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बिहार में बढ़ती कोरोना महामारी और सुशांत सिंह राजपूत पर राजनीति

बिहार में जुलाई महीने में टेस्ट वृद्धि दर के मुकाबले मरीज वृद्धि दर ढाई गुने से भी ज्यादा रही

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मंदिर निर्माण और सुशांत सिंह राजपूत की मौत पर चल रही राजनीति के जरिए कोरोना के मोर्चे पर बिहार की बड़ी चुनौती को दबाने की कोशिश चल रही है. एनडीए और राज्य सरकार ने सुशांत राजपूत की मौत के बहाने 'बिहारी गौरव' का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है और कोरोना संक्रमण से निपटने में विफलता को छिपाने के लिए सर्वदलीय निगरानी समिति की बात आगे बढ़ा दी है. बिहार में कोरोना के मरीज बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं.

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टेस्ट की तुलना में कोरोना मरीजों की संख्या में वृद्धि की दर बढ़ गई है. जुलाई महीने में टेस्ट वृद्धि दर के मुकाबले मरीज वृद्धि दर ढाई गुने से भी ज्यादा रही. इस समय बिहार में रोजाना 35,000 से ज्यादा टेस्ट हो रहे हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जल्द ही दैनिक टेस्ट संख्या 50,000 पहुंचाने की घोषणा की है. इस समय जिस रफ्तार से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा है, उससे आशंका है कि संक्रमण फैलने की दैनिक संख्या के मामले में बिहार जल्द ही पूरे देश में सबसे आगे निकल सकता है. अगर ऐसा होता है तो स्थिति भयावह होगी.

टेस्ट बढ़े 148 फीसदी, कोरोना संक्रमण बढ़ा 410 फीसदी

30 जून तक बिहार में कोरोना संक्रमण के कुल 9,988 मामले दर्ज किये गये थे और 2,20,890 टेस्ट हुए थे. 31 जुलाई तक कोरोना संक्रमण के कुल मामले हो गए 50,987 और कुल टेस्ट किये गये 5,48,172. इन आंकड़ों को देखने से स्पष्ट है कि टेस्टिंग के मुकाबले संक्रमण बढ़ने की रफ्तार बहुत ज्यादा है. जुलाई माह में टेस्टिंग में 148.17 फीसदी की ही वृद्धि हुई लेकिन इस टेस्टिंग के जरिए मिलने वाले संक्रमण के मामले 410.48 फीसदी बढ़ गये. मई माह तक स्थिति इसके उलट थी. मई महीने में टेस्टिंग बढ़ी 192 फीसदी और संक्रमण के मामले बढ़े 162.36 फीसदी. यह बात पॉजिटिविटी अनुपात में साफ दिखाई दे रही है. प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल लैंसेट में 16 जुलाई को प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में बताया गया है कि कोरोना के मामले में देश के सबसे संवेदनशील 20 जिलों में आठ बिहार के हैं और शीर्ष पांच में चार बिहार के हैं.

बिहार में जुलाई महीने में टेस्ट वृद्धि दर के मुकाबले मरीज वृद्धि दर ढाई गुने से भी ज्यादा रही
बिहार में 14 जुलाई से रोजाना 10,000 से ज्यादा टेस्ट होने शुरू हुए हैं. 14 जुलाई तक कुल टेस्ट हुए थे 3,29,160 और कोरोना संक्रमण के मामले थे 18,853. 3 अगस्त को 36,524 टेस्ट किये गये और इसके साथ टेस्ट की कुल संख्या पहुंच गई 6,48,939 और कोरोना संक्रमण केस हो गये 59,567. 14 जुलाई को पॉजिटिविटी दर थी 5.72 फीसदी जो 3 अगस्त को बढ़कर हो गई 9.18 फीसदी.
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दूसरे राज्यों की तुलना में बिहार में कम टेस्टिंग

बिहार में टेस्टिंग बहुत ही कम है. बिहार के लगभग बराबर की आबादी वाले राज्य महाराष्ट्र में 3 अगस्त तक 23 लाख टेस्ट किये जा चुके थे जबकि बिहार में मात्र साढ़े छह लाख. महाराष्ट्र के बाद जिन राज्यों में कोरोना संक्रमण सबसे ज्यादा है, उन राज्यों को देखें तो तमिलनाडु में 28.4 लाख, आंध्र प्रदेश में 21.1 लाख, कर्नाटक में 14.5 लाख, यूपी में 26.2 लाख और बंगाल में 9.6 लाख टेस्ट अब तक किये गये हैं.

बिहार में जुलाई महीने में टेस्ट वृद्धि दर के मुकाबले मरीज वृद्धि दर ढाई गुने से भी ज्यादा रही
3 अगस्त तक के आंकड़े
(ग्राफिक्स- क्विंट हिंदी)
दरअसल बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं का ढांचा देश में सबसे खराब है. 16 मई 2020 को पटना हाईकोर्ट में बिहार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा पेश किये गये आंकड़ों के मुताबिक राज्य में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पद 11,645 हैं. इनमें से 2,877 पदों पर ही नियुक्तियां हैं. बाकी 8,768 पद खाली हैं. कुल स्वीकृत पदों में 6,944 ग्रामीण क्षेत्रों के लिए हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ 1,270 पदों पर ही डॉक्टर नियुक्त हैं. इसके अलावा कुल स्वीकृत पदों में से सिर्फ 29 फीसदी पर नर्स नियुक्त हैं और 28 फीसदी पर लैब टेक्नीशियन.
बिहार में जुलाई महीने में टेस्ट वृद्धि दर के मुकाबले मरीज वृद्धि दर ढाई गुने से भी ज्यादा रही

इस कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने सोमवार को विधान परिषद में बताया कि हल्के लक्षण वाले कोरोना पॉजिटिव मरीजों के लिए 209 कोविड सेंटरों पर 33,437 बेड्स की व्यवस्था की जा रही है. अभी 18,357 बेड्स ही उपलब्ध हैं. मध्यम लक्षण वालों के लिए 93 डेडीकेटेड सेंटरों पर 6,304 बेड उपलब्ध हैं.

स्वास्थ्य मंत्री ने ब्लॉक स्तर पर मुफ्त जांच की उपलब्धता का दावा करते हुए कहा कि तय मानकों के मुताबिक बिहार में आबादी के हिसाब से रोजाना 16,000 टेस्ट ही होने चाहिए लेकिन हो रहे हैं 36,000 से ज्यादा.

दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने टेस्ट की दैनिक संख्या बढ़ाकर 50,000 करने की बात कही. इन बयानों से साफ नजर आ रहा है कि सरकार के स्तर पर ही कोरोना से निपटने की रणनीति को लेकर कोई साफ दृष्टि व कार्ययोजना नहीं है. इसका नतीजा सामने है. अधिकारियों को बदल देने व सर्वदलीय निगरानी समिति बना देने से कुछ समय के लिए लोगों का ध्यान हटाया जा सकता है और विफलता की जिम्मेदारी को डायल्यूट किया जा सकता है. लेकिन कोरोना की बढ़ती भयावहता पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता.

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