साल था 2012, जगह थी म्यांमार का राखिन इलाका. भड़क उठी थी धार्मिक हिंसा. बौद्ध बहुसंख्यक म्यांमार में अपना सब कुछ छोड़कर हजारों रोहिंग्या मुसलमानों को भागना पड़ा. अगले ही पल हजारों लोग बन चुके थे रिफ्यूजी. इस हिंसा में सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों का हुआ.
यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रेन फंड की आउटकास्ट एंड डेस्पेरेट रिपोर्ट का दावा है कि बांग्लादेश के रिफ्यूजी कैंप में करीब 3,40,000 रोहिंग्या बच्चे बहुत बुरी हालत में रहने को मजबूर हैं.
बौद्ध बहुसंख्यक देश म्यांमार रोहिंग्या मुसलमानों को अपना नागरिक नहीं मानती है, जिस कारण ये लोग बांग्लादेश और भारत में गैरकानूनी तरीके से प्रवासी बनकर आ गए.
5 साल बाद म्यांमार में 25 अगस्त 2017 को हिंसा भड़क उठी. हिंसा के बाद से अब तक करीब 6 लाख रोहिंग्या बच्चे, बड़े, बूढ़े अपना देश छोड़कर बांग्लादेश भाग आये हैं.
बच्चों का भविष्य अधर में
इस हिंसा का सबसे ज्यादा लाखों बच्चों पर पड़ा है. रिफ्यूजी कैंप में बच्चों के लिए खाना, अच्छी शिक्षा, जरूरी सुविधाओं की कमी है.
इस बाल दिवस के मौके पर क्विंट ने दिल्ली के कालिंदी कुंज इलाके में रह रहे रोहिंग्या बच्चों से मुलाकात की. 9 साल के साकिब 2012 में म्यांमार से आए थे. साकिब को उस वक्त का बहुत कुछ तो याद नहीं है, लेकिन साकिब बताते हैं,
म्यांमार में हमारा बहुत प्यारा सा घर था. मैं 5 साल का था जब म्यांमार छोड़ना पड़ा. अब हम अपने घर नहीं जाना चाहते हैं.
साकिब भले ही इमर में छोटे हों, लेकिन बॉलीवुड एक्टर सलमान खान के बड़े फैन हैं. उन्हें सलमान का एक्शन बहुत पसंद है.
खो गया बचपन
बचपन को याद करते हुए रहीम बताता है, “मैं 10 साल का था जब भारत आया था, जब हम लोग बॉर्डर पार कर रहे थे तब मेरा सैंडल टूट गया था. नंगे पांव बॉर्डर पार करना पड़ा था’’. रहीम अब बड़े हो कर हाफिज बनना चाहता है. हाफिज मतलब जिसे कुरान याद हो.”
साकिब और रहीम जैसे सैकड़ों बच्चे भारत में रह रहे हैं. जो अब वापस म्यांमार नहीं जाना चाहते हैं.
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