अयोध्या में एक सीवर निर्माण के लिए मजदूरी करती महिला के बच्चियों के ईंट उठाने (Ayodhya Child Labour Case) का वीडियो सामने आया है. आज से करीब सौ साल पहले मशहूर कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला रो पड़े जब उन्होंने इलाहाबाद के पथ पर एक महिला को पत्थर तोड़ते देखा और लिखा-इलाहाबाद के पथ पर वो तोड़ती पत्थर. आजादी मिली, लगा अपने लोगों के हाथ में निजाम आया, लेकिन लगता है तस्वीर बदलने के बजाय बदतर हो गई.
ये वीडियो सामने आया तो प्रशासन जागा. जागा क्या लीपापोती की. उस महिला को काम से हटा दिया गया. क्विंट ने ग्राउंड पर जाकर चेक किया तो पता लगा कि जिस तंबू में वो महिला अपने बच्चों के साथ रह रही थी, वहां से भी उसे भगा दिया गया.
आखिर इस देश में नेताओं ने गरीबी के बजाय गरीबों को ही तो हटाया है. ट्रंप आए तो अहमदाबाद में गरीबी छिपाने के लिए दीवार खड़ी कर दी गई. कोरोना था तो लखनऊ में श्मशान की डर्टी पिक्चर छिपाने के लिए दीवार खड़ी कर दी गई.
पता नहीं मुफ्त राशन और तमाम गरीब कल्याण योजनाओं का क्या होता है कि इतनी ठंड में दो बच्चियों को लगभग बिना कपड़ों के मजदूरी करनी पड़ती है?
राजनीति देखिए, उसे ठंड में राहुल गांधी को सिर्फ टी-शर्ट में देखकर सवाल सूझता है लेकिन इन बच्चियों को सिर्फ फ्रॉक और बनियान जैसे कपड़े में देखकर मलाल नहीं होता.
यूनिसेफ और विश्व श्रम संगठन का डेटा बताता है कि भारत में 2016 में 9.40 करोड़ बाल मजदूर थे और 2022 में इनकी संख्या 16 करोड़ हो गई.
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