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वर्ल्ड वॉटर डे: पानी की खातिर रोजाना होती है जंग

ये रहा दिल्ली का मराठवाड़ा, जहां पानी के लिए लड़नी होती है एक जंग

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दक्षिणी दिल्ली के पाॅश इलाके की धूल भरी चौड़ी सड़क के बाईं ओर का महलनुमा घर. घर के सामने खड़ी महंगी गाड़ियों को देखकर पता ही नहीं चलता कि यहां कोई जेजे कैंप जैसी जगह भी हो सकती है.

जेजे कैंप दक्षिणी दिल्ली की इस पाॅश कॉलोनी के सामने एक पतली-सी गली से थोड़ा अंदर जाकर पड़ता है. यहां के 1500 परिवार आज भी पानी के लिए दिल्ली जल बोर्ड के टैंकर पर निर्भर हैं, जो मन हुआ, तो आ जाता है, नहीं तो बस अगली सुबह का इंतजार कीजिए. इस क्षेत्र में पानी के नल तक ठीक से नहीं हैं.

वैसे तो यहां के इंसान मराठवाड़ा की तरह बहुत दूर तक पानी भरने नहीं जाते, लेकिन हर सुबह इन्हें पानी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ता है.

जैसे ही मराठवाड़ा से सूखे की खबरें आईं ,मेरा वहां जाना तय हुआ. लेकिन फिर मैं नहीं जा पाई. इसके बदले मैं जेजे काॅलोनी गई, जहां मेरी मुलाकात शांति से हुई.

शांति 55 साल की महिला है और घरेलू नौकरानी का काम करती है. उसका पति कार साफ करता है. शांति के 6 बच्चे हैं और उनमें से एक 18 साल का लड़का लकवे से ग्रस्त है.

ठीक वैसे ही, जैसे हमारे देश में झुग्गियों मे रहने वाले लाखों लोग रहते हैं, शांति भी अपने परिवार के 8 लोगों के साथ 6*8 के कमरे में रहती है. शांति भी उन कई योद्धाओं में एक है, जो पानी के लिए हर दिन लड़ते हैं. शांति 4 बाल्टी पानी के लिए 6 घंटे तक जूझती है.

यह ‘सेव वाटर, सेव लाइफ‘ एक शॉर्ट फिल्म है. ठीक वैसी ही, जैसी आप पहले कई बार देख चुके हैं. पर ये कहानियां एक बार नहीं, कई बार हर गर्मी, हर ठंड, हर मौसम में कहने की जरूरत है. यह तब तक चलेगा, जब तक हम पानी बचाकर कई जिंदगियां नहीं बचा लेते.

कैमरापर्सन: संजॉय देब

वीडियो एडिटर: कुनाल मेहरा

(यह लेख 18 मई, 2016 को पहली बार पब्लिश किया गया था. इसे वर्ल्ड वाटर डे के मौके पर दोबारा पब्लिश किया जा रहा है)

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