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उत्तराखंड: BJP की 'आपदा' में कांग्रेस का कितना अवसर? बागी बन सकते हैं गेम चेंजर

बीजेपी में शामिल हुए नेताओं की घर वापसी उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए बना सकती है बड़ा मौका

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उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव (Uttarakhand Elections) से पहले राजनीतिक दलों में लगातार हलचल जारी है. सत्ताधारी बीजेपी जहां लोकलुभावन घोषणाओं के साथ अपनी सरकार बचाने की पूरी कोशिश कर रही है, वहीं कांग्रेस को सत्ता में वापसी का बेसब्री से इंतजार है. लेकिन चुनाव से ठीक पहले क्या समीकरण बनते दिख रहे हैं, जो बीजेपी, कांग्रेस और डेब्यू करने वाली आम आदमी पार्टी के लिए मौका बना सकते हैं. आइए जानते हैं.

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सत्ता में रहने के बावजूद मजबूत नहीं BJP

सबसे पहले बात उत्तराखंड की सत्ता में काबिज बीजेपी की कर लेते हैं. बीजेपी 2017 में भारी बहुमत से उत्तराखंड की सत्ता में आई थी. तब कांग्रेस के कुछ कद्दावर नेताओं ने हवा का रुख पहचानते हुए पाला बदल लिया था और बीजेपी में शामिल हो गए थे. जाहिर है कि बीजेपी को इन नेताओं के आने का भी फायदा मिला, जिसने जीत का मार्जिन और बढ़ा दिया.

लेकिन मौजूदा समीकरण की बात करें तो बीजेपी की हालत राज्य में कुछ ठीक नहीं है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले पांच साल में बीजेपी ने 3 मुख्यमंत्री जनता के सामने रख दिए. चार साल तक त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सरकार चलाई, लेकिन उनके शासनकाल से जनता खूब नाराज रही, जब चुनाव से करीब 9 महीने पहले पार्टी को इस बात का एहसास हुआ तो त्रिवेंद्र रावत को दिल्ली बुलाकर उनका इस्तीफा ले लिया गया.
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त्रिवेंद्र सिंह रावत के बाद कुर्सी तीरथ सिंह रावत को थमाई गई, लेकिन उन्होंने काम कम और विवादित बयान ज्यादा दिए. जिसने बीजेपी सरकार की खूब किरकिरी करवाई. आखिरकार चुनाव से ठीक 6 महीने पहले बीजेपी ने बड़ा रिस्क लेते हुए तीरथ सिंह की जगह पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बना दिया. जिसके बाद धामी बड़ी-बड़ी घोषणाओं से पिछले साढ़े चार साल के दाग मिटाने की कोशिशों में जुटे हैं.

कांग्रेस के लिए आसान राह भी मुश्किल क्यों?

अब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की बात करें तो उनके लिए इससे सुनहरा मौका कुछ नहीं हो सकता है. जब लगातार मुख्यमंत्री बदले गए हों और मौजूदा सरकार के खिलाफ बड़ी एंटी इनकंबेंसी हो. लेकिन कांग्रेस इस चुनाव में उतनी मजबूत नहीं है, जितना पहले के चुनावों में हुआ करती थी.

इसका सबसे बड़ा कारण पिछले चुनावों से ठीक पहले कुछ बड़े नेताओं का बीजेपी में शामिल होना है. जिसके बाद कांग्रेस में हरीश रावत, किशोर उपाध्याय और प्रीतम सिंह जैसे गिने-चुने नाम रह गए. पहाड़ी क्षेत्रों से आने वाले नेताओं के बीजेपी में शामिल होने के बाद कांग्रेस के लिए एंटी इनकंबेंसी के बावजूद सेंधमारी करना इतना आसान नहीं है.
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बागियों की घर वापसी से बन सकता है मौका

अब कमजोर दिख रही कांग्रेस लगातार इस कोशिश में है कि किसी भी हाल में इस बार फिर से उन्हें सत्ता की चाबी मिल जाए. चुनाव से ठीक पहले बागियों की कांग्रेस में वापसी को लेकर अटकलें काफी तेज हैं. जो कांग्रेस के चेहरे पर भी मुस्कान बिखेरने का काम कर रही हैं. क्योंकि अगर बीजेपी में गए ज्यादातर नेता वापसी करते हैं तो कांग्रेस के लिए 2022 विधानसभा का सफर काफी आसान हो जाएगा.

