वीडियो एडिटर- विवेक गुप्ता
आखिर देश में कैश संकट क्यों हो गया? आखिर जो सरकार हर संकट हरने का दावा करती है वो इस मोर्चे पर इतनी असहाय क्यों महसूस नजर आ रही है? एक-एक कर करेंगे कैश-क्रंच की पूरी पड़ताल और समझेंगे इसके मायने.
नोटबंदी के पक्ष में बोलने वालों के 3 बड़े तर्क
- ब्लैकमनी खत्म हो जाएगी
- कैश से लेन-देन में कमी आएगी और इकोनॉमी क्लीन हो जाएगी. कैश माने कुछ तो गड़बड़ है. लेस कैश मतलब हेल्दी ट्रांजेक्शन
- डिजिटल ट्रांजैक्शन बढ़ेगा और इससे रातों-रात क्रांति आएगी
ब्लैक मनी को छोड़िए. इस पर कभी ना खत्म होने वाली बहस हो सकती है. बाकी दोनों तर्कों को देखते हैं.भरोसा दिलाया गया कि कैश से लेन-देन में कमी आएगी. हुआ क्या ये देखिए. 2017 से कैश सर्कुलेशन में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई. इतनी बढ़ोतरी जो पिछले सात साल में कभी नहीं हुई थी. खास बात यह कि ज्यादा बढ़ोतरी 2017 से दूसरे हाफ में हुई. नोटबंदी के आठ महीने बाद.
इस साल के पहले तीन महीने में तो कैश सर्कुलेशन में 100 से 200 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.मतलब यह कि सरकार का फरमान—कैश हटाओ. लोगों का फैसला—हमें और कैश चाहिए.
कैश की इतनी जरूरत को भी समझिए
इतने तामझाम के बावजूद देश के महज 8 फीसदी लोग ही डिजिटल ट्रांजैक्शन से जुड़े हैं. अपनी-अपनी मजबूरियां होंगी. लेकिन सच्चाई यही है कि जोर-जबर्दस्ती के बावजूद भी लोग कैश से लेन-देन को ही सबसे बेहतर समझते हैं. और नोटबंदी के बाद के 15 महीने का सबसे बड़ा ट्रेंड यही है. जब सरकार को 15 महीने से पता है कि कैश की मांग लगातार बढ़ रही है तो फिर एटीएम से कैश क्यों गायब हो गया. अचानक इस तरह की हेडलाइन कई राज्यों से फिर से क्यों आने लगी कि एटीएम में पैसे नहीं मिल रहे.
अब फिर ATM होंगे कैलिब्रेट
देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के रिसर्च विंग की रिपोर्ट के मुताबिक, तीन वजह हैं—सिस्टम में 70,000 करोड़ रुपए की नकदी की कमी है, लोग ज्यादा पैसा निकालकर रख रहे हैं और फिर से देश के करीब 2 लाख एटीएम को 200 के नए नोट की निकासी के लिए एडजस्ट किया जा रहा है. फिर से करीब 2 लाख एटीएम का रीकेलिब्रेशन?
याद कीजिए नोटबंदी के बाद के कुछ हफ्ते की हेडलाइंस को. एटीएम से पैसे नहीं निकल नहीं रहे हैं क्योंकि 500 और 2,000 के नए नोट की डिजाइन मौजूदा एटीएम के साइज के हिसाब से फिट नहीं थी. एक बार की गलती को मान लिया कि गलती हो गई. फिर से वही गलती.. इतने हाहाकार के बाद.. वो भी इतनी जल्दी?. कोई सोच-समझकर फैसला ले रहा है क्या. करंसी के डिजाइन में इतना बदलाव और किसी की लगातार गलती की कीमत हम सब चुकाएं.
गांवों-कस्बों में कैश की ज्यादा कमी
दूसरी बात, नकदी की कमी. जब पिछले 15 महीने का ट्रेंड है कि कैश ट्रांजैक्शन लगातार बढ़ रहा है तो ये है हमारी प्लानिंग. कुछ अचानक हो जाए तो रिएक्शन में देरी हो सकती है. लेकिन जो हमें 15 महीने से पता है उसको ठीक करने में इतनी गफलत.और तीसरी बात, लोग ज्यादा पैसा निकाल रहे हैं. इसका सीधा संबंध इकनॉमिक पॉलिसी में से है. इकनॉमिक पॉलिसी मेकिंग हमेशा से ही एक लगातार चलने वाला सिलसिला है. बड़ा सुधार करना होता है तो बड़े फैसले लिए जाते हैं. जितना संभव हो झटकों से बचा जाता है. जब झटके ही आदत हो जाएं तो लोगों का वही पुराना रिएक्शन होता है-अरे जेब में, अपने घर में कुछ नकदी तो होनी चाहिए. पता नहीं कब कौन से झटके लग जाएं. लोगों का कैश में भरोसा उसी का नतीजा है. और आखिरी बात. ध्यान दीजिए कि कैश की कमी कहां हो रही है. गांवों में, छोटे शहरों में. वहां, जहां डिजिटल ट्रांजैक्शन से लोग कोसों दूर हैं. मतलब ये कि उनके लिए ट्रांजैक्शन मुश्किल हो गया है. और जाहिर है इसका नुकसान भी उन्हें काफी होगा. आप खुद सोचिए कि कैश की किल्लत का सबसे ज्यादा नुकसान किसे होगा.
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