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मंदी के खिलाफ मैच में RBI का ‘बाउंसर’, वित्त मंत्रालय की ‘नो बॉल’

जीएसटी के मामले में केंद्र ने सिर्फ आधा सुधार ही किया

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रिजर्व ऑफ इंडिया (RBI) ने मॉनिटरी पॉलिसी के लेवल पर अच्छा काम किया है, इसका एक सबसे बड़ा सबूत तब मिला, जब फिस्कल कन्जर्वेटिव होने के कारण केंद्र ने पहले कहा कि वो राज्यों को जीएसटी का मुआवजा नहीं देगा, फिर आधा यूटर्न मारा और कहा कि हम आपके लिए उधार खुद ले लेंगे.

मुद्दा क्या है?

राज्यों का हक है कि जीएसटी के बदले मुआवजा सेस उन्हें मिले. राज्यों में पैसे की कमी है तो वे केंद्र से कह रहे हैं कि हमारा जो बकाया है, वो आप हमको दीजिए. मगर केंद्र ने कहा कि हमारे पास पैसे नहीं है, आप खुद जाकर बाजार से पैसे उठा लीजिए.

इसमें बड़ी समस्या थी. राज्यों को ब्याज की दरें महंगी पड़तीं, राज्यों की रेटिंग अलग-अलग होतीं, और अलग-अलग कई सारे प्रोग्राम चलाने पड़ते.

ऐसे में राज्यों ने कहा कि केंद्र न सिर्फ अपनी प्रतिबद्धता से पीछे भाग रहा है, बल्कि रिकवरी को और मुश्किल कर रहा है. बहुत अड़ियल रुख के बाद केंद्र को किसी तरह ये बात समझ में आई.

केंद्र ने अपने फैसले को पलट कैसे दिया?

इसमें रिजर्व बैंक की शांत भूमिका बहुत अहम है. रिजर्व बैंक ने ये समझाया कि उधारी को मैनेज करने का काम हमारा है, राज्यों के लिए भी हम करते आए हैं, हम केंद्र के लिए कर देते हैं, जिससे ब्याज कम लगेगा. केंद्र पैसा ले ले और लोन के तौर पर उसे राज्यों को दे दे. राज्यों के खाते में ये दिखाई देगा, केंद्र की फिस्कल डेफिसिट की समस्या और उसकी बैलेंस शीट पर कोई दबाव नहीं आएगा.

केंद्र ने सिर्फ आधा सुधार ही किया

जीएसटी के मामले में केंद्र जो जिद कर रहा था, उसमें उसने आधा सुधार किया है. अभी वो सिर्फ उधार लेने के लिए राजी हुआ है, लेकिन बाद में मुआवजा कब मिलेगा, कितना मिलेगा, इस बारे में बहुत सारी बातें अभी साफ नहीं हैं.

फिलहाल रिकवरी के लिए, आर्थिक संकट से बाहर निकलने के लिए एक तरफ मॉनिटरी कदम जरूरी हैं और दूसरी तरफ फिस्कल कदम भी जरूरी हैं.

अच्छी बात ये है कि मॉनिटरी कदम को लेकर रिजर्व बैंक बहुत निखरकर सामने आया है. दरअसल पहले माना जाता था कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के बीच में एक टकराव रहता है.

रिजर्व बैंक ने मार्च से अब तक क्या किया?

इस बात पर एक नजर डालिए कि रिजर्व बैंक ने मार्च से अब तक क्या किया. उसकी नजर एक बात पर थी कि कॉस्ट ऑफ कैपिटल और पूंजी की उपलब्धता, इसमें कमी नहीं आनी चाहिए. इसलिए उसने कई नए कदम उठाए, जो पहले परंपरागत तौर पर भारत में देखे नहीं गए.

उसने लॉन्ग टर्म फंड खोल दिया कि बॉन्ड बाजार से अगर आपको खरीदना है तो आपको जो पैसा चाहिए, बैंकों को, हम दे दिया करेंगे. इसी प्रकार उसने बॉन्ड मार्केट में यील्ड को काबू में रखने पर नजर रखी.

मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए जो कदम उठाने थे, वो उठाए. रेट कट जहां तक हो सकता था, इन्फ्लेशन बढ़ न जाए, इसका ख्याल रखते हुए, वो भी किया. और अभी भी यही कहा है कि इन्फ्लेशन काबू में आएगा तो हम रेट कट कर देंगे.

उन्होंने ओपन मार्केट में बॉन्ड की खरीद के लिए अपनी रकम दोगुनी कर दी, 2.7 बिलियन डॉलर का फंड उपलब्ध है. 1 लाख करोड़ रुपये की एक और लाइन खोल दी कि जो भी आपके पास स्मॉल बिजनेस या कोई और लोन लेने के लिए आ रहे हैं (बैंकों के पास) उसकी कमी नहीं होनी चाहिए.

होम और रियल स्टेट लोन के लिए उन्होंने ये कह दिया कि आप इसमें रिस्क वेटेज कम कर दीजिए ताकि बैंकों को ज्यादा प्रोविजन न करना पड़े. कुल मिलाकर बैंकों के साथ वो खड़े रहे.

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