दरअसल 2014 में जब कांग्रेस ने विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री पद से हटाया था और हरीश रावत को राज्य की कमान सौंपी थी तो ये फैसला पार्टी के लिए काफी घातक साबित हुआ. बहुगुणा के साथ कांग्रेस के दिग्गज नेता- हरक सिंह रावत, सतपाल महाराज, यशपाल आर्य और सुबोध उनियाल जैसे लोग बीजेपी में शामिल हो गए. यहां हरीश रावत की ताकत की झलक देखने को मिली, क्योंकि बड़े नेताओं के धड़े की परवाह किए बगैर अलाकमान की तरफ से हरीश रावत को ही आखिरकार चुना गया.

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यशपाल आर्य की वापसी के बाद अटकलें तेज

जो नाम हमने आपको बताए, उनमें से दलित नेता यशपाल आर्य पहले ही कांग्रेस में वापसी कर चुके हैं. बीजेपी की मौजूदा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहने के बावजूद उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने का फैसला लिया. उनके बेटे और नैनीताल से विधायक संजीव आर्य भी उनके साथ कांग्रेस में आए.

अब ठीक इसी तरह हरक सिंह रावत और बाकी कुछ नेताओं की घर वापसी के कयास लगाए जा रहे हैं, हाल ही में हरीश रावत और हरक सिंह के बीच फोन पर बातचीत भी हुई है. जिसके बाद अटकलें और तेज हो गईं.

कांग्रेस भी मौके को देखते हुए ऐसे नेताओं का बाहें फैलाकर स्वागत करने की तैयारी में है. वहीं बीजेपी में इसे लेकर खूब हलचल मची हुई है, बताया जा रहा है कि नाराज नेताओं को मनाने की हर कोशिश चल रही है.
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क्यों AAP से दूरी बना रहे बड़े नेता?

आम आदमी पार्टी पहली बार उत्तराखंड की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है. शुरुआत में पार्टी ने तमाम मुद्दों को उठाया और गांव-गांव पहुंचकर प्रचार किया, जिससे बीजेपी और कांग्रेस के नेता भी इस बार जल्दी पहाड़ों की ओर रुख करने लगे. लेकिन राजनीतिक जानकार बताते हैं कि कर्नल कोठियाल को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाए जाने के बाद से पार्टी का मौका पहले से कम हो गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी-कांग्रेस के जो महत्वकांक्षी नेता AAP में आकर सीएम फेस बनने का सपना देख रहे थे, उन्होंने अब अपने पैर रोक लिए. क्योंकि कर्नल कोठियाल सेना से आते हैं और राजनीति में नए हैं, इसीलिए नेता उनसे दूरी बना रहे हैं.

हालांकि आम आदमी पार्टी ने कोठियाल पर जो दांव चला है, वो पार्टी के कुछ हद तक काम आ सकता है, क्योंकि कोठियाल सेना से आते हैं और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए मशहूर हैं.
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कुल मिलाकर उत्तराखंड चुनाव से पहले समीकरण ये बन रहे हैं कि अगर बीजेपी में मंत्री बनकर बैठे कांग्रेस के बागी घर वापसी करते हैं तो कांग्रेस राज्य में वापसी कर सकती है. लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो, कांग्रेस के लिए ये बाजी काफी मुश्किल होने वाली है. वहीं बीजेपी के लिए मुख्यमंत्रियों को लेकर किरकिरी झेलने और एंटी इनकंबेंसी के बाद भी बहुमत तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती है. आम आदमी पार्टी किसी का खेल बिगाड़ सकती है, ऐसा फिलहाल नहीं लग रहा है.

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