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बीजेपी इस तरह आई और देश का नक्‍शा केसरिया करती चली गई

एक ऐसा नारा जिसने बीजेपी की किस्मत को हमेशा के लिए बदल दिया

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जय श्री राम

एक ऐसा नारा जिसने बीजेपी की किस्मत को हमेशा के लिए बदल दिया. धर्म और राजनीति के बीच पहली बार लाइन तब धुंधली हुई जब आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक अपनी 10,000 किलोमीटर लंबी रथ यात्रा शुरू की. 2014 में नरेंद्र मोदी के मैराथन कैंपेन से कई साल पहले, आडवाणी की रथ यात्रा शायद किसी भी राजनीतिक दल की तरफ से जन संपर्क कार्यक्रम में सबसे बड़ी थी.

बीजेपी की राजनीतिक विचारधारा और भारत के लिए ये बड़ा पल था. 1989 में बीजेपी ने दूसरा लोकसभा चुनाव लड़ा.

आरएसएस और उसके कार्यकर्ताओं की मदद से 1989 चुनावों में बीजेपी 2 सीटों से 85 सीटों तक पहुंच गई. वीपी सिंह के नेशनल फ्रंट के लिए अब बीजेपी किंगमेकर हो सकती थी.
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लेकिन पार्टी ने बाहर से समर्थन देने का फैसला दिया. वाजपेयी और आडवाणी हालांकि, सरकार के रोज के कामों और पॉलिसी बनाने में शामिल नहीं थे, लेकिन उनके पास वो आंकड़े थे जिनसे वो वीपी सिंह को पीएम पद से हटाकर सरकार गिरा सकते थे.

अगस्त 1990 में हिसाब-किताब का समय आया. प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने विवादित मंडल कमीशन रिपोर्ट को स्वीकार किया जो 10 साल से भी ज्यादा वक्त से ठंडे बस्ते में पड़ी थी.

पहली बार, सरकारी नौकरियों में नॉन-दलित लोअर कास्ट हिंदुओं को 27% आरक्षण दिया गया था. मंडल कमीशन की इस रिपोर्ट ने देश में छात्रों को बांट दिया.

अपर कास्ट हिंदू और अल्पसंख्यक छात्र सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतर आए. दिल्ली यूनिवर्सिटी के 19 साल के छात्र राजीव गोस्वामी के खुद को आग लगाने के बाद प्रदर्शन और ज्यादा आक्रामक हो गया. बीजेपी असमंजस में थी. वो मंडल का समर्थन नहीं कर सकती थी, क्योंकि ये उनके अपर कास्ट हिंदू वोटबैंक के साथ भेदभाव करता था.

लेकिन वो लोअर कास्ट हिंदुओं के खिलाफ भी दिखना नहीं चाहते थे, जिनकी हाल में सरकार ने मदद की थी.

बीजेपी को अंदाज बदलने की जरूरत थी. जाति और कोटा से धर्म और राम... क्योंकि बीजेपी ने यही सोचा था कि वो ऊंची और निचली जाति के हिंदुओं को एकजुट करेंगे, जिसे मंडल ने एक दूसरे के साथ लड़ा दिया था. आदर्श व्यक्ति, राम को एक आइकन के रूप में चुना गया.

उनके जन्मस्थान अयोध्या को मंजिल के रूप में पहचाना गया.

अयोध्या में मंदिर बनाने को अंतिम लक्ष्य की तरह तय कर दिया गया. इसके पीछे इरादा था बीजेपी के हिंदू वोटबैंक को मजबूत करना और फैलाना...वो भी मंडल को ताक पर रखकर.

और इसलिए आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा का फैसला किया. 10 हजार किलोमीटर की एक यात्रा जिसे राम मंदिर के संकल्प और कारसेवा के साथ खत्म होना था.

आडवाणी, छोटे-छोटे शहरों-गांवो में रुकते और लोगों से सीधे अयोध्या आंदोलन से जुड़ने को कहते.

आडवाणी की रथयात्रा पूरी होती, उससे पहले ही बिहार के समस्तीपुर में तब के सीएम लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरफ्तार करवा दिया. उस वक्त लालू, जनता दल का हिस्सा थे जो केंद्र में वीपी सिंह सरकार में शामिल था.

बीजेपी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. देश में राजनीतिक अस्थिरता और सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया.

अगले दो सालों तक बीजेपी विपक्ष में रही जबकि संघ और उसके सहयोगी संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद राम मंदिर आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे. आडवाणी की रथयात्रा ने एक ऐसा सिलसिला शुरू कर दिया जिसकी वजह से न सिर्फ दो साल बाद बाबरी मस्जिद ढहा दी गई बल्कि देश की राजनीति भी पूरी तरह बदल गई.

Secularism की परिभाषा बदल गई. उसकी जगह नए “nationalist” और “secular” goalposts बन गए. ऐसे Goalpost जो आज भी लगातार बदल रहे हैं.

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