सीबीआई का अफसर नंबर 1 कह रहा है कि अफसर नंबर 2 ने रिश्वत ली, एफआईआर करो. अफसर नंबर 2 कह रहा है कि रिश्वत असल में अफसर नंबर 1 ने ली है और वो मुझे फंसा रहा है. सीबीआई, सीबीआई के ही दफ्तर पर छापा मारकर सीबीआई के ही अफसर को गिरफ्तार कर रही है. अमां यार.. ये केंद्रीय जांच ब्यूरो है या केंद्रीय इल्जाम ब्यूरो?
कथा जोर गरम है...
कथा जोर गरम है कि डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना की लड़ाई ने सीबीआई की फजीहत कर दी है. ये देश की सबसे बड़ी और अहम जांच एजेंसी है. देश के सबसे संवेदनशील, अहम और पॉलिटिकल असर वाले मामलों की जांच करती है.
लेकिन वर्मा और अस्थाना की जंग ने सीबीआई की काबिलियत पर सीरियस सवाल खड़े कर दिए हैं. जो बेहद ही असामान्य, असाधारण, अप्रत्याशित और विचित्र हैं.
क्या है मामला?
आखिर ये मसला है क्या जिसने देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के भीतरी दरवाजों पर लगी दीमक को बेपर्दा कर दिया.
- ये मामला शुरू हुआ था अक्टूबर 2017 से जब वर्मा ने पहली बार केंद्रीय सतर्कता आयोग यानी CVC के सामने अस्थाना की प्रमोशन के खिलाफ झंडा बुलंद कर दिया. लेकिन CVC के साथ सुप्रीम कोर्ट ने भी अस्थाना को क्लीन चिट दे दी.
- 2 जुलाई, 2018 को वर्मा ने CVC को लिख दिया कि अस्थाना भले ही एजेंसी में नंबर दो हों लेकिन मेरी गैर-मौजूदगी में वो बैठकों में हिस्सा नहीं ले सकते.
- 24 अगस्त, 2018 को पलटवार करते हुए अस्थाना ने CVC और कैबिनेट सेक्रेटरी को शिकायत भेजी कि वर्मा खुद भ्रष्ट हैं और मोइन कुरैशी केस के आरोपी ने उन्हें 2 करोड़ की रिश्वत दी है.
- 4 अक्टूबर को कुरैशी केस में आरोपी सतीश बाबू सना ने कहा कि उन्होंने अस्थाना को 3 करोड़ की रिश्वत दी है
- 15 अक्टूबर को सीबीआई ने अपने ही आला अफसर अस्थाना के खिलाफ एफआईआर कर ली
आगे क्या होगा?
अब सबसे बड़ा सवाल है कि आगे क्या होगा
पहली संभावना-
- नियमों के मुताबिक सरकार सीबाआई के कामकाज पर सरकार का कोई जोर नहीं
सियासी गलियारों में चर्चा है कि सरकार आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना दोनों को छुट्टी पर भेजकर मामले की जांच करवा सकती है. लेकिन ये तो सबसे जाहिर रास्ता है. सरकार किसी एक को भी छुट्टी पर भेज सकती है. वो अस्थाना भी हो सकते हैं और वर्मा भी. सीबीआई डायरेक्टर को हटाने की प्रक्रिया बेहद पेचीदा है, सीधे सरकार के हाथ में नहीं है. लेकिन सरकार चाहे तो छुट्टी पर तो भेज ही सकती है.
दूसरी संभावना-
- जांच की नौबत आई तो सवाल ये होगा कि सीबीआई के जूनियर अफसर भला अपने अफसरों के खिलाफ साफ-सुथरी जांच कैसे करेंगे? तो सरकार सीबीआई से बाहर के अफसर लाकर मामले की तफ्तीश करवाएगी.
तीसरी संभावना-
- ये तफ्तीश एक स्पेशल इनवेस्टिगेशन टीम (SIT) बनाकर हो सकती है जिसकी निगरानी CVC करे, सरकार नहीं.
चौथी संभावना-
- ये भी हो सकता है कि मामले की संजीदगी के मद्देनजर कोई सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दे और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कोई कमेटी बन जाए.
साल 2013 में यूपीए सरकार के वक्त हुए कोयला घोटाले पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पिंजरे का तोता कहा था. हमारी तो बस इतनी गुजारिश है कि सीबीआई पर देश के लोगों को भरोसा है, झूठा ही सही उसका एक सम्मान है. उसे अफसरी इगो का शिकार ना बनाओ.
भई.. इससे तो अच्छा पिंजरे का तोता ही है. चोंच भले ना मारे टांय-टांय तो करता है.
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