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Varanasi: अखाड़े में बेटियों ने पहलवानों को चटाई धूल, दंगल में दिखाया दम

Varanasi Dangal: काशी में 480 साल पुराने अखाड़ा में नाग पंचमी पर काशी की बेटियां कुश्ती के दांव-पेच आजमती हैं.

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वाराणसी (Varanasi) में नागपंचमी पर दंगल (Dangal) की परंपरा सालों से चली आ रही है. इस साल भी नागपंचमी के अवसर पर 480 साल पुराने तुलसीदास अखाड़े (Tulsidas Akhada) में दंगल का आयोजन हुआ. पुरुष पहलवानों के साथ महिला पहलवानों ने भी अपना दमखम दिखाया. 10 लड़कियों और 60 लड़कों सहित स्टेट और नेशनल मेडलिस्ट ने दंगल में भाग लिया. चलिए आपको मिलवाते हैं वाराणसी के अखाड़े से रियल लाइफ 'गीता-बबीता' से जो आज की लड़कियों के लिए मिसाल हैं.

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दंगल में मिर्जापुर की अपेक्षा का दम

मिर्जापुर की अपेक्षा सिंह, जिसे जिंदगी ने कई बार पटकनी दी, लेकिन अपेक्षा अपने हौसले से फिर खड़ी हो उठी. बचपन में सिर से पिता का साया उठ गया, लेकिन कभी हार नहीं मानी. दंगल लड़ने का ऐसा जुनून जो उसे काशी ले आया. पहले सिगरा स्थित संपूर्णानंद स्टेडियम में पहलवानी की ट्रेनिंग शुरू की. बाद में तुलसीघाट पर स्थित अखाड़ा से जुड़ी. अपेक्षा सिंह 3 बार ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी और स्टेट क्वालीफाई कर चुकी हैं, उन्होंने चार बार गोल्ड मेडल भी जीता है.

तुलसीदास अखाड़े की बेटियों ने लहराया परचम

वाराणसी की बेटियां मिट्टी में सनकर कुश्ती के दांव-पेच सीखने के साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर जिले का नाम भी रौशन कर रही हैं. ये बेटियां एक ओर अखाड़े में लड़कों को पटकनी दे रही हैं, तो दूसरी तरफ मेडल पर भी कब्जा जमा रही हैं. महिला पहलवानों ने स्टेट और नेशनल लेवल पर कई प्रतियोगिताओं में जीत दर्ज की है.

  • संकट मोचन निवासी पलक यादव (13) ने स्टेट चैंपियनशिप 2022 में ब्रॉन्ज मेडल जीता है.

  • गोदौलिया की सृष्टि यादव (20) ने स्टेट लेबल में दो सिल्वर जीता है. वहीं नेशनल में भी पार्टिसिपेट किया है.

  • नारियां की कशिश यादव (16) ने दो बार नेशनल चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज जीता, इसके अलावा खेलो इंडिया यूथ गेम, एशियन चैंपियनशिप और वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए ट्रायल दिया था. कशिश ने 2022 में यूपी केशरी भी जीता है.

  • संकट मोचन निवासी अन्वेषा यादव (18) ने स्टेट लेवल प्रतियोगिता में दो बार ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया है.

  • अर्चना यादव (17) ने जिले में गोल्ड मेडल जीता है.

तुलसीदास अखाड़ा में अब तक कुल 14 लड़कियों ने कुश्ती का दांव-पेच सीखा है. जिनके नेशनल चैंपियनशिप में 2 ब्रॉन्ज हैं. स्टेट में 4 गोल्ड, 2 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज है.

अखाड़े के कोच उमेश ने बताया की न्यूजीलैंड की फिल्म डायरेक्टर ने होम गेम डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. उसके नौवे एपिसोड में यहां के अखाड़े का जिक्र है. उसमे गांव और शहर के रेसलिंग की परिस्थितियों को दिखाया गया है. यहां से जाते वक्त उन्होंने अखाड़े में प्रैक्टिस करने के लिए मैट की व्यवस्था कराई थी. अब पहलवान मिट्टी के अलावा मैट पर भी प्रैक्टिस करतीं हैं.

अखाड़े में बच्चियों के लिए विशेष व्यवस्थाएं

तुलसीदास अखाड़ा के कल्लू पहलवान बताते हैं कि जिन बच्चियों के घर में डाइट की समस्या है, उनके लिए संकट मोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र की ओर से डाइट की व्यवस्था कराई जाती है ताकि उनकी पहलवानी कमजोर ना पड़े.

उधर सम्पूर्णानंद स्पोर्ट्स स्टेडियम में भी महिला पहलवानों की नर्सरी तैयार हो रही है. कक्षा 6 से 8 तक की बालिकाओं को कुश्ती के गुर सिखाए जा रहे हैं. करीब 60 महिला पहलवान दांव-पेच सीखने में जुटी हैं. इंटरनेशनल कुश्ती प्रतियोगिता में भाग ले चुकी हिमांशी यादव और पूजा यादव के अलावा 8 नेशनल प्लेयर और 22 राज्य स्तर की पहलवान देने का रिकॉर्ड इनके नाम है.

480 साल पुराना है तुलसीदास अखाड़ा

संकट मोचन मंदिर के महंत और प्रोफेसर विशंभर नाथ मिश्र ने बताया की करीब 480 साल पहले गोस्वामी तुलसीदास जी ने तुलसी घाट पर ही पहलवानों के लिए अखाड़े का निर्माण कराया था. उस समय यहां दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों का दबदबा था. अखाड़े में तैयार पहलवान लोगों की रक्षा के लिए खुद को मजबूत करते थे. धीरे-धीरे इस अखाड़े से सैकड़ों पहलवान आगे बढ़े.

ऐसे शुरू हुई बेटियों की ट्रेनिंग

करीब 5 साल पहले कुछ पहलवान विश्वंभर नाथ मिश्र के पास आए और अपने घर के बच्चियों को भी इस अखाड़े में दांव-पेच सिखाने का प्रस्ताव रखा.

महंत कहते हैं की बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से आगे बढ़कर बेटी को मजबूत बनाओ के तहत उन्होंने अखाड़े में महिला कुश्ती को बढ़ावा देने का निर्णय लिया. शुरुआत में थोड़ा विरोध हुआ लेकिन पितृ छाया और भातृ छाया के नीचे कुश्ती का दांव-पेच सीखने वाली लड़कियों ने महज 5 सालों में ही नेशनल, स्टेट और जिला स्तर पर खुद को साबित कर दिखाया.

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नाग पंचमी वाले दिन जब कुश्ती का आयोजन होता है, तो दंगल देखने के लिए हजारों लोग यहां जुटते हैं. यह हमारे लिए गर्व की बात है. हम इसे और मजबूत और सशक्त बनाने में जुटे हुए हैं. ताकि तुलसीदास जी के अखाड़े का नाम विदेशों में भी रोशन हो.

इनपुट: चंदन पांडेय

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