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खेलोगे कूदोगे तो बनोगे नवाब, लेकिन सिर्फ ख्याति नहीं खुशी के लिए भी खेलिए

पीढ़ियों के बीच के फासले की एक कलहपूर्ण अभिव्यक्ति खेल-कूद के सम्बन्ध में बड़ों और बच्चों के विपरीत विचार

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खेलकूद में बच्चों की एक स्वाभाविक रूचि होती है. वे हर समय खेलना चाहते हैं, पर अपने अनुभवों से दबे-पिसे वयस्क उनको पढ़ाई-लिखाई पर अधिक ध्यान देने और खेलकूद पर समय बर्बाद न करने की हिदायतें देते नहीं थकते. पीढ़ियों के बीच के फासले की एक कलहपूर्ण अभिव्यक्ति खेल-कूद के सम्बन्ध में बड़ों और बच्चों के विपरीत विचारों में होती है. बच्चे जीवन को खेल समझते हैं, और बड़ों के साथ जीवन ही इतना अधिक खेल खेलता रहता है कि उन बेचारों के भीतर का खेलता-कूदता बच्चा मायूस होकर कोने में बैठ जाता है.

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'गीता पढ़ने से बेहतर है आप फुटबॉल खेलें'

अध्यात्म में जीवन की सार्थकता ढूँढने को आतुर एक युवक से स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि ईश्वर को करीब से जानना है तो गीता पढ़ने से बेहतर है आप फ़ुटबाल खेलें. उनका इशारा इसी बात की तरफ था कि स्वस्थ देह किसी आध्यात्मिक ज्ञान से कहीं ज्यादा जरूरी है. कुछ समय पहले तक खेलने-कूदने वाले बच्चों को ख़राब हो जाने के खतरे से लगातार आगाह किया जाता था. साथ ही पढने-लिखने पर नवाब बनने की गारंटी भी दी जाती थी. करीब दो दशकों से कुछ खिलाड़ियों ने शोहरत के शिखर पर पहुँच कर अपने ग्लैमर और समृद्धि से कई बच्चों और उनके अभिभावकों को भी आकर्षित किया है और अब कई माता-पिताओं को खेल-कूद में भी नवाबी की उम्मीद दिखाई दे रही है.

इंसान को हमेशा ही खेलकूद से सुख मिलता है

राष्ट्रीय खेल दिवस आज के दिन मशहूर हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद के सम्मान में मनाया जाता है. इंसान को हमेशा ही खेलकूद से सुख मिलता रहा है---अच्छी सेहत बना कर, जीत कर और दूसरों को हरा कर भी. खेल-कूद का अपना एक आनंद होता है, पर दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि आजकल जब लोग इसकी तरफ आकर्षित होते हैं तो उनके दिमाग में सुख और सेहत की इच्छा कम, पैसे और ख्याति की कामना अधिक होती है. नहीं तो बच्चों को सिर्फ क्रिकेट या लॉन टेनिस के लिए ही नहीं, गिल्ली-डंडा, कबड्डी, फुटबॉल या लम्बी दौड़ के लिए भी प्रेरित किया जाता. क्रिकेट की लोकप्रियता के कई कारण हैं. शोहरत की वजह से क्रिकेट स्टार अधिक चर्चा में होते हैं, उनकी मोटी कमाई के बारे में सार्वजानिक तौर पर लोग जानते हैं, वे क्रिकेट खेलने के अलावा मॉडलिंग और विज्ञापनों से कमाते हैं, उन्हें अपने जीवन साथी के रूप में फिल्म स्टार पत्नियां मिल जाती हैं.

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ये सभी बातें बच्चों पर असर डालती हैं. कुछ दशकों से खेल के मैदान से आक्रामक राष्ट्रवाद का सन्देश प्रचारित हुआ है, खेल का मैदान दो देशों के बीच एक तरह के युद्ध के मैदान में तब्दील हुआ है, यह बड़ी चिंता का विषय है. अनावश्यक प्रतिद्वंद्विता और उसके कारण पैदा होने वाले भयंकर तनाव ने भी खेल कूद की सरलता, इसके सहज और शुद्ध आनंद को दूषित किया है.

टहलना एक बेहतरीन गतिविधि और खेल

कोविड लॉकडाउन के दौरान जहाँ आउटडोर खेलों को एक तरह से वर्जित कर दिया, वहीं सेहत बनाने के नए-नए उपायों को ढूँढने के रास्ते भी खोले. इस दौरान यह साबित हुआ है कि सिर्फ टहलना ही एक बेहतरीन गतिविधि और खेल है. पहले से ही इसे अंतर्राष्ट्रीय क्रीड़ा आयोजनों में भी रेस वाकिंग की तरह शामिल किया जाता रहा है. यदि खेल का शुद्ध उद्येश्य सेहत बनाना हो, तो हम अपने घरों में, छत पर या कॉलोनी में ही चल कर कई किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं. चालीस की उम्र से ऊपर वालों के लिए हफ्ते में बस चार दिन चालीस मिनट टहलना मधुमेह और रक्तचाप जैसी कई बीमारियों से मुक्ति का उपाय है. हर तामझाम से दूर यह एक सरल, सस्ता और सहज खेल और गतिविधि है, जिसमे हर उम्र के, हर आय वर्ग के लोग आसानी से हिस्सा ले सकते हैं.

