आईपीएल के दो सीजन खत्म हो चुके हैं और इसका 10वां सीजन आज शुरू होने वाला है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व मैनेजर और दिल्ली डेयरडेविल्स से जुड़े रहे अमृत माथुर विश्व की इस सबसे बड़ी टी20 लीग का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं.
बेहतर कर सकते हैं
1. संचालन
आईपीएल के सामने जो चुनौती है वो क्रिकेट या वित्तीय स्वास्थ्य नहीं बल्कि संचालन है. मैनेजमेंट ने अभी तक लीग को एक नियमित तरीके से चलाया है लेकिन इस लीग को दूरदर्शिता वाली सोच और लीडरशिप की जरूरत है. शुरुआत से ही आईपीएल ने एक सामरिक गलती की और वो ये कि उसने अपने वित्तीय मामलों का बहुत जोरशोर से प्रचार किया. आईपीएल ने लीग से जुड़े आंकड़ों जैसे वित्तीय समझौते और खिलाड़ियों के वेतन को बहुत ही लापरवाही से सार्वजनिक किया. उनकी यह आदत ठीक वैसे ही थी जैसे किसी हाल में अमीर हुए व्यक्ति की होती है.
आईपीएल जिस तरह से सभी आंकड़ों को डॉलर में बताता था उससे उसका एक ऐसा रवैया उजागर होता था कि जिसमें वो दूसरों के सामने खुद को साबित करना चाहता था. इसमें भी कोई शक नहीं कि आईपीएल के लिए उसकी मुद्रा क्रिकेट नहीं बल्कि रुपया बन गया और इसने इस लीग को कई तरह के नुकसान भी पहुंचाए. आईपीएल केवल रुपये पर ही निर्भर होकर गर्त में नहीं गिरा बल्कि कई विवादों और मुश्किलों ने भी उसका नाम डुबोया.
इन विवादों से हुआ सबसे ज्यादा नुकसान:
1. खुद से ही आईपीएल के राजा/बॉस/डॉन बने ललित मोदी को पैसों की घोर अनियमितता का दोषी पाया गया जिसके बाद उन्हें निलंबित, बर्खास्त और आखिरकार निर्वासित कर दिया गया.
2. आईपीएल में बीसीसीआई अधिकारियों को टीम मालिक बनने का अवसर देने की वजह से एक ऐसी सुनामी आई जिससे बीसीसीआई के खत्म होने की नौबत आ गई. यह आईपीएल ही था जो '
कनफ्लिक्ट आॅफ इंट्रेस्ट' जैसे मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर लेकर आया. अगर इसे आसान सी क्रिकेट की भाषा में कहें तो यह ऐसा ही मामला हुआ जिसमें मान लीजिए एक खिलाड़ी अंपायर बन जाए और खुद ही वो अधिकारी भी जो उस अंपायर का चयन करता है.
अधिकारियों को आईपीएल टीम का मालिक बनाने का मतलब था कि टीम का मालिक, बीसीसीआई अधिकारी और आईपीएल गवर्निंग काउंसिल का व्यक्ति सभी एक हो सकते थे. वो जो केस बनाए, वो जो केस दायर करे और वो भी जो इस केस पर फैसला सुनाए.
3. 2009 में जब आईपीएल को दक्षिण अफ्रीका ले जाया गया तो उस पर सरकार काफी नाराज हो गई. इसके बाद सरकार ने आईपीएल के खिलाफ कई कोर्ट केस, टैक्स जांच और छापेमारी के मामले खड़े कर दिए. 2009 से जुड़ी फाइलें अभी भी कई सरकारी विभागों में टहल रही हैं, जिसका इस्तेमाल सरकार अपनी सुविधानुसार करेगी.
