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लॉकडाउन में सेक्स वर्कर: ‘काम नहीं, पुलिस के कारण कोई मदद भी नहीं’

क्विंट ने कुछ सेक्स वर्कर्स से बात की और उनका हाल-चाल जाना

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देश की राजधानी दिल्ली के जीबी रोड इलाके में बड़ी तादाद में महिला सेक्स वर्कर्स रहती हैं. कोरोना वायरस और उसके बाद लगे लॉकडाउन की वजह से उन पर आफत का पहाड़ टूट पड़ा है. जीबी रोड के इलाके में करीब 3000 सेक्स वर्कर्स रहती हैं. इनके पास रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है. क्विंट ने इनमें से कुछ सेक्स वर्कर्स से बात की और उनका हाल-चाल जाना.

सुधा (बदला हुआ नाम) 15 साल से बतौर सेक्स वर्कर काम कर रही हैं. वो बताती हैं कि 'हम अपनी मर्जी से यहां नहीं आए थे हमें यहां पर दूसरा कोई लेकर आया था. हमारे मां-बाप को इसके बारे में नहीं पता है. हमें राशन वगैरह तो मिल जाता है. इसके अलावा सब्जी, गैस सामान लगता है. लेकिन इसके साथ घर भी कुछ भेजना होता है.'

घर में आय का कोई जरिया नहीं है. पिता का पहले ठेकेदारी का काम था लेकिन अब घर पर ही रहते हैं. मैं जो भेजती हूं उनका खर्चा उसी पर चलता है. हमने और दूसरा काम खोजने की भी कोशिश की लेकिन यहां के आधार कार्ड के आधार पर कोई काम नहीं देता है. जब हम टिकट भी बनवाने जाते हैं तो लोग अलग नजर से देखते हैं. मैं अब घर वापस जाने के बारे में सोच रही हूं. यहां पर कितनी कमाई होगी ये कस्टमर पर निर्भर करता है. कभी दो कभी चार कस्टमर आते हैं. कभी ऐसा दिन भी बीतता है कि कोई कस्टमर नहीं आता. अगर कोई जानने वाला पुराना कस्टमर होता है तो उनसे पैसे मांग लेते हैं.
सुधा (बदला हुआ नाम), सेक्स वर्कर
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रश्मि (बदला हुआ नाम) 8 साल से जीबी रोड इलाके में सेक्स वर्कर हैं. वो बताती हैं कि 'छोटी उमर में हमारे पास इतना दिमाग भी नहीं था. एक महिला थी वो मुझे यहां बेच के चली गई थी वो अब मर गई है.'

कोरोना के बाद हमारा खर्च नहीं चल रहा है हम घर पैसे कहां से भेजेंगे. मैं 15-20 हजार कमाया करती थी. हम जान पहचान वालों को कॉल करते हैं जो हफ्ते में 3-4 बार आया करते थे वो मिलकर जाते हैं. लेकिन पुलिस परेशान करती है. वो डंडे से मारते हैं. वो खाना वगैरह की मदद भी करने आते हैं तो पुलिस उन्हें बेवजह मारती है. मैं पुणे की रहने वाली हूं. पुणे की हालत भी इस वक्त खराब है. जैसे ही हमारे घर की ट्रेन खुलेगी हम अपने घर चले जाएंगे. अपने घर में बच्चों के साथ रहेंगे. हम कहीं पर भी काम करत सकते हैं किसी भी कंपनी में जॉब कर सकती हूं. मैं थोड़ी बहुत पढ़ी लिखी भी हूं.
रश्मि (बदला हुआ नाम), सेक्स वर्कर
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करीब 50% सेक्स वर्कर्स कोरोना वायरस संकट की वजह से अपने घरों को वापस लौट गई हैं. जो यहां पर रुकी हुई हैं वो कमाई के किसी और जरिए की तलाश कर रही हैं.

सोसयटी फॉर पार्टिसिपेटरी इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट की उपाध्यक्ष ललिता 32 साल से जीबी रोड में काम करने वाले सेक्स वर्कर्स के साथ काम कर रही हैं. वो वैश्यालय में पैदा हुए बच्चों के लिए घर चलाती हैं. उनका कहना है कि सेक्स वर्कर्स के लिए कोई भी फंड नहीं देना चाहता.

फंड जुटाना बहुत बड़ी समस्या है. NGO और CSR ग्रुप वो सेक्स वर्कर्स प्रोग्राम के लिए फंड नहीं देना चाहते. उनको जॉब देना है और समाज को चाहिए कि उनको अपनाए. समाज में ऐसी धारणा है कि वैश्याएं बहुत कमाई करती हैं. लेकिन ये सच नहीं है. महिलाएं जो कई सालों से वैश्यावृत्ति का काम कर रही हैं. उनको एक दम आप कढ़ाई सिलाई करने को लिए बोलो तो आसान नहीं है. अगर उनको आप अच्छा रोजगार देंगे तो वो भी दूसरा काम करना चाहेंगी.
ललिता, सोसयटी फॉर पार्टिसिपेटरी इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट

वैश्यालय में काम करने वाली महिलाएं और मालिक भी कोरोना वायरस को लेकर डरे हुए हैं. वो कहते हैं कि उन्हें भी डर है कि ग्राहक कहां-कहां से आते हैं हमें भी कुछ हो सकता है.

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