ऐप बेस्ड कैब सर्विस देने वाली कंपनियों समेत 142 कंपनियों ने 68 करोड़ खर्च करके 25 करोड़ गाड़ियों और लाइसेंस की जानकारियां खरीद ली हैं. ऐसा इन कंपनियों ने साल 2014 से 2019 के बीच किया है. इन खरीदारों में बड़े सरकारी और प्राइवेट बैंक, ऑटोमोबाइल कंपनियां भी शामिल हैं. ये खुलासा एक आरटीआई में हुआ है.
आरटीआई के जरिए सामने आई जानकारी के मुताबिक, OLA कैब, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी, ICICI बैंक, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस, रिलायंस जनरल इंश्योरेंस, बजाज फाइनेंस ने रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे मंत्रालय के VAHAN डेटाबेस से ये जानकारियां खरीदी हैं.
मीडियानामा की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंत्रालय साल 2014 से ही ये जानकारियां बेच रहा है. साल 2018 में मंत्रालय ने 25.96 करोड़ की कमाई की, वहीं साल 2019 में अभी तक सरकार 21 करोड़ कमा चुकी है.
देश की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाने के मकसद से सरकार लोगों के निजी डेटा को सार्वजनिक सामान मानकर बल्क में बेचती आ रही है.
बल्क डेटा शेयरिंग पॉलिसी
मंत्रालय बल्क डेटा शेयरिंग पॉलिसी लेकर आई, जिसके तहत 28 तरह की जानकारियां बेची जा रही हैं. इसमें गाड़ी के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और ड्राइविंग लाइसेंस भी शामिल है.
औपचारिक तौर पर सरकार मार्च 2019 में राजस्व पैदा करने के मकसद से बल्क डेटा पॉलिसी लेकर आई, लेकिन ये डेटा साल 2014 से ही बेचा जा रहा था.
इस पॉलिसी के तहत ये जानकारियां बेची जाती है:
- रजिस्ट्रेशन नंबर
- इंजन नंबर
- मॉडल का नाम
- डीलर का नाम
- फाइनेंसर का नाम
- इंश्योरेंस कंपनी का नाम
- इंश्योरेंस वैलिडिटी
- टैक्स की वैलिडिटी
ऐसी कंपनी जिसमें 50 फीसदी हिस्सेदारी किसी भी भारतीय की हो, साल 2019 में वो 3 करोड़ रुपये में बल्क डेटा खरीद सकता है.
लोगों का डेटा
‘सार्वजनिक सामान’
4 जुलाई को आए इकनॉमिक सर्वे में एक मामला उजागर होता है कि क्यों लोगों की जानकारी ‘सार्वजनिक सामान’ की तरह इस्तेमाल होनी चाहिए, न कि ‘निजी सामान’ की तरह.
इसके बाद 8 जुलाई को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राज्यसभा में जानकारी दी थी कि 25 करोड़ गाड़ियों और 15 करोड़ लाइसेंस की जानकारियां 119 कंपनियों को बेची गईं. इनमें 32 सार्वजनिक और 87 निजी कंपनियां शामिल हैं.
हालांकि, आरटीआई के मुताबिक, इन कंपनियों की संख्या 142 है. इकनॉमिक सर्वे और डेटाबेस से मिली जानकारी ने प्राइवेसी पर फिर से चिंता बढ़ा दी है.
सुप्रीम कोर्ट में आधार/निजता का केस लड़ने वाले वकील प्रसन्ना एस. ने कहा, ‘‘निजी जानकारी को सार्वजनिक सामान बनाने का कॉन्सेप्ट निजता के मौलिक अधिकार के साथ मेल नहीं खाता.’’
लोगों की निजता को कैसे है खतरा?
एक बार गाड़ी के मालिक की जानकारी को दूसरी जानकारियों के साथ जोड़ा जाएगा तो उससे कई निजी जानकारियां निकाली जा सकती हैं. ये गाड़ी के मालिक की निजता के साथ समझौता है.
बता दें कि इन 28 डेटा पॉइंट्स में गाड़ी मालिक का नाम देना शामिल नहीं है, लेकिन लूपहोल है कि मंत्रालय जब गाड़ी के रजिस्ट्रेशन नंबर और लाइसेंस की जानकारी देती है तो उससे नाम पता करना कोई मुश्किल का काम नहीं.
ये बात मंत्रालय के सर्कुलर के साथ-साथ इकनॉमिक सर्वे में भी लिखी है.
इन कंपनियों को बेचा गया डेटा
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