ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूपी चुनाव में BJP Vs SP: इस बार कौन-सा छोटा दल किसके साथ, किसकी कितनी औकात?

बीजेपी के साथ अपना दल(S) और निषाद पार्टी है, एसपी के साथ RLD, SBSP, अपना दल(K) और महान दल जैसी पार्टियां हैं.

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly Election) से पहले गठबंधन (Alliance) और दलबदल का दौर जारी है. समाजवादी पार्टी (SP) के साथ दलित नेता चंद्रशेखर आजाद की बातचीत हाल ही में खत्म हुई और कोई समझौता नहीं हो सका. लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इनके अलावा कई छोटी-छोटी पार्टियों को अपने साथ गठबंधन में शामिल किया है. इनमें ओपी राजभर (OP Rajbhar) की सुभासपा जैसी पार्टी भी है जो 2017 में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीजेपी भी इस बार दो छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. लेकिन सवाल ये है कि 2012 में अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली समाजवादी पार्टी और 2017 में गठबंधन से अलग बहुमत से ज्यादा सीटें जीतने वाली बीजेपी छोटे दलों से गठबंधन करने के लिए इतनी आतुर क्यों रहीं.

इन सवालों के जवाब खोजने के लिए हमें पिछले कुछ चुनावों के आंकड़े और प्रदेश के जातीय समीकरण टटोलने होंगे. क्योंकि ज्यादातर छोटे दलों का टारगेट वोटर उनकी अपनी जाति है. लेकिन उससे पहले ये जान लेते हैं कि इस बार कौन-सी पार्टी किसके साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.
0

बीजेपी ने पुराना दोस्त खोया, नया याराना जोड़ा

2017 में भारतीय जनता पार्टी ने ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (SBSP) और अनुप्रिया पटेल के अपना दल के साथ मिलकर यूपी विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार ओम प्रकाश राजभर चुनाव से काफी पहले ही बीजेपी को छोड़कर चले गए. उन्होंने एसपी से गठबंधन किया है. फिर भी बीजेपी को एक नया गठबंधन साथी मिल गया है. अब बीजेपी के साथ अपना दल (एस) के अलावा संजय निषाद की निषाद पार्टी भी चुनाव लड़ रही है.

बीजेपी के साथ अपना दल(S) और निषाद पार्टी है, एसपी के साथ RLD, SBSP, अपना दल(K) और महान दल जैसी पार्टियां हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

एसपी ने बड़े दलों से मुंह मोड़ा, छोटो दलों से कुनबा जोड़ा

2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस से गठबंधन किया था और यूपी के लड़कों जैसे नारों के साथ चुनाव मैदान में उतरे थे लेकिन सफलता नहीं मिली. उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने धुर विरोधी मायावती से हाथ मिलाया, लेकिन वहां भी ज्यादा सफलता नहीं मिली. अब अखिलेश यादव ने छोटे दलों को साथ मिलाकर चुनाव लड़ने का फैसला किया. यहां तक कि वो टीएमसी और एनसीपी जैसी पार्टियों को भी साथ लेकर चल रहे हैं. ममता बनर्जी ने यूपी में एसपी के लिए रैली करने की भी हामी भरी है. फिलहाल समाजवादी पार्टी के साथ 7 दल हैं.

बीजेपी के साथ अपना दल(S) और निषाद पार्टी है, एसपी के साथ RLD, SBSP, अपना दल(K) और महान दल जैसी पार्टियां हैं.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

2017 में बीजेपी की साथी पार्टियों का प्रदर्शन

2017 में बीजेपी के साथ चुनाव लड़ रही अपना दल (S) को 0.98 प्रतिशत वोट मिले थे और उसने 9 सीटें जीती थी. इस बार बीजेपी के साथ निषाद पार्टी(NISHAD) भी है जिसे 2017 में 0.6 प्रतिशत वोट मिले थे और इन्होंने एक सीट जीती थी. भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में 39.67 फीसदी वोट लेकर 312 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2017 में SP के साथियों का प्रदर्शन

