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ब्रेकिंग Views: कोर्ट ने 30,000 पन्नों की चार्जशीट का फालूदा बनाया

2G मामले का फैसला देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज के तरीके पर बड़ा सवाल है.

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2G स्पेक्ट्रम मामले में सीबीआई के स्पेशल जज ओपी सैनी का फैसला होश उड़ाने और चौंकाने वाला है. इस फैसले से राजनीति में अचानक नया मोड़ आ गया है. कांग्रेस को क्लीनचिट मिल गई है. ये एक तरह से यूपीए के लिए बड़े पाप से मुक्ति की तरह है.

दूसरी तरफ ये सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए नई चुनौती है. वो इसलिए, क्योंकि टूजी स्पेक्ट्रम आवंटन में नुकसान के मुद्दे को उठाकर ही बीजेपी ने जमकर राजनीतिक फायदा उठाया है.

फैसला सुनाते हुए सीबीआई जज सैनी ने कड़े शब्दों में सीबीआई की आलोचना की है. जस्टिस सैनी का कहना है कि उनके सामने जो दस्तावेज रखे गए, उनमें सबूत नहीं थे. 30,000 पन्नों में जो कुछ रखा गया, वो सब कुछ अटकलों और अफवाहों की चाशनी थी. कोर्ट ने कहा कि सीबीआई साबित ही नहीं कर पाई कि 2G स्पेक्ट्रम में घोटाला हुआ है.

2G मामले का फैसला देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज के तरीके पर बड़ा सवाल है.

डीएमके को 2G स्पेक्ट्रम मामले में सबसे ज्यादा झटका लगा था

(फोटो: द क्विंट)

2019 के चुनाव के पहले कांग्रेस के हाथ मौका?

कांग्रेस को 2G स्पेक्ट्रम की वजह से सत्ता से बेदखल होने का दर्द झेलना पड़ा था. बीजेपी ने इस मुद्दे को भ्रष्टाचार से जोड़कर खूब भुनाया था. अब कांग्रेस की बारी है और उसे लगता है कि 2019 के चुनाव से पहले बहुत बड़ा मौका हाथ लग गया है, जो शायद उसकी बिगड़ी इमेज को संवारने में काम आए.

कांग्रेस के सामने अभी सामने कर्नाटक विधानसभा चुनाव हैं और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वो अपने दाग धोने की कोशिश करेगी. इसके बाद अक्टूबर में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव हैं, जिन्हें 2019 के पहले का सेमीफाइनल माना जा सकता है. लेकिन बीजेपी इस मुद्दे को छोड़ेगी नहीं, ये तय है. मुमकिन है कि फैसले को ऊपरी अदालतों में चुनौती दी जाए.

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1. संवैधानिक संस्थाएं बेनकाब हुईं

2G मामले का फैसला देश की तमाम संवैधानिक संस्थाओं के कामकाज के तरीके पर बड़ा सवाल है. इस मामले को देखिए तो हर साफ लगता है हर संस्था अपनी भूमिका को सही और स्पष्ट तरीके से निभाने में विफल रही.

सीएजी से लेकर सीबीआई, ईडी, टेलीकॉम विभाग और सुप्रीम कोर्ट तक जिस जिस संस्था के सामने से ये मामला निकला, उसने अपनी अलग ही व्याख्या दी और अंतिम नतीजा क्या सामने आया?

आठ साल पहले जब यूपीए सरकार के वक्त सबसे पहले सीएजी ने 1.76 लाख करोड़ के नुकसान की थ्योरी सामने रखी. इसे लेकर राजनेताओं ने शोर मचाना शुरू कर दिया. फिर सुप्रीम कोर्ट ने स्पेक्ट्रम आवंटन खारिज कर दिया. सीबीआई ने सीएजी की नुकसान वाले अनुमान के आधार पर सालों जांच की, लेकिन आखिर में अदालत ने कह दिया कि जो हजारों पन्ने रंगे तो गए, पर सबूत नहीं रखे गए.

2. बैंक और टेलीकॉम सेक्टर बरबाद हुए

अदालत के फैसला बहुत कुछ कहता है. ये बताता है कि हमारी संस्थाएं कैसे एडहॉक तरीके से काम करती हैं. जरा ये सोचिए सिर्फ घोटाले के आरोपों के बाद टेलीकॉम सेक्टर की हालत खस्ता हो गई. बैंकों का करोड़ों का लोन डूब गया, क्योंकि टेलीकॉम कंपनियां बैठ गई और उनका दिया पैसा डूब गया.

सबसे बुरी बात ये हुई कि उपभोक्ता का भी कोई भला नहीं हुआ, इतना कुछ हो गया हाथ कुछ नहीं आया.

3. नीति कैसे बनाए और कौन बनाए

सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसी सरकारी नीति कैसे बनेगी कि जिस पर कम से कम सवाल उठें. सही या गलत नीति का मामला फौजदारी या मुकदमे वाला मुद्दा क्यों बनना चाहिए, इसके लिए भी कोई साफ नजीर होनी चाहिए

4. क्या कीचड़ उछाल राजनीति बंद होगी?

सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कीचड़ उछाल राजनीति, हंगामा खड़ा करने के अंदाज से कोई सबक लिया जाएगा? राजनीतिक दलों से इस जिम्मेदारी की उम्मीद नहीं है और न ही करनी चाहिए. सबसे बड़ी निगरानी जनता और हमारे हिस्से में ही आएगी.

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