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भारत में इंटरनेट और प्राइवेसी पर क्या कहते हैं ‘Signal’ के CEO?

क्विंट ने प्राइवेसी समेत कई मुद्दों पर सिग्नल के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन से बात की

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सिग्नल फाउंडेशन के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन ब्रायन एक्टन पिछले हफ्ते भारत में सुर्खियों में रहे. WhatsApp की प्राइवेसी पॉलिसी के नए अपडेट के बाद ओपन-सोर्स सिग्नल मेसेजिंग ऐप को बड़ी संख्या में डाउनलोड किया गया. इस पॉलिसी को लेकर कई तरह की चिंताएं जाहिर की गई थीं. हालांकि, WhatsApp ने अब इस अपडेट को लागू करने की आखिरी तारीख 8 फरवरी से बढ़ाकर मई में कर दी है.

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एक्टन WhatsApp के को-फाउंडर थे और उन्होंने 2017 में कंपनी छोड़ दी थी. एक्टन का WhatsApp से जाना फेसबुक का कंपनी को खरीदने के बाद प्राइवेसी, सिक्योरिटी और मॉनेटाइजेशन के मुद्दे पर चिंताओं के बीच हुआ था. इसके बाद एक्टन ने मॉक्सी मार्लिनस्पाइक के साथ मिलकर सिग्नल फाउंडेशन बनाई थी. इनका फोकस ओपन-सोर्स प्राइवेसी टेक्नोलॉजी डेवलप करने में था.

क्विंट ने प्राइवेसी के मुद्दे, WhatsApp को-फाउंडर के तौर पर मिली सीख, सिग्नल सिक्योरिटी के मामले में अलग कैसे है, जैसे मुद्दों पर ब्रायन एक्टन से बात की.

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WhatsApp ने यूजर्स को प्राइवेसी पॉलिसी अपडेट को मंजूरी देने का अल्टीमेटम दिया था. बड़े यूजर बेस को देखते हुए WhatsApp जानता है कि किसी भी यूजर के लिए ऐसे ऐप को छोड़ना मुश्किल होगा जिस पर उसके दोस्त, परिवार और साथी हैं. आप इस कदम को कैसे देखते हैं?

नए ऐप पर स्विच करने की कोई कीमत नहीं देनी होती है और जिस स्पीड से हमने लोगों को सिग्नल पर स्विच करते देखा है, वो इस बात का सबूत है कि ये कितना आसान है. जब WhatsApp की शुरुआत हुई थी तो दुनिया में ज्यादा लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं थे.

हमारा एक नया फीचर है कि अगर कोई सिग्नल पर एक ग्रुप बनता है तो उसका लिंक WhatsApp ग्रुप पर शेयर कर सकता है. इससे लोग जल्दी से जल्दी सिग्नल पर वही ग्रुप का अनुभव ले सकते हैं.

जबकि WhatsApp ने कई बार कहा है कि पर्सनल चैट्स एन्क्रिप्टेड रहती हैं, लेकिन ये व्यापक मेटाडेटा कलेक्शन और शेयरिंग का मुद्दा है, जिस पर चिंता बनी हुई है. आप WhatsApp के भारत में डेटा कलेक्ट करने के कदम का कैसे आकलन करते हैं.

WhatsApp की गतिविधियों का आकलन करना मेरा काम नहीं है. सिग्नल में हमारा सीधा-सादा प्रस्ताव है कि हम कैसे प्राइवेसी को सुरक्षित रखेंगे और इसे साफ शब्दों में बता दें. सिग्नल इस तरह से डिजाइन किया गया है कि हम कोई डेटा कलेक्ट नहीं करते हैं.

तो आपको पॉलिसी में बदलाव या सुधार को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं है.

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WhatsApp और फेसबुक का 2014 में डेटा न शेयर करने का आश्वासन और 2016 में इस मामले पर पलट जाने से विश्वास कम हो गया है. आपने इससे क्या सीख ली और इसने प्राइवेसी पॉलिसी पर सिग्नल की विचारधारा को कैसे प्रभावित किया?

हम जो दावा करते हैं, उस पर शुरुआत से अटल हैं और आगे भी ऐसे ही रहेंगे. हम नहीं चाहते कि हमारे यूजर इस बारे में दो बार भी सोचें कि सिग्नल प्राइवेसी को कैसे हैंडल करता है.

ऐप को लोगों की इस आकांक्षा को पूरा करने के लिए बनाया गया था कि उन्हें सरकार या निजी कंपनियां ट्रैक न कर पाएं. इसमें बातचीत को सुरक्षित और प्राइवेट रखने के लिए स्टेट-ऑफ-आर्ट एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन का इस्तेमाल होता है. सिग्नल यूजर के मेसेज नहीं पढ़ सकता, कॉल्स नहीं सुन सकता या वीडियो और तस्वीरें नहीं देख सकता और न ही कोई और ऐसा कर सकता है.

NDTV के साथ इंटरव्यू में आपने कहा था, “जब आप भारत के लिए बनाते हैं तो आप दुनिया के लिए बनाते हैं.” क्या आप इसे समझा सकते हैं? क्या आप ऐप्स के सेलिंग पॉइंट के लिए प्राइवेसी को उभरते हुए मुद्दे के तौर पर देखते हैं?

सबसे अच्छी टेक्नोलॉजी को लागू करने के मामले में भारत हमेशा अग्रणी रहा है और इसे दोबारा होते देखना उत्साहजनक है. भारत को डेटा प्राइवेसी के पक्ष में बोले देखना और प्राइवेसी-ओरिएंटेड मेसेंजर की तरफ झुकाव को देखना अच्छा है.

इंटरनेट के मामले में भारत एक बड़ा पहलू है. मुझे निजी तौर पर लगता है कि जो भारत चाहता है वही इंटरनेट चाहता है.

सिग्नल के लिए भारत और दुनिया में माहौल बनते देखने से समझ आता है कि लोग इस आइडिया के सख्त खिलाफ हैं कि उनकी निजी बातचीत और ऑनलाइन एक्टिविटी का इस्तेमाल डेटा के रूप में उनके खिलाफ किया जाए. आखिर में हम सभी सुरक्षित तरीके से बातचीत करना चाहते हैं.

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