क्विंट हिंदी और गूगल के खास कार्यक्रम, BOL:Love Your भाषा में जिन तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई उनमें पूरा एक सत्र इस बात पर फोकस रहा कि कैसे भारतीय भाषाओं के रास्ते डिजिटल डेमोक्रेसी की मंजिल हासिल की जाए. टेक पॉलिसी में किस तरह के बदलाव की जरूरत है. इसके अलावा भारतीय भाषाओं के फैलाव में कौन क्या जिम्मेदारी निभा सकता है?
भारतीय भाषाओं में फले-फूले इंटरनेट, इसके लिए सरकार की तरफ से क्या कदम उठाए जाने चाहिए?
वर्नाकुलर.एआई के को-फाउंडर सौरभ गुप्ता इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि कई IIT में रिसर्च के लिए प्रोफेसरों को फंड तो मिल रहा है लेकिन जरूरी डेटा नहीं मिल पा रहा. इस तरह की रिसर्च में डेटा काफी अहम हो जाता है. DRDO ने भी 12 साल पहले स्पीच डेटा सेट बनाया था. सरकार को जरूरी डेटा मुहैया कराने की तरफ ध्यान देना चाहिए.
रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजी के अरविंद पाणि इस सवाल के जवाब में कहते हैं कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में मदद करे. अब तक भारतीय भाषाओं के यूनिकोड ही तय नहीं हो पाए हैं, उस पर काम हो. सरकार जितना कर रही है, उससे कहीं ज्यादा की जरूरत है.
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इस चर्चा में शामिल हुए- रेवरी लैंग्वेज टेक्नोलॉजी के को-फाउंडर अरविंद पाणि, शेयरचैट के को-फाउंडर अंकुश सचदेवा, वर्नाकुलर.एआई के को-फाउंडर सौरभ गुप्ता और मीडियोलॉजी के को-फाउंडर मनीष ढींगरा. सेशन को मॉडरेट किया- ब्लूमबर्ग क्विंट की मैनेजिंग एडिटर मेनका दोशी ने
क्विंट हिंदी और गूगल ने 18 सितंबर को भारतीय भाषाओं की बढ़ती ताकत का जश्न मनाया. जहां एक मंच पर टेक, मीडिया, पॉलिसी और कॉरपोरेट जगत के बड़े नाम जुटे. इंटरनेट पर भारतीय भाषाओं की ताकत और भविष्य पर खुलकर चर्चा हुई.
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