आज राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने जा रहा है. देश-दुनिया की निगाहें इस फैसले पर टिकी हुई हैं. अयोध्या भूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में 40 दिन तक सुनवाई चली, जिसमें कोर्ट ने तीनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. ऐसे में देश के अलग-अलग शहरों में रहने वाले हर उम्र के लोगों ने 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराए जाने की घटना को किया याद करते हुए क्विंट के साथ अपने अनुभव साझा किए.
भोपाल के रहने वाले रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी हरकिशन साहू बताते हैं, "वो काला दिन आज भी मुझे याद है. हिंदुस्तान में ऐसा कभी नहीं होना चाहिए." लखनऊ के रहने वाले हेमंत कुमार कहते हैं, "कई दिन तक हम लोग अपने घरों में कैद रहे थे. बाहर निकलने में भी डर लगता था. उस वक्त माथे पर टीका लगाना भी छोड़ दियाथा था."
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दोपहर 12 बजे के बाद स्थिति गंभीर हो गई थी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. खबर आ रही थी कि उस समय उनसे संपर्क करने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन संपर्क नहीं हो पा रहा था. दोपहर दो-ढाई बजे के करीब ये खबर आई कि बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया है.”-एस शाद, वरिष्ठ पत्रकार
अहमदाबाद के रहने वाले सतीश जयंतीलाल उस वक्त को याद करते हुए बताते हैं, "हम तीन आदमी गाड़ी का काम करवाने गए थे. जब उस घटना की खबर आई तो हम वहीं फंस गए. हम से कहा गया कि तुम रिक्शा पर बैठकर चले जाओ, माहौल खराब हो गया है."
मुंबई की हेमा शाह बताती हैं, "सब लोग आकर बोलने लगे कि आज तो मुंबई में बहुत मारकाट हो रही है, आप यहां से जल्दी निकलो."
(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरिज सिटिजन रिपोर्टर द्वारा की जाती है जिसे क्विंट प्रस्तुत करता है. हालांकि, क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है. रिपोर्ट और ऊपर व्यक्त विचार सिटिजन रिपोर्टर के निजी विचार हैं. इसमें क्विंट की सहमति होना जरूरी नहीं है.)
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