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‘शेफ’ रिव्यू: खाना टेस्टी है, पर दर्शकों को कुछ ज्‍यादा पकाया है

फिल्म की सबसे बड़ी गलती ये है कि हमें ज्यादा पकाया है, खाना कम पकाया है.

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अभिनेता सैफ अली खान की फिल्म 'शेफ' डायरेक्टर जॉन फेवरियू की साल 2014 में बनी हॉलीवुड फिल्म का हिंदी रीमेक है. इस फिल्म को डायरेक्टर राजा कृष्ण मेनन ने डायरेक्ट किया है.

फिल्म 'शेफ' ये दर्शाती है कि खाना लोगों की जिंदगी में रिश्तों को जोड़ने का काम करता है. काफी हद तक फिल्म में ऐसा हुआ भी है. सैफ अली खान फिल्म में रोशन का किरदार निभा रहे हैं, जो कि एक शैफ हैं. वे अपनी जिंदगी को लेकर कंफ्यूज है.

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सैफ की फिल्म 'शेफ' खाने में टेस्टी है, मगर इसमें कुछ सामग्री की कमी है. फिल्म में सैफ प्रेशर कुकर की तरह हैं, जो कभी भी फट जाता है, जब भी कोई उनके खाने की निंदा करता है. सैफ उस व्यक्ति को बुरा-भला बोलने लगते हैं. एक बार सैफ किसी आदमी को घूंसा मार देते हैं और उन्हें रेस्टोरेंट से निकाल दिया जाता है.

सैफ को कुछ समझ नहीं आता है और वो कोच्चि में रह रही अपनी पूर्व पत्नी और बेटे के पास जाने का फैसला करते हैं. असल में फिल्म की शुरुआत यहीं से होती है.

रितेश शाह और सुरेश नायर ने फिल्म की कहानी को देश के लोगों के हिसाब से अच्छे से ढाला है.

फिल्म 'शेफ' में सैफ अली खान का बेटा छोले-भटूरे का मतलब नहीं जानता, उसे सैफ कहते हैं 'तुम चांदनी चौक के रोशन कालरा के ओनली पुत्तर होकर ऐसी बातें नहीं कर सकते'. अब बताइए भला कि किसको नहीं मालूम होगा कि छोले-भटूरे क्या होते हैं. है ना!

फिल्म की सबसे बड़ी गलती ये है कि इसने हमें ज्यादा, खाना कम पकाया है.

हम इस फिल्म को 5 में से 3 क्विंट देते हैं.

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