4. आईपीएल के लिए सबसे बुरा वक्त तब था जब यह भ्रष्टाचार और मैच फिक्सिंग के आरोपों से घिरा था. खिलाड़ियों और टीम के कई अधिकारी जेल गए. लीग और बीसीसीआई के संचालन के तरीके जांच के दायरे में आ गए और आज भी बीसीसीआई उस मुश्किल से जूझ रहा है.
5. टीमों का खत्म होना भी इस लीग के लिए एक बड़ी मुश्किल का सबब बन गया. कई टीमें आई और गईं तो कुछ को निलंबित या समाप्त कर दिया गया.
हैदराबाद, कोची और पुणे समेत चैम्पियन चेन्नई सुपरकिंग्स और राजस्थान रॉयल्स सभी को अपनी गलतियों की सजा मिली. इन टीमों के खिलाफ मुकदमेबाजी और मध्यस्थता का दौर भी चला और जब इनका मामला कोर्ट में पहुंचा तो इनमें से कोई भी कोर्ट की जांच से बच नहीं पाया.
आईपीएल जो हमेशा बहुत जल्दी में रहता है उसने हमेशा खुद के पैरों पर ही कुल्हाड़ी मारी है. इन 10 सालों में ऐसा एक भी मामला नहीं रहा जब लीग के लिए कोर्ट की तरफ से कोई सकारात्मक फैसला आया हो.
आईपीएल की यात्रा में बहुत कम ऐसे मौके आए जब उसे साफ आसमान की शक्ल देखने को मिली हो, उसके रास्ते में मौसम हमेशा ही खराब रहा. आईपीएल को एक ऐसे विमान की तरह समझिए जिसमें सीटबेल्ट का साइन कभी भी बंद नहीं होता.
2. सभी बजटों के लिए समान अवसर
लीग को इस तरह से बनाया गया था कि सभी टीमों को बराबर मौके मिले. नियमों को इस तरह से बनाया गया था कि जिससे कि कोई भी टीम मैनेजमेंट अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर प्रतियोगी टीम से आगे न निकल सके. आईपीएल एक ऐसे ईको सिस्टम का निर्माण करना चाहता था जहां विजेता का चुनाव हुनर से हो न कि पैसे से.
आईपीएल से जुड़ी अन्य अच्छी चीजों की तरह इसे भी भी व्यवस्थित रूप से खत्म कर दिया गया. उदाहरण के तौर पर इसे ऐसे समझिए कि इसमें हर मालिक को अपनी टीम चुनने के लिए अधिकतम एक करोड़ डॉलर की रकम निर्धारित की गई है. लेकिन यह रोक केवल कागजों पर ही मौजूद है क्योंकि ऐसी कई कानूनी खामियां और प्रावधान (रिटेंशन, व्यापार, समर्थन स्टाफ का वेतन, विदेशी बोर्डों को पैसा देना) हैं जिससे मैनेजमेंट निर्धारित लिमिट से ज्यादा खर्च कर सकते हैं.
इसे इस तरह से समझिए कि इस फॉर्मूले के तहत आरसीबी विराट कोहली को कोई भी रकम दे सकती है. मान लीजिए मैनेजमेंट उन्हें 20 करोड़ रुपये देता है लेकिन उसके 66 करोड़ रुपये के पर्स से केवल 12.50 करोड़ ही निकलेंगे.
मतलब साफ है कि वेतन कैप सब कुछ कवर करे जिसमें खिलाड़ी और सपोर्ट स्टाफ सभी शामिल हों. या फिर इस नियम को पूरी तरह से खत्म कर देना चाहिए.
कुछ सवाल भी हैं
क्या आईपीएल ने घरेलू क्रिकेट को और बेहतर बनाने के अपने वादे को निभाया है?
क्रिकेट के नजरिए से देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ प्रतियोगी क्रिकेट खेलने का अनुभव ही अलग होता है. आज का युवा खिलाड़ी आत्मविश्वास से भरा हुआ है और उच्च स्तर की क्रिकेट खेलने को बेहतर तरीके से तैयार है. बेहतरीन क्रिकेटरों के साथ ड्रेसिंग रूम शेयर करने से खिलाड़ियों की क्रिकेट की जानकारी भी बढ़ी है.
