर (Jantar Mantar) पर विरोध प्रदर्शन कर रहे भारतीय रेसलर (Indian Wrestlers Protest) देश के लिए कई तरह से मायने रखते हैं. बजरंग पुनिया से लेकर विनेश फोगाट तक कई पहलवानों ने भारत के लिए कई मेडल जीता है. लेकिन आज भारतीय कुश्ती की जो स्थिति होती दिख रही है, वो चिंता का एक मौजू है. भारतीय कुश्ती संघ और उसके प्रेसीडेंट पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं. आइए जानते हैं कि किस तरह से भारतीय रेसलर्स अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश के लिए खेल रहे है, मेडल ला रहे हैं लेकिन उसके बाद भी उन्हें आज सड़कों पर उतरना पड़ रहा है.

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कॉमनवेल्थ और ओलंपिक खेलों में पहलवानों का शानदार प्रदर्शन

पिछले साल हुए कॉमनवेल्थ गेम्स और ओलंपिक खेलों में भारतीय रेसलरों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया और देश के लिए कई मेडल भी लाए. कॉमनवेल्थ 2022 में भारत की तरफ से शानदार प्रदर्शन किया गया. इस बार भारत ने कुल 61 मेडल अपने नाम किए, जिसमें 22 गोल्ड पर भारत ने कब्जा जमाया. अगर कुश्ती दल की बात की जाए तो राष्ट्रमंडल खेलों में शानदार प्रदर्शन करते हुए कुल 12 मेडल अपने नाम किए. भारत के स्टार पहलवान बजरंग पुनिया ने 65 किलोग्राम में कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीता है.

इसके अलावा ओलंपिक में भारतीय पहलवानों ने कुल सात पदक जीते थे. हॉकी के बाद रेसलिंग ऐसा खेल है, जिसमें भारतीय एथलीटों ने समर ओलंपिक गेम्स में सबसे ज्यादा सफलता हासिल की है.

सिस्टम पर उठते सवाल

अब सवाल ये है कि भारतीय रेसलरों के इस तरह के शानदार प्रदर्शन के बाद भी उन्हें आज सड़कों पर उतरकर क्यों विरोध प्रदर्शन करना पड़ रहा है. मौजूदा वक्त में बनी स्थिति को देखते हुए ये सवाल उठना लाजमी है कि क्या खिलाड़ियों के द्वारा विश्व स्तर पर किए जा रहे संघर्ष के बाद भारतीय कुश्ती महासंघ उन्हें ऐसी व्यवस्थाएं नहीं दे पा रहा है, जिस तरह उनकी जरूरत है?

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2026 के कॉमनवेल्थ गेम से रेसलिंग बाहर

साल 2026 में होने वाला कॉमनवेल्थ गेम ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया में खेला जाएगा. इसके ऐलान के बाद पता चला कि ऑस्ट्रेलिया में होने जा रहे इस कॉमनवेल्थ गेम में रेसलिंग को नहीं शामिल किया गया है.

इसके पीछे की वजहों पर गौर करने से पता चलता है कि कुश्ती कभी भी ऑस्ट्रेलिया की ताकत नहीं रही है. कुल 178 पदकों के साथ बर्मिंघम में चैंपियन के रूप में उभरे ऑस्ट्रेलिया ने कुश्ती प्रतियोगिता में सिर्फ दो कांस्य पदक जीते थे.

अगर ऑस्ट्रेलिया के नजरिए से देखा जाए तो कुश्ती में देश का बहुत अच्छा प्रदर्शन न होने की वजह से रेसलिंग को 2026 के कॉमनवेल्थ खेलों में स्थान नहीं मिल सका है.

लेकिन अगर भारत के नजरिए से देखा जाए तो निराशाजनक होगा क्योंकि हिंदुस्तान के रेसलिंग खिलाड़ियों का प्रदर्शन अंतर्राष्ट्रीय खेलों काफी अच्छा रहा है.

घर में पहलावन हलकान हैं और बाहर उनका खेल ही रद्द होने जाने से परेशान. क्या फेडरेशन ने कुश्ती को 2026 कॉमनवेल्थ में रखवाने के लिए एड़ी चोटी लगाई? जाहिर है इतनी नहीं लगाई कि हमारे पहलवानों का दिल न टूटे.

अब पहलवानों के हल्लाबोल ने WFI के अध्यक्ष ही नहीं बल्कि पूरी  फेडरेशन की विश्वसनियता पर सवाल उठा दिया है. जाहिर तौर पर ये भारतीय कुश्ती के लिए बहुत बुरा वक्त है, उस खेल के लिए बहुत बुरा दौर जिससे देश को भर-भर के मेडल मिल रहे थे. मेडल का सूखा झेलते एक देश में जिस कुश्ती के कारण मेडल का एक सुंदर सोता बहा था, वो सूख रहा है. किसी ने भारतीय कुश्ती को पटक दिया है. जाहिर है कुछ आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है.

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WFI प्रेसीडेंट का विवादों से पुराना नाता है

भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रेसीडेंट पद पर बैठे जिस बीजेपी सांसद पर आज यौन शोषण का आरोप लगाया गया है, वो पहले भी विवादों में रह चुके हैं. यह कोई पहली बार नहीं है कि उनका नाम विवादों से घिरा है.

साल 2021 के दिसंबर महीने में भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के प्रेसीडेंट बृजभूषण शरण सिंह ने झारखंड के शहीद गणपत राय स्टेडियम (Ganpat Rai Indoor Stadium) में अंडर-15 राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियनशिप के पहले राउंट के दौरान मंच पर उत्तर प्रदेश के एक पहलवान को थप्पड़ मार दिया था.

इस मामले के बाद विवाद देखने को मिला था और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के कई पहलवानों ने इसका कड़ा विरोध किया था और प्रेसीडेंट से माफी की मांग की गई थी.

हालांकि, झारखंड कुश्ती संघ के अध्यक्ष भोलानाथ सिंह और अन्य लोगों ने हस्तक्षेप कर इस मामले को शांत करवा दिया था.

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