ऑटो कंपनियां भारत स्टेज-4 (BS-IV) व्हीकल 31 मार्च के बाद नहीं बेच पाएंगी और कंज्यूमर भी नहीं सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी को बीएस-4 व्हीकल बेचने की डेडलाइन को बढ़ाने की याचिका खारिज कर दी. ये याचिका फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स असोशिएशन (FADA) ने दायर की थी. FADA ने गुजारिश की थी कि डेडलाइन में 1 महीने की राहत दी जाए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील को खारिज कर दिया.
ऑटो डीलर्स के संगठन ने दिसंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दी थी कि सुप्रीम कोर्ट के अक्टूबर 2018 वाले आदेश में कुछ राहत दी जाए. इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि 31 मार्च 2020 के बाद कोई भी व्हीकल नहीं बेचा जा सकेगा.
ऑटो मोबाइल कंपनियों का कहना था कि वो तय समयसीमा में बीएस-4 से बीएस-6 नॉर्म्स में शिफ्ट नहीं कर सकते हैं.
कंज्यूमर्स और ऑटो सेक्टर पर क्या असर पड़ेगा?
अनुमान है कि ऑटो कंपनियों, कंपोनेंट मैन्यूफैक्चर्स और ऑयल रिफाइनरिज को कुल 70 हजार करोड़ से 90 हजार करोड़ का खर्च इस शिफ्ट के लिए उठाना होगा. जानकारों का मानना है कि सबसे ज्यादा असर छोटी डीजल कारों की कीमत पर पड़ सकता है. बताया जा रहा है कि डीजल कारों की कीमत 50 हजार से 1 लाख तक बढ़ सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि BS-VI लेवल के डीजल पार्टिकुलेट फिल्टर (DPF) की कीमत तकरीबन 1 लाख है. ऐसे में जाहिर है कि कीमतें बढ़ेंगी तो डीजल कार की मांग घट सकती है.
BS-VI फ्यूल का कंज्यूमर्स पर बढ़ेगा बोझ
देश में बीएस-6 मानक लागू होने के बाद पेट्रोल-डीजल के लिए रिफाइनिंग संयंत्रों को अपग्रेड करने की जरूरत पड़ेगी. कंपनियां चाहती हैं कि इसकी लागत ग्राहकों से वसूली जाए. कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा कर इस निवेश की भरपाई की योजना बना रही हैं. पेट्रोलियम रिफाइनिंग के लिए प्लांट को अपग्रेड करने के लिए जो लागत आएगी उसके लिए पांच साल डीजल पर प्रति लीटर 80 पैसे और पेट्रोल पर 1.50 रुपये का चार्ज लगाना होगा.
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