2017 में राष्ट्रीय लोक दल(RLD) ने अकेले चुनाव लड़ा था और उसे 1.78 फीसदी वोट मिले थे. हालांकि वो सिर्फ एक सीट ही जीत पाए थे. पिछली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाली ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इस बार अखिलेश के साथ है, जिसे 2017 में 0.07 फीसदी वोट मिला था और इन्होंने 4 सीटें जीती थी. इस बार अखिलेश यादव के साथ महान दल भी है, जिसे 0.11 प्रतिशत वोट 2017 में मिले थे. इसके अलावा भी चार पार्टियों का समर्थन अखिलेश यादव को हासिल है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

यूपी चुनाव में छोटी पार्टियों की भूमिका

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के जब हम चुनाव नतीजे देखते हैं तो लगता है कि इन पार्टयों में से ज्यादातर को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले तो क्या ये कोई खास असर डाल पाएंगी. लेकिन ऐसा नहीं है, ये छोटी पार्टियां अपने-अपने इलाकों में काफी वोट ले जाती हैं और इनकी अपनी जातियों के अंदर पकड़ भी है. इसीलिए बीजेपी और एसपी दोनों ही छोटी पार्टियों को अपने साथ रखना चाहती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

RLD का कितना असर?

2017 के चुनाव में भले ही राष्ट्रीय लोक दल को 2 फीसदी से भी कम वोट मिला हो, लेकिन फिलहाल पार्टी का कमान संभाल रहे जयंत चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह का यूपी की राजनीति में बड़ा नाम रहा है, उसके बाद अजीत सिंह ने ये कारवां आगे बढ़ाया. लेकिन मुस्लिम-जाट समीकरण के सहारे चलने वाली आरएलडी को 2014 में बड़ा झटका लगा जब दंगो के बाद जाट-मुस्लिमों के बीच खाई बढ़ गई और इनका वोट बैंक खिसक गया. इस बार जयंत चौधरी दावा कर रहे हैं कि उन्होंने अपने समर्थकों को इकट्ठा किया है. किसान आंदोलन के बाद तमाम राजनीतिक जानकार भी कहते हैं कि आरएलडी को फायदा हो सकता है.

उत्तर प्रदेश में जाटों की आबादी करीब 4 फीसदी है, लेकिन पश्चिमी यूपी में जाट आबादी लगभग 17 प्रतिशत है. इसीलिए जयंत चौधरी अपने परंपरागत वोटर्स को वापस पाने का दावा कर रहे हैं. इसके अलावा एसपी के गठबंधन से उन्हें फायदा ये हो सकता है कि पश्चिमी यूपी में मुसलमानों की संख्या करीब 32 फीसदी है. अगर जयंत के मुताबिक जाट मुसलमान मिल गए तो उनका दावा सच हो सकता है.

राष्ट्रीय लोक दल का सबसे ज्यादा असर सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फर नगर, शामली और बिजनौर जैसे जिलों में है.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

सुहेलदेव समाज पार्टी का कितना असर?

सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर दावा करते हैं कि उनका समाज पूर्वी यूपी में करीब 100 सीटों पर प्रभाव रखता है. राजभर समाज के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले ओम प्रकाश राजभर ने पिछली बार बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुतिबाकि प्रदेश में करीब 3 फीसदी राजभर समाज की आबादी है, लेकिन लगभग दो दर्जन सीटों पर ये संख्या 15-20 फीसदी है. जिनमें वाराणसी, जौनपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया और मऊ जैसे जिले शामिल हैं.

महान दल में कितनी ताकत ?

2008 में बीएसपी से अलग होकर केशव देव मौर्य ने महान दल का गठन किया था. यूपी के मौर्य, भगत, भुजबल, सैनी और शाक्य समाज के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाले महान दल को 2017 में 0.11 फीसदी वोट मिला था. हालांकि मौर्य समाज के प्रतिनिधित्व के दावे पर जानकार सवाल उठाते हैं कि हाल ही में बीजेपी से एसपी में आये स्वामी प्रसाद मौर्य और बीजेपी सरकार में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी मौर्य समाज से ही आते हैं. तो केशव देव मौर्य कैसे दावा कर रहे हैं.