क्या इसका कोई नकारात्मक पक्ष भी है?
मुझे तो इसका केवल एक ही नकारात्मक पक्ष दिखा है जो कि राहुल द्रविड़ ने सबके साथ साझा किया था. द्रविड़ का मानना था कि इसकी वजह से युवा खिलाड़ियों में सामान्य क्रिकेट का महत्व खत्म हो जाएगा. उन्हें लगेगा कि अगर टी20 लीग, जिसमें बहुत ज्यादा कौशल की जरूरत नहीं होती उसमें अगर खेलकर अच्छा पैसा कमाने के साथ स्टार बना जा सकता है तो वो क्यों रणजी या फिर टेस्ट क्रिकेट खेलने में रुचि दिखाएंगे?
क्या भारतीय क्रिकेटरों पर पैसों की बारिश हो रही है?
क्रिकेट से जुड़े फायदे तो इस लीग में साफ नजर आते हैं लेकिन पैसों से जुड़े अच्छे दिन अभी भी आने बाकी हैं. जैसा कि वादा किया गया था अधिकतर खिलाड़ियों तक आर्थिक फायदा नहीं पहुंचा है.
आईपीएल के इस सीजन में 135 भारतीय खिलाड़ी खेल रहे हैं. इसमें से 50 पहले से ही सुरक्षित हैं जिन्हें या तो सेंट्रल कॉन्ट्रेक्ट मिला हुआ है या फिर क्रिकेट के बाहर उनकी अच्छी कमाई हो रही है. इसके इतर 48 ऐसे खिलाड़ी हैं जो न्यूनतम 10 लाख रुपये के खांचे में आते हैं और 14 ऐसे हैं जो 10 से 30 लाख वाले खांचे में. ऐसे में यह साफ है कि लगभग 25 खिलाड़ी ही ऐसे होंगे जिन्हें किस्मत बदल देने वाली रकम मिलती है.
आईपीएल में खेल रहे भारतीय खिलाड़ियों की वास्तविकता ये है कि उनके कॉन्ट्रेक्ट वैश्विक अर्थव्यवस्था से मेल नहीं खाते. ऐसा इसलिए क्योंकि अमीर खिलाड़ी और अमीर होता जा रहा है जबकि रणजी और फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेल रहे करीब एक हजार खिलाड़ी ऐसे हैं जिन्हें इसका कोई फायदा नहीं मिला है.
लेकिन आईपीएल ने एक चीज जरूर की है और वो ये कि भारतीय सपोर्ट स्टाफ के लिए नौकरी के कई अवसर खोल दिए हैं. शुरुआती दौर को छोड़ दें जब विदेशी कोच के साथ उनके सहयोगी भी पैकेज डील में आते थे लेकिन अब स्थिति बदल गई है. संजय बांगड़, लक्ष्मीपति बालाजी, आमरे, अरुण कुमार, मो. कैफ, ऋषिकेश कनितकर और मिथुन मनहास जैसे कई खिलाड़ी हैं जिन्हें सपोर्ट स्टाफ के तौर पर लिया जाने लगा. टीमों के मैनेजमेंट को यह बात जरा देर से समझ आई कि सपोर्ट स्टाफ के लिए भारतीय ही सबसे बेहतरीन विकल्प हैं क्योंकि वही विपक्षी टीम में मौजूद भारतीय खिलाड़ियों को अच्छे से समझ सकते हैं जो कि एक टीम का दो तिहाई हिस्सा होते हैं.
(अमृत माथुर एक वरिष्ठ पत्रकार, बीसीसीआई के पूर्व जीएम और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व मैनेजर रहे हैं. @AmritMathur1 पर उनसे संपर्क किया जा सकता है.)
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