कहानी शुरू करें इससे पहले समझ लेते हैं ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ होते क्या हैं. व्यवहारिक परिभाषा गढ़ना चाहें तो ‘यूटिलिटी प्लेयर’ ऐसे खिलाड़ी हैं जो ‘ऑलराउंडर’ से एक पायदान नीचे होते हैं. जो गेंदबाजी और बल्लेबाजी में एक बराबर भले ही मजबूत ना हों लेकिन कर दोनों सकते हैं. जरूरत पड़ने पर टीम की जीत के लिए लड़ सकते हैं. भारतीय क्रिकेट इतिहास में ऑलराउंडर खिलाड़ियों का रोना हमेशा से रहा है.
सैकड़ों बार आप सुन चुके होंगे कि कपिल देव के बाद देश को एक भी ‘जेनुइन ऑलराउंडर’ नसीब नहीं हुआ. ये सच भी है. अब इसी कमी को पूरा करने के लिए टीमें ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ को खोजती हैं.
टीम इंडिया के कप्तान विराट कोहली ने भी कई ऐसे खिलाड़ियों को टीम के साथ रखा है जो जरूरत पड़ने पर बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों कर सकते हैं. केदार जाधव और विजयशंकर जैसे खिलाड़ियों के नाम आप इस फेहरिस्त में रख सकते हैं. यही ट्रेंड आईपीएल में भी है.
आईपीएल में भी सभी ‘फ्रेंचाइजी’ ऐसे खिलाड़ियों की तरफ लपकती हैं जो बल्ले और गेंद दोनों से कमाल दिखा सके. हम आज इस सीजन के उन टॉप 5 यूटिलिटी प्लेयर्स का जिक्र करते हैं, जिनपर पूरे सीजन में नजर रहेगी. पहले ये टॉप 5 यूटिलिटी प्लेयर कौन हैं ये देख लेते हैं.
अभी इस सीजन का पहला हफ्ता ही बीता है इसलिए आपको इन ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ के प्रदर्शन में वो भारी भरकम आंकड़े अभी नहीं दिखेंगे. लेकिन इन खिलाड़ियों की टीमों को पता है कि आने वाले मैचों में ये उनके लिए ‘ट्रंप कार्ड’ साबित होने की काबिलियत रखते हैं.
खैर, इस सीजन में इन खिलाड़ियों के प्रदर्शन की बात कर लेते हैं.
जैसा हमने पहले कहा कि ये आंकड़े अभी आपको भारी भरकम नहीं लग रहे होंगे लेकिन इन आंकड़ों में छुपी कुछ बातें देखिए. सुनील नारायण का स्ट्राइक रेट देखिए. वो एक ‘फ्लोटर’ की तरह बैटिंग ऑर्डर में ऊपर नीचे करते रहते हैं. जोफ्रा आर्चर ने सनराइजर्स हैदराबाज के खिलाफ जो गेंदबाजी की वो देखने लायक थी. 150 किलोमीटर प्रति घंटे से ज्यादा की रफ्तार से वो लगातार यॉर्कर फेंकने में माहिर हैं.
इस लिस्ट के अलावा आपको याद दिला दें कि ऑस्ट्रेलिया के एश्टन टर्नर को राजस्थान रॉयल्स ने खरीदा था. वेस्टइंडीज के शिमरॉन हेटमेयर रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की टीम में शामिल हैं. ये दोनों खिलाड़ी भी आने वाले मैचों में अपनी टीम के लिए बाजियां इधर से उधर करेंगे.
टीम चुनने की ‘स्ट्रेटजी’ में भी आया है बदलाव
एक वक्त था जब आईपीएल में टीम मालिक जरूरत से ज्यादा खिलाड़ियों को खरीद लिया करते थे. उस वक्त ये सोच भी काम करती थी कि भले ही कोई खिलाड़ी अपनी टीम के प्लेइंग 11 में फिट ना हो रहा हो लेकिन उसे दूसरे की टीम में भी ना खेलने दिया जाए. इसमें नुकसान एक ही था.
आईपीएल के लिए टीम अलग अलग शहरों में ‘ट्रैवल’ करती थी और कई खिलाड़ी सिर्फ टीम के साथ घूमते रहते थे. फिर शुरूआती सीजन के बाद ‘कॉस्ट-कटिंग’ का दौर आईपीएल में भी देखने को मिला.
टीम मालिकों ने खिलाड़ियों की बिक्री में बहुत सोच समझ के साथ फैसला लेना शुरू कर दिया. अब चुनिंदा खिलाड़ियों को टीम के साथ जोड़ा जाता है और कोशिश रहती है कि उन्हें मौके दिए जाएं. खिलाड़ियों की नीलामी को लेकर टीम मालिकों की बदलती इसी सोच ने उन्हें ‘यूटिलिटी प्लेयर्स’ की तरफ आकर्षित किया है.
अब कई बार टीम मालिक बड़े बड़े नामों को लेने की बजाए छोटे नामों पर भरोसा करना ठीक समझते हैं बशर्ते वो गेंद और बल्ले दोनों से कमाल दिखाने की काबिलियत रखता हो.
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