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मंदी से उबरने के लिए FM के ऐलान बूस्टर डोज नहीं, सिरदर्द की गोली

जो कदम सरकार ने मंदी को रोकने के लिए उठाए हैं, क्या वो वाकई उतने असरदार हैं जितना दावा किया जा रहा है.

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इकनॉमी की सुस्ती को लेकर निशाने पर आई केंद्र सरकार ने कुछ जरूरी ऐलान तो कर दिए हैं, लेकिन वो कदम क्या वाकई उतने असरदार हैं जितना दावा किया जा रहा है.

शुक्रवार 23 अगस्त को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जिन कदमों का ऐलान किया उनमें 4 बातें सबसे अहम हैं-

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सबसे बड़ी घोषणा फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट (एफपीआई) से जुड़ी है. बजट में सरकार ने एफपीआई के कैपिटल गेन्स पर सरचार्ज बढ़ाया था.

इसको लेकर बाजार का मूड खराब था और 48 दिनों से इंतजार था कि ये गलत टैक्स है, इसको वापस ले लिया जाए. सरकार ने आखिर इसे वापस ले ही लिया.

दूसरा बड़ा ऐलान था कि नगदी का संकट नहीं है. सरकार ने बैंकों को 70 हजार करोड़ रुपए देने का ऐलान किया है.

तीसरी घोषणा की गई कि लोन लेने में प्रक्रियाओं को आसान बना दिया जाए.

अब इन पर बारीकी से नजर डाली जाए. एफपीआई पर सरकार का कदम वापस लेना असल में भूल सुधार है. सरकार को समझ आ गया था कि बाजार का मूड बहुत खराब है. ऐसे में ये कहना कि सरकार ने बूस्टर-डोज दिया है, इसकी गलत व्याख्या होगी.

लब्बोलुआब ये है कि सरकार के सामने चुनौती बाजार के सेंटीमेंट को ठीक करने की थी. हर दिन मंदी की खबरें बड़ी हेडलाइन बन रही थीं और गुरुवार 22 अगस्त को बाजार में भारी गिरावट देखी गई. इसके बाद ही सरकार जागी और तय किया गया कि कुछ किया जाए.
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कई विशेषज्ञों का मानना है कि दिक्कतें दूसरी हैं. सरकार के ऐलान के बाद भी सवाल ये है कि उपभोग की डिमांड बनेगी? क्या निवेश की डिमांड बनेगी?

इतना ही नहीं, एक बड़ा सवाल नगदी को लेकर भी है. क्या लोन के कायदे आसान कर देने से और नगद उपलब्ध करा देने भर से क्या कोई शख्स नया प्रोजेक्ट लगाने के लिए पैसे लेने के लिए तैयार है? क्या लोग अपने लिए गाड़ी-फ्रिज या कुछ भी नया लेने के लिए तैयार हैं?

इन सब सवालों का जवाब सिर्फ एक शब्द है- नहीं. असल में लोगों को अभी भी कुछ स्पष्टता की जरूरत है क्योंकि अभी-भी दुनिया भर में अफरा-तफरी का माहौल है. इसलिए कंज्यूमर अपने बिजनेस और परचेज प्लान को टाल रहे हैं.

अब बात इसके दूसरे पहलू की. सरकार इस बात का क्रेडिट लिए जा रही है कि वैश्विक उथल-पुथल के इस दौर में हमारे हालात उतने बुरे नहीं हैं जितने कई देशों में इस वक्त बने हुए हैं.

लेकिन ये सिर्फ एक तरीका है बाजार का मूड ठीक करने का. इसलिए आज के कदम के बारे में ये निष्कर्ष निकालना कि सरकार ने कोई बहुत बड़ा मूड बदल देने वाला बूस्टर डोज दिया है, गलत होगा.

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इसको समझने का एक और तरीका है और वो वित्त मंत्री की बातों में दिखती भी है क्योंकि वो खुद कहती हैं कि सरकार अगले हफ्ते कुछ और घोषणाएं करेगी और कुछ हफ्तों बाद थोड़ी और घोषणाएं. यानी अभी काम खत्म नहीं हुआ है.

इसके लिए थोड़ा और इंतजार करना होगा क्योंकि जिस मंदी की गिरफ्तर में हम हैं उसमें इन छोटे-मोटे तात्कालिक कदमों से कोई सुधार होना संभव नहीं दिखता.

इसके अलावा अगर एफपीआई से शेयर बाजार का मूड ठीक होता भी तो चीन ने अमेरिका के सामान पर फिर से आयात शुल्क बढ़ा दिया है. ये फिर से मूड को चौपट कर देगा.

तो कुल मिलाकर कहानी ये है कि जब मरीज को बूस्टर डोज की जरूरत है तो सिरदर्द की गोली से उसकी तबीयत को ठीक नहीं कर सकते.

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