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फेसबुक-जियो मेगाडील, मुकेश अंबानी का मास्टर स्ट्रोक है

रिलायंस और फेसबुक की डील की सबसे बड़ी बात ये है कि जियो का सबसे बड़ा कारोबार होगा WhatsApp के साथ.

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वीडियो एडिटर: पुर्णंदू प्रीतम

दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक और रिलायंस इंडस्ट्रीज के बीच हुई डील पर भारत समेत पूरे दुनिया की नजर है. फेसबुक ने रिलायंस के जियो प्लेटफॉर्म में 43,574 करोड़ का निवेश किया है. रिलायंस जियो और फेसबुक की डील की सबसे बड़ी बात ये नहीं है कि फेसबुक या इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म के साथ बड़ा कारोबार होगा. जियो का सबसे बड़ा कारोबार होगा WhatsApp के साथ.

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दरअसल, अभी फेसबुक भारत में एडवरटाइजिंग रेवेन्यू कमाता है जबकि बाजार में जिनके पास मोबाइल है उन पर कंपनी का 90 फीसदी कब्जा है. लेकिन कंपनी के पास अभी कोई ट्रांजेक्शन मॉडल नहीं है. वहीं दूसरी तरफ रिलायंस जियो के मोबाइल-फोन के साथ एक बहुत बड़ा सब्सक्राइबर बेस है लेकिन ये लो वैल्यू वाला है 40 फीसदी का मार्केट शेयर है, दिक्कत ये है कि रिलायंस को ट्रांजेक्शन के बगैर मोटी कमाई नहीं हो सकती. ऐसे में इस डील को दो जरूरतमंद कंपनियों की शानदार जुगलबंदी कहा जा सकता है.

फेसबुक-रिलायंस डील के पीछे का 'मॉडल'

ऐसे समझा जा सकता है कि ये डील 6 करोड़ छोटे काराबोरियों और उनमें खासकर 3 करोड़ किराना कारोबारियों को एक साथ एक प्लेटफॉर्म पर लाने और अमेजन के मुकाबले बड़ा ई-मार्केट प्लेस खड़ा करने का प्लान है ताकि ट्रांजेक्शन हो सके जिससे कमाई हो सके.

अभी रिलायंस जियो को हर कस्टमर पर 120 रुपये रेवेन्यू की कमाई होती है. कंपनी का आइडिया ये था कि हिंदुस्तान में हर पॉसिबल चीज ग्रोसरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, अपेरेल कंपनी सब बेचेगी. इसलिए मार्केट में रिलायंस मौजूद है लेकिन ट्रांजेक्शन बड़े पैमाने पर नहीं होता है. अब कल्पना कीजिए कि 3 करोड़ दुकानदार कंपनी के पास हैं और उनसे छोटी सी फीस लें तो कितनी कमाई होगी. वैसे WhatsApp यहां WhatsApp पे लेकर आया है लेकिन परमिशन नहीं मिली, अब शायद उसे मिल जाए.

भारत में यूजर्स की तलाश में रिलायंस-फेसबुक

चीन की कंपनियों ने कई ऐसे प्लेटफॉर्म तैयार किए हैं जो सीधा फेसबुक-WhatsApp को टक्कर दे रहे हैं. जैसे एक है वीचैट, वीचैट अपने आप में पूरा ऑपरेटिंग सिस्टम है. इस पर आप पेमेंट कर सकते हैं, ऑर्डर कर सकते हैं, अपने कारोबार की ट्रैकिंग कर सकते हैं. इसलिए पूरा चाइना अपने कामकाज वीचैट के जरिए कर रहा है. भारत में इस तरह के प्लेटफॉर्म का अरमान बहुत लोगों के पास था लेकिन उसे पूरा नहीं कर पाते. चीनी कंपनी बाइटडांस के शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म ने भारत में अपनी धाक जमाई है.

इस प्रकार की चुनौतियों को देखते हुए फेसबुक-जियो के लिए हाथ मिलान जरूरी हो गया. कुल मिलाकर एक भारतीय कंपनी और एक अमेरिकी कंपनी भारत के बाजार में ग्राहकों की तलाश में निकली है.

आंकड़ों की बात करें तो टेक्नोलॉजी के स्पेस में ये भारत का सबसे बड़ा FDI है. चीन ने भारत में 92 कंपनियों में निवेश में पैसे डाले हैं वो है 4 बिलियन डॉलर और अब फेसबुक 43,574 करोड़ का निवेश लेकर आई है.
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अमेजन को मिलेगी सीधी टक्कर

अब ये दोनों कंपनियां सीधा टक्कर अमेजन को देने जा रही हैं. अमेजन भारत में तकरीबन हर तरह की चीजें बेच रही है. लेकिन इंडियन मार्केट में काम करने के लिए वॉलमार्ट और अमेजन को वो सुगमता नहीं मिल रही है जो दूसरे प्लेयर को मिल रही है.

आगे चलकर एयरटेल जैसी टेलीकॉम कंपनी को भी कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है.वोडाफोन की कहानी उससे भी ज्यादा खराब है. एयरटेल दरअसल, एक यूटिलिटी कंपनी बनकर रह गई है. उसने किसी वैल्यू एडेड सर्विसेज का काम शुरू नहीं किया है. वहीं रिलायंस जियो ने यूटिलिटी के आगे अब फुल सर्विस प्रोवाइडर विद वैल्यू एडेड सर्विसेज देने की कोशिश करेगा जिससे ये मुकाबला और कड़ा हो जाएगा और एयरटेल को अपने कस्टमर को बचाकर रखने में काफी दिक्कत होगी.

किसके हाथ क्या लगा?

जहां तक इस बड़ी डील का सवाल है उसके दो आंकड़े समझिए-रिलांयस कंपनी को मिले हैं 43 हजार करोड़ रुपये यानी कि 10 फीसदी की हिस्सेदारी उसने बेची है, पौने पांच लाख करोड़ की मार्केट वैल्यूएशन पर, वहीं फेसबुक ने जो पैसा लगाया है उसकी मार्केट कैपिटलाइजेशन का मात्र एक फीसदी है. इससे आप अंदाज लगा सकते हैं कि जो दो बड़े हाथियों की आपस में डील हो रही है उसमें अनुपात किस तरह का है.

इन सबसे अलग बहुत सारे वाद-विवाद भी पैदा होंगे. मोनोपॉली और डुओपॉली की बात होगी जो कि अब रियलिटी है कि डुओपॉली हो चुकी है. एक तरफ एयरटेल और दूसरी तरफ जियो, दोनों ने अपने काम का तरीका बदल दिया है. उधर WhatsApp आ गया है.

अब देखना ये होगा कि अमेजन, एयरटेल और गूगल अपने को इस नई परिस्थिति के लिए कैसे तैयार करते हैं. रिलांयस जियो और फेसबुक के लिए जो सबसे बड़ी आगे की राह है, उसमें ये देखने की जरूरत है कि इसका एग्जीक्यूशन कैसा होगा.

दोनों सिस्टम का इंटीग्रेशन कैसा होगा और जो डेटा की बात हुई उसकी ऑनरशिप उसकी शेयरिंग और इनक्रिप्शन के मुद्दों को कैसे देखा जाएगा. कुल मिलाकर एक बात तो है कि डिजिटल इकनॉमी में एक जो रुकावट थी जिसमें ट्राजेक्शन एक बड़ी चीज थी. जिसके लिए बड़ी कंपनियां संघर्ष कर रही थी उसको खोलने के लिए और संघर्ष को कम करने की ये एक बड़ी शुरुआत है.

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