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इन दोनों का सम्बन्ध तो स्पष्ट नहीं, पर कई महान लोग टहलने के बहुत शौक़ीन रहे हैं! महात्मा गांधी खेल-कूद में ज्यादा रूचि नहीं रखते थे, पर वे रोजाना औसतन 18 कि.मी. या करीब बाईस हज़ार कदम चलते थे, और यह काम उन्होंने करीब चालीस साल तक किया. उनका वज़न कभी भी पचास किलो से ज्यादा हुआ ही नहीं.

  • एलॉपथी के जनक हिपोक्रेटीज़ ने कहा था कि टहलना सबसे अच्छी दवा है. रूसो का कहना था कि उसका दिमाग तो तभी काम करता है, जब उसके पैर चलते हैं.

  • उपन्यासकार चार्ल्स डिकेन्स तो कहते थे कि यदि मैं तेज़ी के साथ बहुत दूर तक न चलूं, तो मेरे भीतर विस्फोट हो जाएगा,

  • और नीत्शे ने तो यहाँ तक कहा कि सभी महान विचार सिर्फ टहलते समय ही आते हैं. सेहत के लिए साइकिल चलाना भी बहुत ही सरल एवं फायदेमंद उपाय है और लियो टॉलस्टॉय ने 67 वर्ष की उम्र में साइकिल चलाना सीखा था.

  • आइन्स्टाइन भी किसी संगठित खेल में रूचि नहीं रखते थे, पर नौका चलाना और साइकिल पर घूमना उन्हें बेहद पसंद था.

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पूरी दुनिया में चहलकदमी को एक बहुत अच्छी समेकित कसरत और खेल के रूप में देखा जाता है. उगते या डूबते सूरज के साथ दरख्तों के बीच चलना एक अद्भुत शारीरिक और मानसिक अनुभव है. यह शरीर पर अधिक जोर भी नहीं डालता. इसके लिए महंगी मशीनों की जरूरत नहीं पड़ती. हां, इसे लेकर कोई बड़ा उद्योग नहीं पनप पाया है, यह बाजार की भूख को नहीं मिटा रहा इसलिए टहलने को लोग हल्के में लेते हैं. खूब पसीना बहाने, और बुरी तरह थक जाने तक वर्क आउट’ करने की धारणा मानव देह की संवेदनशीलता को देखते हुए ज्यादा वैज्ञानिक नहीं है. टहलने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके लिए बाहरी परिस्थितयों और वस्तुओं या मशीनों पर निर्भर नहीं होना पड़ता. लोग अपनी छत पर आहिस्ता-आहिस्ता दौड़ भी लगा सकते हैं.

चेन्नई में विजय नाम के एक शख्स ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद लगातार 21 दिनों तक अपने अपार्टमेंट के बेसमेंट में पार्किंग वाले स्थान पर रोज़ सुबह दो घंटे तक 21 कि मी की दौड़ लगाई जो कि आधी मैराथन के बराबर है. टहलना पूरी तरह साम्यवादी खेल है और हर उम्र के, हर आय वर्ग के लोग टहल सकते हैं, बगैर कोई पैसा खर्च किये.
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बचपन से ही खेल-कूद की आदत अच्छी

खेलना जरूरी है, और यदि आप में धैर्य कम है और टहलने के लिये जगह और समय का अभाव है, तो आप अपनी रूचि के हिसाब से कोई भी खेल चुन सकते हैं. अमीर हैं तो किसी क्लब की सदस्यता ले सकते हैं, और आय कम है तो घर में ही कई तरह के खेलों के जरिये आप कसरत कर सकते हैं. आजकल कई तरह के रेज़ीस्टेंस बैंड उपलब्ध हैं और उनकी मदद से आप ऐसी कई कसरतें कर सकते हैं जो जिम में ही की जाती हैं. छोटे बच्चों के साथ खेलना बहुत ही बढ़िया खेल और कसरत है. अगर पालतू कुत्ता हो तो उसके साथ भी घर की आस-पास या छत पर टहल सकते हैं. अवसाद से बाहर आने के लिए भी खिली हुई प्रकृति के बीच चहलकदमी करना अद्भुत औषधि की तरह काम करता है. एक सरल और ताम-झाम से दूर रहने वाले खेल के रूप में और सेहत को दुरुस्त करने के एक परीक्षित उपाय के रूप में टहलने को अधिक से अधिक प्रोत्साहन देना चाहिए, और इसके फायदों से अधिक से अधिक लोगों को परिचित कराना चाहिए.

अपनी सेहत के साथ खिलवाड़ न करना हो, तो किसी भी तरह की शारीरिक गतिविधि में रूचि रखना निहायत जरूरी है. यूनानी दार्शनिक प्लेटो कहते थे कि जबरन मानसिक श्रम करने के नुकसान हैं पर शारीरिक मेहनत अगर बेमन भी की जाए, तो इसके कई फायदे हैं. बचपन से ही खेल-कूद की आदत पड़ जाए तो बहुत ही अच्छी बात होगी, पर किसी भी उम्र में इसमें रूचि जगे तो सेहत के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं. सेहत बनी रहती है और खेलने की आदत बन गयी तो मोटापा दूर रहेगा. खेल कूद देह को लचीला, हड्डियों और मांसपेशियों को मजबूत रखता है. यदि हम सक्रिय तौर पर किसी भी खेल में हिस्सा लें तो लिवर, किडनी और दिल की बीमारियाँ भी आपसे कोसों दूर रहेंगी. ऑक्सीजन लेने की फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है जो इन दिनों फैल रहे संक्रमण को देखते हुए बहुत जरूरी है.

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