त्रिपुरा के युवा, सरकारी नौकरी की आस में सालों तक राजनीतिक दलों के पीछे भागकर अपना कीमती वक्त बर्बाद कर देते हैं. पार्टियों के पीछे भगाने की बजाय अगर वो पान की दुकान लगा लेते तो उनका बैंक बैलेंस 5 लाख हो गया होता.
यही कहा था, कुछ हफ्ते पहले. त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने. मौका युवाओं के लिए एक सेमिनार का था. और वो राज्य में रोजगार के हालात पर अपने विचार रख रहे थे. ये, बीते कुछ दिनों में बिप्लब देब के मुखारविंद से फूटे एक के बाद एक अगड़म-बगड़म बयानों की ही कड़ी का हिस्सा है. त्रिपुरा अचानक सबकी नजरों में आ गया. लेकिन गलत वजहों से.
देश भर में, त्रिपुरा एक ऐसा राज्य है जहां बेरोजगारी की दर बेहद ज्यादा है. त्रिपुरा की 38 लाख आबादी में से 18.7 फीसदी बेरोजगार है. ये तब है जबकि साक्षरता दर 94 फीसदी है. क्विंट पहुंचा अगरतला ताकि युवाओं से उनके मसलों पर बात की जा सके. क्या इन युवाओं को लगता है कि 25 साल बाद ढहे लाल किले के बाद सूरते हाल कुछ बेहतर हुआ है?
स्किल तो है लेकिन रोजगार नहीं
त्रिपुरा के ज्यादातर बेरोजगार युवा मानते हैं कि राज्य में सिर्फ रोजगार की कमी नहीं है बल्कि उनके स्किल से मेल खाते रोजगार की भी कमी है.
एंग्लो डेबरमा 30 साल के हैं. ग्रेजुएशन के दौरान फॉरेस्ट्री में स्पेशलाइजेशन किया क्योंकि त्रिपुरा में रहकर ही काम करना चाहते ते. 2013 में पास होकर निकले लेकिन आज तक बेरोजगार हैं. वजह- त्रिपुरा वन विभाग में 2008 के बाद से अब तक भर्ती ही नहीं हुई.
पहले उन्होंने (बिप्लब देब) परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी का वादा किया. लेकिन अब उनके बोल बदलने के बाद मुझे लगता है कि मैं शायद कोई बिजनेस शुरू कर दूंगा. लेकिन बिजनेस के लिए हमारे यहां कम मौके हैं इसलिए सरकारी नौकरी ठीक रहती है.एंग्लो डेबरमा, फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट
एंग्लो ने क्विंट से ये भी कहा कि वो बिप्लब देब के सुझाव पर कभी अमल नहीं करेंगे यानी पान की दुकान खोलने के बारे में नहीं सोचते.
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