ये सच है कि तीनों नेता एक ही समाज से आते हैं लेकिन तीनों के अलग-अलग क्षेत्रों से आते हैं इसीलिए समाजवादी पार्टी ने भी दोनों मौर्य नेताओं को अपने साथ मिलाया. स्वामी प्रसाद मौर्य पूर्वी यूपी तो केशव देव मौर्या पश्चिमी यूपी की कुछ सीटों पर असर रखते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपना दल(K)

अपना दल के दो गुट हैं. एक गुट बीजेपी के साथ है जिसे अनुप्रिया पटेल लीट करती हैं और एक गुट समाजवादी पार्टी के साथ है जिसका प्रतिनिधित्व अनुप्रिया पटेल की मांद कृष्णा पटेल करती हैं. अपना दल का गठन कृष्णा पटेल के पति सोनेलाल ने किया था. और वो कुर्मी समाज से आते थे. अब इन दोनों ही गुटों का दारोमदार कुर्मी मतदाताओं पर है. यूपी में करीब 6 फीसदी कुर्मी वोटर है, जो कई सीटों पर बड़ा असर डाल सकता है.

PSP, TMC और NCP का रोल

प्रगतिशील समाजवादी पार्टी अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का दल है लेकिन अब वो अखिलेश के साथ हैं औऱ समाजवादी पार्टी के सिंबल पर ही चुनाव लड़ेंगे. 2017 के चुनाव में पारिवारिक लड़ाई का समाजवादी पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ था. क्योंकि अकिलेश यादव और शिवपाल यादव दोनों के वोटर एक ही हैं. रही बात टीएमसी और एनसीपी की तो इन दोनों पार्टियों का यूपी में कोई खास असर नहीं है. लेकिन ममता बनर्जी की रैली और एनसीपी के नेताओं की मौजूदगी में अखिलेश यादव कुछ फायदा ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

अपना दल(S)

अनुप्रिया पटेल की अपना दल (सोनेलाला) का बीजेपी के साथ गठबंधन है और ये पार्टी भी कुर्मी वोटों के सहारे है, हालांकि 2014 लोकसभा चुनाव से लेकर 2017 विधानसभा और 2019 लोकसभा चुनाव में अनुप्रिया पटेल की पार्टी को काफी कामयाबी मिली. अनुप्रिया पटेल अभी मिर्जापुर से सांसद और मोदी सरकार में मंत्री हैं. यूपी विधानसभा में उनके पास 9 सीटें हैं.

प्रदेश में करीब 6 फीसदी कुर्मी वोटर है, जिनमें से बनारस और सोनभद्र के इलाके में अनुप्रिया पटेल का असर माना जाता है. हालांकि कुर्मी वोट बाराबंकी, बहराइच, फतेहपुर और बुंदेलखंड में भी ठीक-ठाक संख्या में है लेकिन अनुप्रिया पटेल सबका प्रतिनिधित्व करती हैं ऐसा दावा नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनकी मां भी मैदान में हैं. जो सेनेलाल पटेल की राजनीतिक विरासत की असली वारिस खुद को बताती हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

निषाद पार्टी में कितना दम ?

उत्तर प्रदेश में निषाद समाज की हिस्सेदारी करीब 5 फीसदी की है. नदियों के किनारों पर इस समाज की बड़ी संख्या रहती है. लेकिन अकेले निषाद नहीं इस समाज को कुछ और जातियां मिलकर पूरा करती हैं, जो मल्लाह, मांझी, धीवर, बिंद, कहार और कश्यप के नाम से जानी जाती हैं. ये सभी निषाद समाज का हिस्सा हैं. इनका असर गोरखपुर, मऊ, गाजीपुर, बलिया, वाराणसी, इलाहाबाद, जौनपुर, फतेहपुर और यमुना ने सटे गाजियाबाद-नोएडा में भी है. 2017 विधानसभा चुनाव में निषाद पार्टी ने अकेले चुनाव लड़ा था और 0.62 फीसदी वोटों को साथ 1 सीट पर जीत दर्ज की थी. इस बार निषाद पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें