उत्पत्ति के सिद्धांत के बारे में ‘आम लोगों के मन में डाले जा रहे भ्रम' को दूर करने के लिए और इंसानों में क्रमिक बदलाव, बंदर से कैसे हो पाया इसे सबूत के साथ साबित करने के लिए देशभर के वैज्ञानिक सोमवार से ‘चार्ल्स डार्विन’ वीक मनाने जा रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री के बयान के बाद वैज्ञानिकों का फैसला
केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री सत्यपाल सिंह के हाल ही के बयान ने वैज्ञानिकों को अपनी प्रयोगशालाओं से बाहर आने और विज्ञान के क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करने के लिए मजबूर किया है.
सिंह ने पिछले महीने कहा था कि डार्विन का ओरिजिन थ्योरी वैज्ञानिक दृष्टि से गलत है और उसे स्कूल एवं कॉलेज के सिलेबस से हटाने का प्रस्ताव रखा.
द इंडिया मार्च फॉर साइंस ऑर्गनाइजिंग कमिटी और ब्रेकथ्र्यू साइंस सोसायटी 12-18 फरवरी के दौरान डार्विन सप्ताह आयोजित कर रही है.
इस कमिटी ने वैज्ञानिक अनुसंधान एवं शिक्षा के लिए ज्यादा आर्थिक सहयोग की मांग करते हुए पिछले साल अगस्त में विरोध मार्च निकाला था.
IISER कोलकाता के एसोसिएट प्रोफेसर सौमित्रो बनर्जी ने कहा,
डार्विन सप्ताह का उद्देश्य उस भ्रम को दूर करना है जो डार्विन के ओरिजिन थ्योरी के बारे में आम लोगों के दिमाग में डाला गया है.
उस दौरान वैज्ञानिक डार्विन के ओरिजिन थ्योरी के बारे में विशेष अभियान चलायेंगे.
क्या है डार्विन की ओरिजिन थ्योरी?
ये सिद्धांत प्राकृतिक चयन पर आधारित है जिसके मुताबिक जीवन का विकास लाखों साल पहले एक कोशिकीय जीवों से हुआ. चार्ल्स डार्विन का मानना था कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन से अपना विकास करती है. इस सिद्धांत को विकासवाद का नाम दिया गया.
ब्रेकथ्र्यू साइंस सोसायटी ऑल इंडिया कमिटी के महासचिव बनर्जी ने कहा, ‘हम विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जायेंगे तथा डार्विन सिद्धांत के बारे में भ्रम दूर करेंगे. हम दिखायेंगे कि ये बस सिद्धांत नहीं है बल्कि इसे सही साबित करने के सैकड़ों तरीके हैं.’
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)