उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिहाज से महत्वपूर्ण शहर कानपुर में 19 फरवरी को वोटिंग होनी है. बीजेपी से लेकर समाजवादी पार्टी गंगा नदी को लेकर तमाम घोषणाएं कर रही है. लेकिन गंगा किनारे रहने वाले तमाम मतदाताओं ने राजनीतिक पार्टियों को गंगा-सफाई और गंगा-टूरिज्म के नाम पर वोट देने से इनकार कर दिया है.
गंगा के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले मल्लाह लल्लन कहते हैं कि आज से 50 साल पहले वह गंगा में नाव चलाते थे लेकिन अब तो नाले में नाव चलाने के लिए मजबूर हैं.
ट्रेनरी नहीं नगर प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं मल्लाह
कानपुर के सरसैया घाट पर लल्लन जैसे अन्य मल्लाह कानपुर में गंगा के प्रदूषण के लिए ट्रेनरी उद्योग की जगह शहर प्रशासन को जिम्मेदार ठहराते हैं.
लल्लन कहते हैं कि ट्रेनरी वालों के नाले तो बंद हो गए हैं लेकिन शहर के बड़े-बड़े नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं तो गंगा नाला कैसे न बने?
गंगा की सफाई नहीं अब हो कमाई पर बात
गंगा घाट पर फूल बेचने वाली सीमा कहती हैं कि सारी पार्टियां गंगा सफाई की बड़ी-बड़ी बातें करती हैं लेकिन कोई पार्टी गंगा की बदहाली से उनको लगातार हो रहे आर्थिक नुकसान की बात नहीं करती है.
वहीं, गंगा आने वाले धर्मार्थियों को प्रसाद के रूप में खीलदाने बेचने वाली बीना कहती हैं कि वे पहले एक महीने में 25 किलो से ज्यादा के खीलदाने बेच लेती थीं लेकिन जब से गंगा की दुर्दशा हुई है तब से 5 किलोग्राम बेचना भी मुश्किल है.
सबको चाहिए कमाई लेकिन राजनीतिक पसंद है भिन्न
गंगा के सहारे अपनी जीविका चलाने वाले इन मतदाताओं को जीतने वाली पार्टी से आर्थिक मदद की अपेक्षा है. लेकिन पार्टी और नेता के आधार पर गंगा किनारे वाले वोटर पूरी तरह से बंटे हुए हैं. मायावती और मोदी ज्यादातर नेताओं के पंसदीदा नेताओं में शुमार हैं.
प्रोड्युसर - अभिलाष मलिक
एडिटर - पुर्णेंदू प्रीतम
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