वीडियो एडिटर- विशाल कुमार
दक्षिण-पश्चिम बेंगलुरु के करियम्मन अग्रहारा में 18 जनवरी को पुलिस और नगर निगम ने अचानक एक अभियान चलाया और करीब 100 घरों को गिरा दिया. करियम्मन अग्रहारा के ये निवासी अब अपने हाथों में अपनी पहचान से जुड़े कागज लेकर बैठे हैं. कुछ ने खुले आसमान के नीचे रात गुजारी है तो कई पेड़ों की छांव के नीचे बैठने को मजबूर हैं
18 और 19 जनवरी को हुए इस अभियान में इन घरों को सिर्फ इस संदेह में गिरा दिया गया, कि वहां रहने वाले अवैध बांग्लादेशी प्रवासी थे. बेलंदूर में ‘मंत्री एस्पाना अपार्टमेंट’ के ठीक बगल में ऐसे करीब 1,000 से अधिक कमरे हैं, जो यहां बंद पड़े हैं. यहां रहने वाले कई लोग इसी अपार्टमेंट में घरेलू कामकाज और सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते हैं.
इनमें से ही एक हैं 31 साल के शम्सुल हक, जिन्हें अपना घर गंवाना पड़ा. वो कहते हैं कि उनके पास तो सारे दस्तावेज हैं, लेकिन क्यों उनके पेट पर लात मारी जा रही है.
“उन्होंने कहा कि हम सभी बांग्लादेशी हैं, लेकिन हम असम, त्रिपुरा, झारखंड, बंगाल और कई अन्य स्थानों से हैं. मेरे पास वोटर आईडी, पैन कार्ड, आधार कार्ड है और मेरा नाम NRC की फाइनल लिस्ट में भी है. क्या मेरी पीठ पर ऐसा कोई पोस्टर है, जो ये कहता है कि मैं बांग्लादेशी हूं? वो एक गरीब आदमी के पेट पर लात क्यों मार रहे हैं?”शम्सुल हक
वहीं कार्रवाई करने वाली टीम ने बताया कि उन्हें शनिवार को बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (BBMP) के असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव ऑफिसर की तरफ से चिट्ठी मिली थी, जिसके आधार पर उन्होंने ये कार्रवाई की. चिट्ठी में दावा किया गया था, “बांग्लादेशी नागरिकों ने अवैध शेड बनाए हैं और यहां रहने वाले नागरिकों ने इसे एक स्लम एरिया में बदल दिया है.”
12 जनवरी को महादेवपुरा से BJP विधायक अरविंद लिम्बावली ने भी इलाके का एक वीडियो ट्वीट किया था, जिसमें 'अवैध निर्माण' दिखाया गया था.
हालांकि, बस्ती वासियों ने द क्विंट को बताया कि उनके दस्तावेजों को किसी भी अधिकारी ने चेक नहीं किया और न उन्हें पहले से खाली करने का कोई नोटिस नहीं मिला था. BBMP प्रमुख अनिल कुमार ने इसे गलत बताते हुए संबंधित अधिकारी को निलंबित कर दिया और अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात कही.
इलाके में ही घरेलू कामगार के तौर पर काम करने वाली मुन्नी बेगम ने कहा कि जिस वक्त उन्हें घर तोड़े जाने के बारे में पता चला तो वो काम पर थीं.
“मेरे पास मेरे दस्तावेज हैं लेकिन उन्होंने इसे चेक नहीं किया. मेरे पास असम के सभी दस्तावेज हैं, लेकिन फिर भी वो हमें बांग्लादेशी कहते हैं. हम लोग इंसान नहीं हैं क्या? हमलोग जानवर हैं क्या? क्या हमारा कोई अधिकार नहीं है? उन्होंने हमें कभी नहीं बताया कि वे हमारे घरों को तोड़ने जा रहे हैं. हमने इसके लिए तैयारी की होती. जब मेरा घर तोड़ा जा रहा था तब मैं काम पर थी. उन्होंने मेरा घर और उसमें रखा सब कुछ तोड़ दिया. मैंने अपना राशन और सब्जियां खो दी.”मुन्नी बेगम, घरेलू कामगार
BBMP कमिश्नर अनिल कुमार ने यह बात मानते हुए कहा कि इंजीनियर ने अपने दम पर कार्रवाई की थी. उन्होंने द क्विंट को बताया,
“अतिक्रमणों को हटाने के लिए प्रोटोकॉल होते हैं जिसके तहत वहां रहने वाले निवासियों को एक नोटिस दिया जाना चाहिए और फिर उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिया जाना चाहिए था. पुलिस ने ये सोचकर कार्रवाई की कि यह चिट्ठी BBMP से प्रमाणित थी. भले ही वे बांग्लादेशी अप्रवासी थे, लेकिन इसे पुलिस हेंडल करती ना कि BBMP.”
उन्होंने कहा कि हम बांग्लादेशी थे
मूल रूप से दिल्ली के रहने वाले बिलाल से बार-बार पूछा गया कि क्या वह बांग्लादेश से हैं और उनसे कहा गया कि उन्हें 'बंगाली बहुल क्षेत्र' में नहीं रहना चाहिए. उसने बताया,
“मैंने उनसे कहा कि यहां कोई बांग्लादेशी नहीं है, बल्कि असम, त्रिपुरा के लोग हैं जो बंगाली बोलते हैं. NRC के डर के चलते बांग्लादेश से आए सभी प्रवासियों को शहर से भगाया जा चुका है. देश भर के लोगों की तरह, मैं भी यहां रह रहा हूं और जीवन यापन कर रहा हूं, लेकिन उन्होंने कहा कि हम सभी को अपना सामान लेकर इस जगह को छोड़ना होगा.
हर तरफ झोपड़ियों का मलबा और बिखरा हुए सामान पड़ा हुआ है. हर कोई अपने ड्रम, गद्दे, टेलीविजन सेट जैसे सामान इकट्ठा कर उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जा रहा है.
कई ऐसे लोग थे जो काम पर गए हुए थे, जब वो घर लौटे तब उनकी जिंदगी घंटें भर में तबाह हो गई थी. वो लोग पास के सॉफ्टवेयर पार्कों और अपार्टमेंटों में डोमेस्टिक हेल्प, गार्ड, पार्किंग अटेंडेंट जैसे काम करते हैं और महीने में 10-15,000 रुपये कमाते हैं. कुछ ऐसे लोग भी थे जो तुरंत अपने लिए नये घर का इंतजाम करने में असमर्थ थे जिसके कारण वो यहां खंडहरों में रह रहे थे.
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