नासा को Perseverance Rover की वजह से मंगल ग्रह के बारे में काफी कुछ पता चला है. मंगल पर पानी के इतिहास से लेकर उसकी मिट्टी और उसके वातावरण में मीथेन की मौजूदगी तक, रोवर ने डेटा और तस्वीरों के जरिए बहुमूल्य जानकारी उपलब्ध कराई है. अब नासा ने एक और कारनामा अपने नाम कर लिया है. मंगल पर नासा ने एक एयरक्राफ्ट को नियंत्रित उड़ान दी है.
इस एयरक्राफ्ट को नासा ने Ingenuity नाम दिया था. इस एयरक्राफ्ट, इसके मिशन और इस फ्लाइट के बारे में सब जान लीजिए.
कब पहुंचा ये एयरक्राफ्ट?
नासा ने Perseverance Rover के साथ ही Ingenuity एयरक्राफ्ट को भेजा था. Ingenuity रोवर के अंदर ही था. मंगल ग्रह पर रात के समय तापमान माइनस 90 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है, इसलिए एयरक्राफ्ट को रोवर के अंदर सुरक्षित रखा गया था.
हालांकि, अप्रैल के पहले हफ्ते में Ingenuity एयरक्राफ्ट ने रोवर से निकलना शुरू किया और 4 अप्रैल तक इसने मंगल ग्रह की सतह को छू लिया था. 4 अप्रैल की रात एयरक्राफ्ट ने बिना किसी सुरक्षा के मंगल की सर्दी में बिताई.
Ingenuity एयरक्राफ्ट को मंगल ग्रह की सतह पर उतारने के बाद रोवर थोड़ा पीछे हट गया था, जिससे कि एयरक्राफ्ट के सोलर पैनल चार्ज हो जाएं. पहले इसकी टेस्ट फ्लाइट 8 अप्रैल को होने वाली थी, लेकिन फिर इसे 11 अप्रैल के लिए टाल दिया गया था.
कैसा है एयरक्राफ्ट और कैसी रही उड़ान?
मंगल ग्रह का वातावरण पृथ्वी से बहुत अलग है. लाल ग्रह की हवा बहुत हल्की है और इसलिए Ingenuity एयरक्राफ्ट को उड़ने में बहुत दिक्कत हो सकती है. इस परेशानी से निपटने के लिए नासा ने प्रबंध किए हैं.
Ingenuity एयरक्राफ्ट डिजाइन और टेक्नोलॉजी के मामले में कुछ-कुछ एक ड्रोन जैसा है. हालांकि, इसके ब्लेड किसी ड्रोन के मुकाबले काफी बड़े हैं. ये 2400 आरपीएम यानी कि एक मिनट में 2400 रिवोल्यूशन घूमते हैं.
Ingenuity एयरक्राफ्ट को रियल टाइम में नासा से कोई कमांड नहीं दिया जाएगा. Ingenuity की टीम ने सारे निर्देश इसमें पहले से ही फीड किए हैं और फ्लाइट के बाद ये सारा डेटा वापस नासा को भेजेगा.
इसकी पहली उड़ान बहुत सामान्य होने वाली है. ये टेक ऑफ करेगा और लगभग 3 मीटर (10 फीट) की ऊंचाई पर पहुंचकर कुछ सेकंड के लिए हवा में रहेगा. इसके बाद एक छोटा सा टर्न लेकर लैंड कर जाएगा.
इस उड़ान के दौरान एयरक्राफ्ट हर एक सेकंड में 30 तस्वीरें खींचेगा. ये तस्वीरें मंगल ग्रह की सतह की और जानकारी देने में मदद करेंगी.
उड़ान क्यों ऐतिहासिक?
ऐसा पहली बार होने जा रहा है कि नासा किसी दूसरे ग्रह पर एक नियंत्रित उड़ान का प्रदर्शन करेगा. नियंत्रित का मतलब ये नहीं है कि नासा अपने सेंटर से इसे नियंत्रित कर पाएगा. पृथ्वी और मंगल ग्रह के बीच की दूरी 200 मिलियन किलोमीटर से ज्यादा की है और रेडियो सिग्नल को ट्रेवल करने में कम से कम 11 मिनट लग जाएंगे.
नियंत्रित उड़ान का मतलब है कि नासा ने पहले से ही Ingenuity एयरक्राफ्ट में सभी निर्देश फीड कर दिए हैं और वो उसके मुताबिक उड़ेगा. ये भी कोई आसान काम नहीं है. मंगल ग्रह पर ग्रेविटी पृथ्वी की लगभग एक तिहाई है. लेकिन उसका वातावरण का घनत्व पृथ्वी के घनत्व का 1 फीसदी से भी कम है.
इसका अंदाजा ऐसे लगाइए कि मंगल की सतह से उड़ने का मतलब है कि पृथ्वी पर 30,000 मीटर की ऊंचाई पर उड़ रहे हों. ऐसा पहले कभी नहीं किया गया है.
नासा ने इसके लिए ही Ingenuity एयरक्राफ्ट में कार्बन-फाइबर रोटर लगाए हैं, जो 2400 आरपीएम पर घूमेंगे. नासा को विश्वास है कि इससे उड़ान के लिए जरूरी लिफ्ट मिल जाएगी. पृथ्वी पर अधिकतर हेलिकॉप्टर में रोटर ब्लेड 500 आरपीएम पर घूमते हैं.
Ingenuity एयरक्राफ्ट का कोई बहुत बड़ा लक्ष्य नहीं है, लेकिन इसकी एक उड़ान ही पृथ्वी के लोगों के लिए उपलब्धि होगी.
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