"हम गांव के बाहर कहीं नहीं जा रहे हैं और घर पर मास्क पहनने की कोई जरूरत नहीं है"
उत्तर प्रदेश के आगरा के बमरौली कटारा गांव में एक दुकान के बाहर बरामदे पर बैठे एक युवक ने हमें बताया.
गांव के नए प्रधान उदय सिंह राणा ने हमें बताया कि मार्च से अब तक बमरौली कटारा में 'फ्लू' जैसे लक्षणों के कारण लगभग 50 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. हालांकि, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, गांव में कोविड से संबंधित केवल चार मौतें हुई हैं.
क्विंट ने गांव में एक दिन बिताया और ये पाया कि सरकार की लापरवाही, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और COVID-19 के बारे में गलत जानकारी बमरौली कटारा में लोगों की जिंदगी और मुश्किल बना रही है.
सुखबीर सिंह, जिन्होंने 24 अप्रैल को अपने 41 वर्षीय बेटे लोचन को कोरोनावायरस के कारण खो दिया, उन्होंने ने हमें बताया कि मरने से पहले उनके बेटे को तीन अस्पतालों ने लौटा दिया था.
“हम उसे तीन अस्पतालों में ले गए और उन्होंने हमें ये कहते हुए लौटा दिया कि हमें कोविड टेस्ट करवाना होगा. हमें यकीन नहीं था वो संक्रमित था. उसकी मौत के बाद एक डॉक्टर ने टेस्ट किया और रिपोर्ट पॉजिटिव आई.”सुखबीर सिंह,लोचन सिंह के पिता
एक दूसरे उदाहरण में, 65 साल की ज्ञान देवी 28 अप्रैल को कोविड जैसे लक्षणों से बीमार पड़ गईं और 3 मई को बिना टेस्ट के उनकी मौत हो गई. इससे उनके परिवार वाले उनकी मौत के कारणों को लेकर अटकलें लगाने लगे हैं.
आगरा के बमरौली कटारा में स्थानीय लोगों ने कहा कि उनके गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने उन्हें कोविड
संकट के सामने असहाय छोड़ दिया है. मोहन पाल सिंह कहते हैं, ''हमारे गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र है, लेकिन ज्यादातर बंद रहता है. डॉक्टर बहुत कम आते हैं.'' उन्होंने कहा, "हाल ही में, सेंटर में एक टीकाकरण अभियान चलाया गया था. हालांकि, केवल 10-15 लोगों को ही टीका लगाया गया था और वे उसके बाद कभी नहीं आए."
एक वकील श्रीकृष्ण शर्मा कहते हैं, "हम अपने घरों से बाहर निकलते ही सोशल डिस्टेंसिंग का अभ्यास करते हैं, हमें मास्क पहनने की जरूरत महसूस नहीं होती है"
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